By सुरेश एस डुग्गर
कांग्रेस से 'आजाद' होने के बाद गुलाम नबी आजाद रविवार को पहली बार जम्मू कश्मीर आ रहे हैं। उनके सम्मान में हजारों आंखों प्रतीक्षारत हैं। उन्हें जिस जम्मू का लाल कहा जाता है वहीं एक रैली का भी आयोजन किया जाना है जिसमें उनके ससुराल कश्मीर से भी कई नेता, सिर्फ उनके समर्थक ही नहीं बल्कि अन्य दलों से संबंध रखने वाले भी शिरकत करने को उत्सुक हैं।
दरअसल प्रदेश का हर नागरिक अब अन्य राजनीतिक दलों से मायूस हो चुका है। उसे न ही अब नेशनल कांफ्रेंस और न ही पीडीपी पर इतना भरोसा रहा है। जबकि जम्मूवासी भी अब भारतीय जनता पार्टी के वायदों को लालीपाप मानने लगे हैं। ऐसे में सभी की आस का दीपक गुलाम नबी आजाद बनने लगे हैं।
पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सच में गुलाम नबी आजाद प्रदेश की जनता की आस का दीपक बनकर उन्हें रोशनी देकर भविष्य की राह दिखाएंगे। वे कल अपनी नई पार्टी का ऐलान करने जा रहे हैं। उनके व्यक्तित्व का ही असर है कि नई पार्टी के लक्ष्य को जाने बिना ही हजारों नेता उनके समर्थन में अपने अपने राजनीतिक दलों से इस्तीफे दे चुके हैं।
इसे इस्तीफों की सुनामी भी कहा जा रहा है जिसमें तैर कर अपना बेड़ा पार लगने की उम्मीद रखने वालों में सिर्फ कांग्रेसी ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी, नेकां, पीडीपी और भाजपा के भी नेता हैं। इस्तीफों की इस सुनामी का एक कड़वा सच यह है कि इसमें शामिल अधिकतर नेता डूबे हुए जहाज हैं जिन्हें लगता है कि आजाद नाम की सुनामी उनकी नैया को पार लगा देगी। उन्हें चले हुए कारतूस के तौर पर माना जाता है।
जबकि अभी तक यह भी तय नहीं है कि जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद की भूमिका क्या होगी क्योंकि एक और यह कहा जा रहा है कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के गठन का ऐलान करेंगें जिसे जी-23 समूह का भी समर्थन होगा तो जम्मू कश्मीर में उनके साहयेगी उन्हें जम्मू कश्मीर का भावी मुख्यमंत्री घोषित करने में जुटे हैं।
देखा जाए तो प्रदेश में गुलाम नबी आजाद की राह आसान नहीं है क्योंकि उन पर यह आरोप लग रहा है कि वे अंदरखाने भाजपा के साथ समझौता करके ही जम्मू कश्मीर से मैदान में उतरने जा रहे हैं और उन्हें अन्य राजनीतिक दलों को तोड़ कर भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने की डील हुई है।