उन्माद पर्व

रामनवमी के अवसर पर जिस तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में पथराव, आगजनी और हिंसा की घटनाएं हुर्इं, वे किसी भी सभ्य समाज की निशानी नहीं कही जा सकतीं।

Update: 2022-04-13 04:42 GMT

Written by जनसत्ता; रामनवमी के अवसर पर जिस तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में पथराव, आगजनी और हिंसा की घटनाएं हुर्इं, वे किसी भी सभ्य समाज की निशानी नहीं कही जा सकतीं। सरकार बेशक नारों में सबको साथ लेकर विकास के रास्ते पर चलने का संकल्प दोहराती हो, पर ऐसी घटनाएं दरअसल विकास के राह का रोड़ा ही साबित होती हैं। इन घटनाओं के लिए विश्व हिंदू परिषद ने अल्पसंख्यक समुदाय और वामपंथी नेताओं को दोषी ठहराया है, जिनके उकसावे में आकर लोगों ने रामनवमी की शोभा यात्राओं पर पथराव किए और हिंसा भड़की, तो वामपंक्षी दक्षिणपंथ को दोषी ठहरा रहे हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रामनवमी के दिन मांस पकाने पर रोक को लेकर दो गुटों में हिंसक झड़प हो गई। पर दक्षिणपंक्षी छात्र संगठन का कहना है कि वामपंथी छात्रों ने पूजा में विघ्न डालने की कोशिश की, जिसके चलते दोनों गुट गुत्थम-गुत्था हो गए। यह पहली बार था, जब रामनवमी के दिन देश में सत्रह जगहों पर लगभग एक ही तरह से हिंसा भड़की और उसमें दो लोगों की जान चली गई, कई लोग गंभीर रूप से घायल हैं। इसे महज इत्तेफाक नहीं माना जा सकता। इसके पीछे कुछ वजहें साफ हैं।

पिछले कुछ समय से कर्नाटक में पहले हिजाब, फिर मंदिरों में दुकानें लगाने, फल-सब्जी आदि बेचने को लेकर जिस तरह एक समुदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा था, उसका अनुकरण दूसरे राज्यों में भी देखा गया। मंदिरों के सामने से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को फलों-सब्जियों की रेहड़ियां हटाने को कहा जाने लगा। फिर नवरात्र में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध की मांग ने जोर पकड़ा। इसके पहले कई जगहों पर कुछ संत-साधुओं ने जिस तरह धर्म संसद करके भड़काऊ भाषण दिए, उससे भी समाज में उन्माद का माहौल बना और उपद्रवी तत्त्वों को शह मिली।

हालांकि बताया जा रहा है कि कुछ जगहों पर शोभा यात्रा पर अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से पथराव किया गया। अगर यह सच है, तो यह उस समुदाय के नेताओं की जिम्मेदारी मानी जाएगी। उनमें से भी कुछ ने पिछले दिनों कहीं-कहीं उकसाने वाले भाषण दिए थे। इसलिए समाज में समरसता कायम करने में उनसे भी बराबर के सहयोग की अपेक्षा की जाती है। हालांकि उनके खिलाफ जिस तरह का वातावरण समाज में बनता गया है, उससे अल्पसंख्यक समुदाय में एक प्रकार का भय स्पष्ट दिखाई देता है। प्रशासन भी ऐसी घटनाओं के वक्त प्राय: चुप्पी साधे नजर आता है। वैसे भी सामाजिक सौहार्द की जिम्मेदारी बहुसंख्यक समुदाय पर अधिक होती है।

रामनवमी के दिन हुई घटनाओं की प्रकृति को देखते हुए स्वाभाविक ही कहा जा रहा है कि वे सुनियोजित थीं। पर वे घटित हो गर्इं, तो यह संबंधित राज्य सरकारों और प्रशासन की लापरवाही का नतीजा ही कही जा सकती हैं। ऐसे आयोजनों के बारे में पुलिस को पहले से जानकारी होती है। अगर वह सचमुच इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रतिबद्ध होती, तो वे होने ही नहीं पातीं। कई जगह लोगों के आरोप हैं कि पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

फिर, वे राज्य सरकारें इस तरह का माहौल बना कर आखिर क्या हासिल करना चाहती हैं। जिन समाजों में आंतरिक तनाव लगातार बना रहता है, हिंसक घटनाएं होती रहती हैं, उनका विकास कभी नहीं हो पाता। विचित्र है कि ऐसी घटनाओं पर कानूनी कार्रवाई में भी शिथिलता देखी जाती है। सरकारों का कर्तव्य समाज में सौहार्द बनाना होता है, न कि उन्मादियों का संरक्षण करना।


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