काबुल में फिदायीन हमला
अमरीका अपने सैनिकों की मौत नहीं भूलेगा। ये आतंकी अमरीका की बर्बादी चाहते हैं।
दिव्याहिमाचल.
जिसकी आशंका व्यक्त की गई थी, अंतत: वही हुआ। काबुल हवाई अड्डे पर और उसके आसपास तीन सिलसिलेवार आत्मघाती, फिदायीन हमले किए गए। उनमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और करीब 200 मासूम घायल बताए जाते हैं। मौत का यह आंकड़ा बढऩा लगभग तय है, क्योंकि कई गंभीर रूप से ज़ख्मी हुए हैं। आतंकी हमले में 13 अमरीकी सैनिक और 90 अफगान भी हताहत हुए हैं, जबकि 15 अमरीकी सैनिक घायल बताए गए हैं। हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस-खुरासान आतंकी गुट ने ली है। यह बगदादी के आईएस की नई पीढ़ी है। अमरीका पर 9/11 आतंकी हमले के बाद यह सबसे बड़ा आतंकी हमला है, लिहाजा राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा है कि अमरीका अपने सैनिकों की मौत नहीं भूलेगा। ये आतंकी अमरीका की बर्बादी चाहते हैं।
हम उन्हें माफ नहीं करेंगे और ढूंढकर मारेंगे। हमें कुछ जानकारी भी है कि हमला किसने किया। उनके पीछे कौन शामिल हैं और यह आत्मघाती हमला क्यों किया गया है? इस त्रासद और शोकाकुल घड़ी में अमरीकी झंडे को 30 अगस्त तक आधा झुकाया गया है। यह अमरीका की कई स्तरीय पराजय है, लिहाजा उसके सामने आतंकियों को ढूंढने और उन्हें मारने की बहुत बड़ी चुनौती है। अमरीका ने आईएसआईएस के खलीफाई मुखिया बगदादी को मार दिया था। खुरासान गुट पर भी हवाई हमले किए गए। दर्जनों आतंकी ढेर भी हुए, ठिकाने धूल-मलबा हो गए। यह सब भी अफगानिस्तान के नंगरहार के इलाके में होता रहा, लेकिन 26 अगस्त, 2021 की सायं करीब 5 बजे और उसके बाद तीन धमाके कर आईएस-खुरासान ने साबित कर दिया कि उसका आतंकवाद अब भी जि़ंदा है। बहरहाल आत्मघाती हमले के बाद काबुल धुआं-धुआं हो गया। सात और धमाकों के दावे किए जा रहे हैं। हवाई अड्डे पर और उसके बाहर लाशें ही लाशें, खून और मांस के लोथड़े, चीत्कार और रूह कंपा देने वाला मंजर है। आईएस-खुरासान ने चेतावनी और धमकी दी है कि अमरीका और उसके मददगारों को अभी काबुल में मारा है। आगे और भी हमले किए जाएंगे।
इस तरह अफगानिस्तान की सरज़मीं पर एक और जंग की शुरुआत हो गई है। अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन ने कमांडरों को 'बदला लेने के आदेश दे दिए हैं। दूसरी तरफ तालिबान के दावे खोखले साबित हुए हैं कि वे किसी को भी अपनी सरज़मीं के दुरुपयोग की इज़ाज़त नहीं देंगे। तालिबान ने इसी खूनी परिदृश्य के दौरान 'विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश की है कि उसके भी 28 लड़ाके मारे गए हैं। दरअसल तालिबान, आईएस-खुरासान और हक्कानी नेटवर्क की जड़ें आपस में मिली हैं। जितने भी आतंकी गुट और आतंकी हैं, वे आतंकवाद को ही बढ़ाएंगे। हुकूमत में हिस्से को लेकर उनके बीच तलवारें खिंच सकती हैं, लेकिन फिलहाल साझा दुश्मन अमरीका ही है। न्यूयॉर्क के वल्र्ड टे्रड सेंटर पर 9/11 आतंकी हमला और उसमें करीब 3000 लोगों की नापाक हत्या के बाद अलकायदा का संस्थापक सरगना लादेन अमरीका के निशाने पर था, जिसकी तलाश में अमरीकी सैनिक अफगानिस्तान तक आए थे। लादेन पाकिस्तान में मिला और 2 मई, 2011 को अमरीकी कमांडोज ने उसे मार दिया। अफगानिस्तान में 20 साल की लड़ाई में अमरीका ने क्या हासिल किया, आतंकवाद को नेस्तनाबूद क्यों नहीं कर पाया और अब आईएस आतंकियों की तलाश करके उन्हें कैसे मार देगा, ये बेहद अहम सवाल हैं। सिर्फ अमरीका ही नहीं, अब नाटो देशों की सेनाएं भी आतंकियों के निशाने पर हैं। अमरीका के लिए यह नई लड़ाई भी नाक का सवाल है, क्योंकि उसे दुनिया 'सुपर पॉवरÓ मानती है। अब अमरीका को अपनी ताकत साबित करनी है, क्योंकि अब चीन भी अंदरखाने अट्टहास कर रहा होगा! अब अमरीका अफगानिस्तान में ही रहेगा और पंजशीर सरीखे विद्रोहियों को समर्थन देकर तालिबान को कमजोर करेगा, यह सब कुछ आने वाले दिनों में साफ होगा। अब भारत के लिए भी चुनौतियां बढ़ गई हैं।