दिखने लगे झूठ के पैर: कृषि कानूनों के विरोध में बुलाए गए देशव्यापी चक्का जाम को नहीं मिला आम किसानों का समर्थन

कृषि कानूनों के विरोध में बुलाए गए चक्का जाम ने जिस तरह पंजाब के अलावा अन्य कहीं अपना कोई खास असर नहीं दिखाया |

Update: 2021-02-07 01:56 GMT

कृषि कानूनों के विरोध में बुलाए गए चक्का जाम ने जिस तरह पंजाब के अलावा अन्य कहीं अपना कोई खास असर नहीं दिखाया, उससे दिल्ली को घेर कर बैठे किसान संगठनों को यह समझ आ जाए तो बेहतर कि उनके आंदोलन को देश के आम किसानों का समर्थन हासिल नहीं है। यह बात संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के फेर में किसान संगठनों को समर्थन दे रहे विपक्षी दलों और खासकर कांग्रेस को भी समझ आनी चाहिए। विपक्षी दल कृषि कानूनों के मामले में किस तरह महज विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति का परिचय देने में लगे हुए हैं, यह इससे साबित होता है कि वे राज्यसभा में तो किसानों के मुद्दे पर बहस करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन लोकसभा में हंगामा करते रहते हैं। संसद के एक सदन में दूसरे सदन से उलट व्यवहार विपक्ष की दिशाहीन राजनीति का ही परिचायक है। किसान संगठनों और उनका साथ दे रहे विपक्षी दलों को इससे अवगत होना चाहिए कि झूठ के पैर नहीं होते। उनका यह दुष्प्रचार ज्यादा दिनों तक टिकने वाला नहीं है कि सरकार किसान नेताओं की कोई बात सुनने को तैयार नहीं, क्योंकि सच्चाई यही है कि सरकार ने उनसे 11 दौर की बातचीत में लगातार नरमी का परिचय दिया है।

सरकार केवल कृषि कानूनों की कथित खामियों को दूर करने और उन्हेंं डेढ़ साल तक रोकने पर ही सहमत नहीं है। वह किसान नेताओं की मांग पर बिजली संशोधन विधेयक वापस लेने और पराली जलाने पर दंडात्मक कार्रवाई वाला प्राविधान हटाने को भी तैयार है। इसके अलावा वह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर लिखित गांरटी देने की भी पेशकश कर चुकी है। स्पष्ट है कि इसके बाद भी किसान संगठनों का यह कहना कोरा झूठ ही है कि सरकार उनकी सुन नहीं रही। सच तो यह है कि खुद किसान नेता अपने रुख पर अड़े हुए हैं। वे जिस तरह टस से मस होने को तैयार नहीं, उससे यही लगता है कि उनका इरादा पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपेक्षाकृत समर्थ किसानों की आड़ में अपने संकीर्ण स्वार्थ साधना है। उनके इसी रवैये के कारण देश का आम किसान कृषि कानून विरोधी आंदोलन का साथ नहीं दे रहा है। इसकी पुष्टि चक्का जाम आंदोलन के मामूली असर से भी हो जाती है। किसान नेता कुछ भी दावा करें, आम किसान यह जान रहे हैं कि नए कृषि कानून उन पर कोई प्रतिकूल असर डालने के बजाय उन्हेंं बिचौलियों के चंगुल से मुक्त करने और बाजार से जुड़ने का अवसर देने वाले हैं। यह दुखद है कि किसान नेता आम किसानों के हितों की ही अनदेखी करने में लगे हुए हैं।



Tags:    

Similar News

मुक्ति
-->