कोरोना महामारी के समय भी जिस भारतीय शेयर बाजार को हम चढ़ते हुए देख रहे थे, क्या वह अब बुरे दौर से गुजरने लगा है? सोमवार को सप्ताह के पहले ही दिन शेयर बाजार में भारी गिरावट ने तमाम संभावनाओं और आशंकाओं पर सोचने को मजबूर कर दिया है। सोमवार को सेंसेक्स और निफ्टी, दोनों में ढाई फीसदी से अधिक की गिरावट देखी गई है। सेंसेक्स 1545.67 अंकों का गोता लगाकर 57,491.51 के स्तर पर बंद हुआ है, जबकि निफ्टी 468.05 अंक गिरकर 17,149.10 पर पहुंच गया है। कुछ अचरज भी होता है कि देश का आम बजट आने वाला है और शेयर बाजार में लगातार पांचवें दिन गिरावट दर्ज हुई है। सोमवार को शेयर बाजार को करीब 10 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ है। पिछले पांच दिन में सेंसेक्स करीब 3,900 अंक टूट चुका है। पांच दिन में निवेशकों को 17 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। सिरमौर समझी जाने वाली चंद कंपनियों ने भी निराश किया है। गौर करने वाली बात है कि सोमवार को अर्थव्यवस्था के लगभग सभी सेक्टर्स में कमजोरी देखी जा सकती है, रियल एस्टेट, मेटल, मीडिया, आईटी और ऑटो में सबसे ज्यादा कमजोरी देखने को मिली है।
बैंकों के शेयर भी दबाव में हैं और कुल मिलाकर आश्वस्त भाव से यह नहीं कहा जा सकता कि फलां कारोबारी सेक्टर अभी सही है। हालांकि, इस गिरावट के बावजूद कुछ कंपनियां ऐसी भी हैं, जो अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। सब कुछ निराशाजनक नहीं है, लेकिन यह सोचने वाली बात है कि ऐन बजट से पहले शेयर बाजार को क्या होने लगा है? सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों, टीसीएस और इन्फोसिस को 1,09,498.10 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। बजट सत्र से पहले ऐसे तनाव या गिरावट को व्यावसायिक रूप से बहुत अस्वाभाविक नहीं मानना चाहिए, लेकिन इस गिरावट की नैतिकता या वजह पर बहस जरूर हो सकती है।
देश के आम बजट में लगभग सप्ताह भर का समय बचा है। ऐसे में, दो-तीन संभावनाओं पर हमें गौर करना चाहिए। जो बाजार कोरोना महामारी के समय भी तेजी से बढ़ रहा था, वह बिना किसी ठोस कारण के लुढ़क रहा है, तो क्या इसके पीछे बड़े निवेशकों की कोई रणनीति है? क्या बजट से ठीक पहले शेयर बाजार अपनी खुशनुमा स्थिति को छिपाकर किसी निराशा का प्रदर्शन करना चाहता है? क्या निवेशकों को बजट से कोई ऐसी उम्मीद है, जिसे पूरा करने की दिशा में वे सक्रिय हो गए हैं या उन्हें कोई प्रतिकूल सूचना मिल गई है? शायद भारत में जो लोग पूंजी के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं, वे बढ़ते अमीर व गरीब की सूची सामने आने के बाद सक्रिय हुए हैं। दुनिया भर में ऐसे अमीर भी हैं, जो आगे बढ़कर बोल रहे हैं कि जब दुनिया मुसीबत में है, तब उसकी बेहतरी के लिए हम पर टैक्स लगा लीजिए। कोरोना के मुश्किल समय में भी भारत में चालीस से ज्यादा नए अरबपति पैदा हो गए हैं। मुश्किल समय में भी शेयर बाजार में पूंजी बढ़ने की वजह सामने आ चुकी है। शायद चंद पंूजीपतियों को लग रहा होगा कि आगामी बजट में उनको मिल रही कुछ रियायत भी छिनेगी और वे कोई नया आर्थिक पैकेज लेने में नाकाम होंगे। ऐसे में, शेयर बाजार का तनाव में आना स्वाभाविक है, लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि छोटे निवेशकों का सावधान रहना।
हिन्दुस्तान