टकराव का हासिल

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच औपचारिक बैठकों तक में स्थिति जैसी होती जा रही है, उससे सवाल यह पैदा हो रहा है कि इससे राजधानी और यहां के लोगों का क्या भला हो रहा है!

Update: 2022-09-03 04:45 GMT

Written by जनसत्ता: दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच औपचारिक बैठकों तक में स्थिति जैसी होती जा रही है, उससे सवाल यह पैदा हो रहा है कि इससे राजधानी और यहां के लोगों का क्या भला हो रहा है!

शुक्रवार को दोनों के बीच होने वाली साप्ताहिक बैठक टलने की वजह यह बताई गई कि चूंकि अरविंद केजरीवाल गुजरात के दो दिनों के दौरे पर हैं, इसलिए उपराज्यपाल के साथ होने वाली बैठक में वे शामिल नहीं हो पाएंगे। लेकिन लगातार तीसरी बार हर सप्ताह होने वाली बैठक में शामिल नहीं होना यह बताने के लिए काफी है कि दोनों के बीच कई मुद्दों पर हो रहे टकराव की वजह से पैदा होने वाला तनाव अब किस रूप में दिखने लगा है।

सवाल है कि अगर उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच होने वाली बैठक का मकसद राजधानी दिल्ली में सरकार चलाना और शासन का सहज रूप से कामकाज सुनिश्चित किया जाना है तो इसमें निजी आग्रहों की जगह क्यों होनी चाहिए। वहीं, अगर बैठकें नहीं हो पाने की वजह कोई आग्रह, तनाव या टकराव नहीं है तो क्या इसे शासन चलाने के लिए जरूरी कामों की प्राथमिकता सूची में कम महत्त्व का माना जा रहा है?

दरअसल, पिछले काफी समय से उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच जिस स्तर की खींचतान चल रही है, उसमें यह साफ दिख सकता है कि इसकी वजह केवल तकनीकी बाध्यताएं नहीं होंगी। दिल्ली में 'आप' की सरकार की ओर से कई पार्टी के नेता यहां के विकास को बाधित करने के आरोपों के साथ उपराज्यपाल को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते रहे हैं।

दूसरी ओर, उपराज्यपाल की ओर से कुछ तकनीकी आधार के चलते सरकारी कामकाज से संबंधित फाइलों पर सवाल उठाया जा रहा है। मसलन, उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार की ओर से भेजी गई सैंतालीस फाइलों को इसलिए वापस भेज दिया कि उन पर संवैधानिक मानदंडों के मुताबिक मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर नहीं थे। इस बीच, दिल्ली की आबकारी नीति से जुड़े विवाद ने कई स्तर पर जो संदेह खड़े किए हैं, वह अब एक सार्वजनिक बहस का विषय हो चुका है।

फिर उपराज्यपाल ने दिल्ली के मुख्य सचिव से यहां के सरकारी स्कूलों में कक्षाओं के लिए अतिरिक्त कमरे बनाने से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों के मामले में भी रिपोर्ट तलब की। जाहिर है, इन मसलों पर दिल्ली में 'आप' एक तरह से घिरी हुई है।

यह बेवजह नहीं है कि आम आदमी पार्टी की ओर से भी उपराज्यपाल पर चौदह सौ करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाते हुए दावा किया गया कि जब वे खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष के पद पर थे, उस दौरान यह घोटाला हुआ था।

जाहिर है, दोनों पक्षों के बीच टकराव ने जो शक्ल अख्तियार कर लिया है, उसमें मामला अब केवल आपसी तनाव तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि इसका असर अब राज्य के सामान्य कामकाज पर भी पड़ने लगा है। पिछले कई हफ्तों से जिस तरह उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बैठकें रद्द होने का जो क्रम चल रहा है, उसका हासिल आखिर क्या होने वाला है?

दिल्ली को देश के सभी राज्यों से अलग और विशेष चेहरा देने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए यहां के विकास और लोगों के हित प्राथमिक हैं या आपसी खींचतान के बीच पलता कोई अहं? वहीं, अगर उपराज्यपाल के सामने भी अगर कोई बड़ी बाधा नहीं है तो उन्हें भी टकराव या तनाव के बजाय जनहित में दोनों पक्षों के बीच सौहार्द के हालात बनाते हुए अपनी गरिमा को कायम रखने की जरूरत है, ताकि दिल्ली और यहां के लोगों के लिए एक बेहतर शासन और विकास सुनिश्चित किया जा सके।


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