यथोचित मुआवजा

कोरोना से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, वह स्वागतयोग्य है।

Update: 2021-07-01 02:00 GMT

कोरोना से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, वह स्वागतयोग्य है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को साफ निर्देश दिया है कि वह कोविड-19 से मरने वालों के परिवारों को अनुग्रह राशि का भुगतान करने के लिए छह हफ्ते के भीतर दिशा-निर्देश तैयार करे। वास्तव में, केंद्र सरकार किसी मुआवजे के पक्ष में नहीं थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसके उलट फैसला दिया है। वैसे अदालत ने सावधानी बरतते हुए अपनी ओर से मुआवजे की कोई राशि तय नहीं की है और यह काम राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के जिम्मे छोड़ दिया है। ध्यान रहे, किसी-किसी कोरोना मरीज के उपचार में दस-दस, बीस-बीस लाख रुपये तक खर्च हुए हैं। मृतकों के परिजनों ने ऑक्सीजन, अस्पताल बिस्तर व दवाओं के मोर्चे पर बहुत ही बुरे और महंगे दौर को भारी मन से झेला है। जो जान चली गई, उसकी भरपाई संभव नहीं, पर इलाज की वजह से कर्ज का जो बोझ बढ़ा है, परिवारों की गरीबी बढ़ी है, उसके मद्देनजर ही मुआवजा तय होना चाहिए।

गौरतलब है कि बिहार सरकार पहले से ही कोरोना मृतकों के आश्रित परिजनों को चार-चार लाख रुपये मुआवजा दे रही है। इतना मुआवजा जब अपेक्षाकृत कम बजट रखने वाली बिहार सरकार दे सकती है, तब दूसरे राज्य और कम से कम केंद्र सरकार को इससे ज्यादा ही मुआवजा तय करना चाहिए। खैर, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से इतना तो तय है कि आगामी समय में पीड़ित परिजनों को कुछ तो राहत हासिल होगी। याचिकाकर्ताओं ने बिल्कुल सही मांग की है कि केंद्र और राज्यों को कोरोना से जान गंवाने वालों के परिवारों को कानून के तहत चार-चार लाख रुपये का मुआवजा देने और मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने के लिए एक समान नीति की पालना करनी चाहिए।
इसमें कोई शक नहीं कि मुआवजा विवेकपूर्ण और न्यायपूर्ण ढंग से वितरित होना चाहिए। तरह-तरह के मापदंड बनाकर किसी को इससे वंचित करना अनुचित होगा। एक समय ऐसा आया था, जब अपेक्षाकृत पिछडे़ राज्यों में मरीजों को बिस्तर नहीं मिल रहे थे, ऑक्सीजन का भयानक अभाव था, दवाओं की कालाबाजारी सरकारों की पकड़ से बाहर थी, तब बड़ी संख्या में मरीजों ने जान बचाने के लिए पड़ोसी राज्यों का रुख किया। अब बिहार सरकार के नए आदेश के अनुसार, राज्यवासियों को बिहार से बाहर मौत पर कोरोना अनुदान नहीं मिलेगा। यह आदेश क्या बिहार में चिकित्सा सेवाओं की जमीनी हकीकत के खिलाफ नहीं है? यह नियम देश में चले, तब तो नोएडा, गाजियाबाद से इलाज के लिए दिल्ली गए लोगों को उनके राज्य में मुआवजा नहीं मिल सकेगा? बिहार से बनारस या गोरखपुर या रांची गए मरीजों को मुआवजा नहीं मिल पाएगा? क्या हमने कभी सोचा है कि ये मरीज अपने राज्य से दूर इलाज कराने क्यों गए? मुआवजे के लिए अपने घर या राज्य में रहकर मरने की कथित अनिवार्यता कितनी जायज है? राज्य सरकारें अगर ऐसे नियम बनाएंगी, तो देश में बड़ी संख्या में ऐसे परिजन होंगे, जो मुआवजे से वंचित रह जाएंगे और समाज में गलत संदेश जाएगा। अत: मुआवजा तय करते और देते समय यह ध्यान रखना होगा कि किसी के साथ अन्याय न हो। फिर भी बुनियादी सवाल यही है कि प्रदेश-देश में इलाज और उसके संसाधनों का अभाव क्यों हुआ?


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