कृत्रिम होते अहसास

तब से अब तक यह पूरी शिद्दत के साथ विविध रूप में जारी है। प्रेम की प्रवृत्ति ने ही जीव मात्र के अस्तित्व को कायम रखा है। उसमें रंग और नूर भरा है। प्रेम शब्दों, भाषाओं और सरहदों की सीमा से परे है। बहुरंगी छटाओं वाले इस डेढ़ आखर के शब्द की उड़ान और सीमाएं अनंत है। यह हवा से भी हल्की और पहाड़ से भी भारी है। जीवन के एकरेखीय प्रवाह में यह लय भरता है।

Update: 2022-12-12 05:55 GMT

संगीता सहाय; तब से अब तक यह पूरी शिद्दत के साथ विविध रूप में जारी है। प्रेम की प्रवृत्ति ने ही जीव मात्र के अस्तित्व को कायम रखा है। उसमें रंग और नूर भरा है। प्रेम शब्दों, भाषाओं और सरहदों की सीमा से परे है। बहुरंगी छटाओं वाले इस डेढ़ आखर के शब्द की उड़ान और सीमाएं अनंत है। यह हवा से भी हल्की और पहाड़ से भी भारी है। जीवन के एकरेखीय प्रवाह में यह लय भरता है।

जीवन को सरल बनाने और उसके सौंदर्य को बचाए रखने में प्रेम की भूमिका हर दौर में अहम रही है। पर आज के बदलते दौर का असर प्रेम पर भी व्यापक रूप से पड़ा है। हर चीज की तरह इस पाकीजगी से भरे भाव पर भी व्यावसायिकता, छद्म आधुनिकता और नकारात्मकता का असर पड़ा है। कोमल अहसासों से लबरेज यह शब्द पाशविकता की जद में आने लगा है। पहले प्रेम फिर जिद, अहं, धर्म, कट्टरता, चालाकी आदि के लिए प्रेमिका के साथ गलत व्यवहार, उसकी जान लेना जैसी बातें आम होने लगी हैं।

पिछले डेढ़ दो दशकों में देश में हुए आर्थिक, सामाजिक उन्नति और बाजारवाद के विस्तार ने हमारे समाज को गहरे तक प्रभावित किया है। सूचना क्रांति की व्यापकता ने इस बदलाव के प्रभाव को और बढ़ाया है। यह बदलाव सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों संदर्भों में हुआ है। इस क्रांति ने एक ओर आपसी संपर्क को बढ़ाया है, वाणिज्य-व्यावसाय, कला, विज्ञान, लेखन, आपसी संबंध हर क्षेत्र में विस्तार का नया आयाम गढ़ा है तो दूसरी ओर समाज में नकारात्मक विचारों, व्यक्तिवाद, भोगवाद की प्रवृत्ति का फैलाव भी किया है। इन बदलावों का असर मानवीय संबंधों पर भी व्यापक रूप से पड़ा है। विशेषकर स्त्री-पुरुष के आपसी संबंधों पर।

बढ़ता व्यक्तिवाद, सब कुछ पा लेने की असीम चाहत, अपने मनचाहे को किसी भी कीमत पर हासिल करने की प्रवृत्ति आदि तथ्यों ने मानवीय रिश्तों के समीकरण को ही बिगाड़ दिया है। फलस्वरूप आज प्रेम जैसा सहज सरल प्रवाह भी गंदला होता जा रहा है। इस दौर में काफी हद तक प्रेम महज देह, दिखावा और संपत्ति की परिधियों में सिमटने लगा है।

पहले एकतरफा प्रेम, फिर उसकी असफलता पर लड़की के ऊपर तेजाब डालने, उसे प्रताड़ित करने जैसे जघन्य कुकृत्य भी सरेआम हो रहे हैं। लोग प्रेम को भी अपनी शक्ति और अपने रसूख से तौलने लगे हैं। हमेशा से औरत को कमजोर और दोयम मानने, उसे अपनी संपत्ति के रूप में देखने की मानसिकता ने ऐसे अपराधों को बढ़ाया है। ऐसा लग रहा है जैसे हम प्रेम के रागात्मक और भावात्मक स्वरूप को ही भूलते जा रहे हैं।

प्रेम में दिखावटी आधुनिकता के रंग ने इसके स्वरूप को और बदला है। इस राह में पहले धीरे-धीरे कदम रखता बाजारवाद आज पूरी तैयारी और गति के साथ 'प्रेम' खरीदने और बेचने की दुकान सजा बैठा है। शाश्वत और अजर-अमर प्रेम के उपासक देश के युवा दो-चार दिन वाले प्रेम के रंग में डूबे दिख रहे हैं। उनके लिए प्रेम मन और आत्मा के एकालाप का विषय न होकर दिखावे, रसूख, जोर-जबरदस्ती, शारीरिक भूख और रासरंग का विषय बन चुका है।

यह बेवजह नहीं है कि इस दौर में प्रेम भी डर और भय का मामला बनता गया है, क्योंकि हर प्रेमी, प्रेम में 'हां' ही सुनना चाहता है, 'नहीं' सुनना उसके कोष का हिस्सा नहीं होता। ऐसे में प्रेम जिद और कथित सम्मान का प्रश्न बन जाता है। यही जिद का भाव कब किसी प्रेमी को हैवान बना देता है, वह खुद ही जान नहीं पाता। प्रेम के नाम पर तेजाबी हमला, हत्या, सामूहिक बलात्कार जैसी भयावह घटनाएं आम होने लगी हैं।

प्रेम में होने का दावा करता युवक लड़की के 'ना' कहने पर इसे अपने पौरुष का अपमान समझने लगता है और दर्प में आकर इतना विवेकशून्य हो जाता है कि जिसे उसने प्रेयसी कहा था, उसी की हत्या, बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम दे देता है। दूसरी ओर, प्रेम में 'ना' सुनने पर आत्महत्या की घटनाएं भी खूब होने लगी हैं।

प्रेम वह है, जो 'मैं' और 'तू' को एकसार कर दे। यह व्यक्ति में संयम, आत्मनियंत्रण और धैर्य का संचार करता है। अंधाधुंध भागते जीवन में लय का समावेश करता है। धैर्य, साहस, समर्पण प्रेम का प्राणतत्त्व है। यह व्यक्ति के भीतर के राग-द्वेष को मिटाकर उसमें आनंद का भाव भरता है। यह व्यक्ति को हर बाधा और विपदा से लड़ने की शक्ति देता है।

पर बदलते समय, बदलते परिवेश और इंसान की बदलती चाहतें प्रेम की परिभाषा को ही बदलती जा रही हैं। आवश्यकता इस बात है कि संवेदनशील होकर इस विषय पर गहराई से सोचा जाए। घर, परिवार और समाज हर स्तर पर जीवन के इस महत्त्वपूर्ण विषय पर परिष्कृत समझ विकसित होने की आवश्यकता है। युवाओं के आवेग और भटकाव को सही दिशा देने के लिए प्रेम के सही संदर्भ को उन्हें बताने और समझाने की जरूरत है। इसी में प्रेम की जीत है।


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