कांग्रेस में सुगबुगाहट
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पिछले शनिवार पोल स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर से हुई मुलाकात के बाद सोमवार को दोनों के बीच एक और बैठक की खबर आई। दोनों बैठकों में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता शामिल थे।
नवभारतटाइम्स; कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पिछले शनिवार पोल स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर से हुई मुलाकात के बाद सोमवार को दोनों के बीच एक और बैठक की खबर आई। दोनों बैठकों में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता शामिल थे। इससे कुछ दिनों पहले यह खबर आई थी कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस नेताओं के सामने प्रजेंटेशन दिया है। इसमें पार्टी के रिवाइवल को लेकर सुझाव देने की बात कही गई। इस बारे में कांग्रेस ने कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं दिया है, लेकिन राजनीतिक हलकों में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। कहा यह भी जा रहा है कि प्रशांत किशोर बाकायदा पार्टी में शामिल होने को तैयार हो गए हैं और बहुत संभव है, सप्ताह के अंत तक इस बारे में औपचारिक घोषणा हो जाए।
इन अपुष्ट खबरों को फिलहाल एक तरफ कर दिया जाए तो भी इतना तो है ही कि इन मुलाकातों और बैठकों ने कांग्रेस को एक बार फिर राजनीतिक हलकों की औपचारिक-अनौपचारिक चर्चा के केंद्र में ला दिया है। न केवल इस पर बात होने लगी है बल्कि विभिन्न पार्टियों में और स्वतंत्र प्रेक्षकों के बीच इसका आकलन भी होने लगा है कि अगर सचमुच प्रशांत किशोर कांग्रेस के साथ जुड़ते हैं तो आगे के चुनावी परिदृश्य पर किस तरह का और कितना प्रभाव पड़ सकता है। पांच राज्यों के हालिया विधानसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद पार्टी के अंदर और बाहर कांग्रेस नेतृत्व को लेकर जिस तरह का निराशाजनक माहौल बना दिख रहा था, उसमें यह बदलाव भी कम बड़ी बात नहीं है। लेकिन बात ऐसे सांकेतिक बदलावों तक सीमित रही तो काम नहीं चलेगा।
अगर इन मुलाकातों को इतनी दिलचस्पी से देखा जा रहा है तो इसका कारण ही यह है कि बहुतों को इनमें हालात बदलने की संभावना नजर आ रही है। प्रशांत किशोर से न तो कांग्रेस नेताओं की बातचीत नई है और न ही कांग्रेस में उनसे सहयोग लेने का विचार नया है। अब तक ऐसे एकाधिक प्रस्ताव कुछ दूर चलकर बिना कोई नतीजा दिए समाप्त हो गए। इसके बावजूद जब इस बार खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस प्रस्ताव को इतनी अहमियत दी तो इसका संदेश साफ है कि पार्टी सर्वोच्च स्तर पर इस बारे में मन बना चुकी है। यानी अब उसे यह स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं है कि उसे कांग्रेस के रिवाइवल के लिए बाहर के किसी शख्स की मदद लेने की जरूरत है और यह भी कि उसे काम करने के अंदाज में, फैसले करने के ढंग में और पार्टी चलाने के तौर-तरीकों में बड़े बदलाव करने होंगे।
जहां तक प्रशांत किशोर की बात है तो बतौर पोल स्ट्रैटेजिस्ट वह अपनी काबिलियत कई बार साबित कर चुके हैं। उनका विपक्ष की कई पार्टियों के नेतृत्व से अच्छा तालमेल है। यानी अगर कांग्रेस के साथ उनके सहयोग का यह प्रस्ताव अमल में आता है तो उसका फायदा न केवल कांग्रेस को बल्कि पूरी विपक्षी राजनीति को मिल सकता है। यह उन सबके लिए राहत की बात हो सकती है जो लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष को आवश्यक मानते हैं।