गरीबों को मुफ्त अनाज
केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीबी रेखा के नीचे प्रत्येक परिवार को प्रतिमाह 35 किलो अनाज मुफ्त सुलभ कराने की घोषणा करने के साथ ही प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण अन्न योजना को भी इसमें समाहित कर दिया है जिससे भारत के प्रत्येक नागरिक या परिवार को भोजन की गारंटी मिल सके। हालांकि भोजन के अधिकार के नाम से विख्यात राष्ट्रीय सुरक्षा खाद्य अधिनियम 2013 में डा. मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान पारित हुआ
आदित्य चोपड़ा: केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीबी रेखा के नीचे प्रत्येक परिवार को प्रतिमाह 35 किलो अनाज मुफ्त सुलभ कराने की घोषणा करने के साथ ही प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण अन्न योजना को भी इसमें समाहित कर दिया है जिससे भारत के प्रत्येक नागरिक या परिवार को भोजन की गारंटी मिल सके। हालांकि भोजन के अधिकार के नाम से विख्यात राष्ट्रीय सुरक्षा खाद्य अधिनियम 2013 में डा. मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान पारित हुआ था मगर इसे सुचारू रूप से लागू करने की जिम्मेदारी 2014 में सत्ता में आयी मोदी सरकार को ही निभानी पड़ी थी। केन्द्र सरकार ने 2020 में कोरोना संक्रमण के फैलने पर इस अधिकार के अतिरिक्त गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रति माह पांच किलो अनाज मुफ्त प्रदान कराने की योजना भी लागू की थी। इस योजना को दिसम्बर 2022 तक बढ़ा दिया गया था जबकि खाद्य सुरक्षा अधिनियम बदस्तूर लागू था। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत गरीब परिवारों को चावल तीन रु., गेहूं दो रु. व मोटा अनाज एक रु., प्रतिकिलो की दर से मुहैया कराया जाता था। अब यह मुफ्त सुलभ कराया जायेगा और यह योजना 1 जनवरी 2023 से शुरू होकर 31 दिसम्बर 2023 तक लागू रहेगी।इसी प्रकार केन्द्र सरकार ने फौज के तीनों अंगों के सेवानिवृत्त अधिकारियों व जवानों को 'एक रैंक-एक पेंशन' फार्मूले के तहत पेंशन देने का फैसला लागू कर दिया है और इसे पिछली तारीखों से लागू करते हुए सभी सैनिक रिटायर्ड कर्मचारियों को बकाया धनराशि का भुगतान करने का फैसला भी किया है। सरकार के यह दोनों फैसले जनहित में हैं खास कर रिटायर्ड फौजी अपनी मांगें मनवाने के लिए काफी मुखर थे और कई बार अहिंसक संघर्ष भी कर चुके थे, परन्तु एक रैंक-एक पेंशन का फैसला भी सैद्धान्तिक रूप से 2014 में ही कर दिया गया था। मगर इसे लागू करने में बाद में कई व्यावहारिक दिक्कतें आ रही थी। अब ये सभी दिक्कतें दूर कर ली गई हैं। सरकार को इन दोनों ही फैसलों को लागू करने पर भारी व्यय भी वहन करना पड़ेगा। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अनाज को मुफ्त मुहैया कराने पर ही दो लाख करोड़ रुपए वार्षिक का खर्च आयेगा। परन्तु गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की क्रय शक्ति को देखते हुए इसे पूरी तरह तार्किक माना जा सकता है क्योंकि उपभोक्ता बाजार में अन्य खाद्य वस्तुओं की महंगाई को देखते हुए यह मदद गरीब परिवारों के भरण-पोषण में राहत मात्र ही होगी। भारत की 135 करोड़ आबादी को देखते हुए 81 करोड़ से अधिक लोग ऐसे हैं जो इस मदद का लाभ उठायेंगे। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इनकी क्रय शक्ति की स्थिति क्या होगी? इसका सम्बन्ध प्रति व्यक्ति आमदनी से भी जाकर जुड़ता है जिसे देखते हुए खाद्य सुरक्षा कानून बनाया गया था। परन्तु इसके तहत मुफ्त अनाज उपलब्ध कराये जाने को लेकर सम्बन्धित कानून में आवश्यक संशोधन भी करना पड़ेगा। सरकार इस बारे में शीघ्र ही कार्रवाई करेगी जिससे पूरे 2023 के वर्ष में प्रत्येक गरीब परिवार को अनाज मुफ्त मिल सके। भारत जैसे विकासशील देश में अन्न सुरक्षा कानून के तहत शहरों की पचास प्रतिशत आबादी व गांवों की 75 प्रतिशत आबादी आती है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आर्थिक असमानता का स्तर क्या है? इस असमानता को पाटने की गरज से ही खाद्य सुरक्षा कानून बनाया गया था जिसका पालन पिछले नौ वर्षों से हो रहा है। मगर हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अगले वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं, अतः इन उपायों के राजनैतिक आयाम भी हो सकते हैं। इसके बावजूद सरकार का फैसला सराहनीय कहा जायेगा क्योंकि लोकतन्त्र में नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति करना सरकार का प्राथमिक दायित्व होता है। संपादकीय :कोरोना गया नहीं, सावधानी जरूरी हैकोरोना गया नहीं, सावधानी जरूरी हैतालिबानी पिंजरे में अफगान महिलाएंनियन्त्रण रेखा पर स्थायित्व?कोरोना अभी समाप्त नहीं हुआखुले समंदर में भारतीय कानूनभारत चूंकि एक लोक कल्याणकारी राज की अवधारणा पर बना स्वतन्त्र देश है, अतः इसमें प्रत्येक नागरिक के कल्याण को ध्यान में रखना सरकार का धर्म माना गया है। परन्तु भारत अब बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के दौर में है जिसे देखते हुए सरकार इस दायित्व से भी बंधी है कि प्रत्येक नागरिक की मासिक आमदनी कम से कम इतनी जरूर हो जिससे वह बाजार की ताकतों से तय होती उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत तक अपनी पहुंच बना सके। क्योंकि कोई भी सरकार हर नागरिक को सभी आवश्यक वस्तुएं मुफ्त सुलभ नहीं करा सकती। इस मामले में सरकार को श्रम की कीमत इतनी तय करनी होती है कि बाजार की ताकतों के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके। इसी सामंजस्य से गरीब नागरिक की क्रय शक्ति या औसत आमदनी का निर्धारण होता है। इसका सम्बन्ध सीधा रोजगार से जाकर जुड़ता है अतः रोजगार के मोर्चे पर भी सरकार को दूरदर्शिता पूर्ण उद्देश्य परक कदम उठाने पड़ते हैं वरना विभिन्न क्षेत्रों से बेरोजगारी भत्ते की मांग उठनी शुरू हो जाती है। कल्याणकारी राज में सरकार अपने नागरिकों की आर्थिक हैसियत देखकर जो भी सुविधाएं उन्हें उपलब्ध कराती है, वह कोई खैरात या दया नहीं होती बल्कि उनका अधिकार होता है क्योंकि प्रत्येक नागरिक किसी न किसी रूप में राष्ट्र के विकास में अपना योगदान देता है। वैसे भी लोकतन्त्र का यह नियम होता है कि नागरिकों को सुविधाएं उनके कानूनी हक के रूप में मिलती हैं क्योंकि उन्हीं के एक वोट की ताकत से सरकारों का गठन या बदलाव होता है।