सस्ती राजनीति का उदाहरण, नए कृषि कानूनों के विरोध में राजनीतिक फायदा उठाने की हो रही कोशिश
क्या एक राजनीतिक मसले पर विरोध प्रदर्शन का यह तरीका हो सकता है कि सड़कें बाधित कर आवागमन ठप कर दिया जाए?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यह स्वीकार नहीं हो सकता कि विरोध के अधिकार के नाम पर देश की राजधानी को एक तरह से अपंग बना दिया जाए और फिर यह तर्क दिया जाए कि एक राजनीतिक मसले का समाधान चाहा जा रहा है। क्या एक राजनीतिक मसले पर विरोध प्रदर्शन का यह तरीका हो सकता है कि सड़कें बाधित कर आवागमन ठप कर दिया जाए? क्या विरोध का अर्थ आम लोगों के समक्ष मुसीबतें खड़ी करना है?
दुर्भाग्य से ऐसे ही रवैये का परिचय दिया जा रहा है और इसके केंद्र में कुछ और नहीं, राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश ही है। नए कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पहल हो या फिर अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल की प्रतिक्रिया, दोनों ही संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थो से प्रेरित हैं और इसका मकसद अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना है।
विडंबना यह है कि जो कांग्रेस ऐसे ही कृषि कानूनों का समर्थन कर रही थी और जिसने अपने घोषणापत्र तक में इस आशय की बातें लिखी थीं वह अब राजनीतिक दुराग्रह से ग्रस्त होकर इन कानूनों के खिलाफ मैदान में उतर आई है।
चूंकि कांग्रेस ने अपना रवैया बदल लिया है और वह पंजाब में खुद को किसान हितैषी दिखाने में जुट गई है इसलिए अकाली दल ने भी मजबूरी में आकर अपने नजरिये को परिवर्तित कर लिया है। यह वही अकाली दल है जो प्रारंभ में न केवल प्रस्तावित कृषि कानूनों का समर्थन कर रहा था, बल्कि इन कानूनों के खिलाफ अमरिंदर सिंह के दुष्प्रचार की काट भी कर रहा था, लेकिन अब राजनीतिक बढ़त लेने के फेर में दोनों ही दलों ने यह भुला दिया कि प्रारंभ में उनका रवैया क्या था। यह केवल सस्ती राजनीति ही नहीं, बल्कि किसानों के हित की आड़ में उनका जानबूझकर किया जाने वाला अहित भी है।
इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि किसानों के हित की आड़ में वस्तुत: आढ़तियों और बिचौलियों के हितों की पूर्ति करने का काम किया जा रहा है। इससे भी खराब बात यह है कि कई राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक संगठनों के लोग एक राजनीतिक-आर्थिक मसले को शरारतपूर्ण तरीके से धार्मिक रंग देने की भी कोशिश कर रहे हैं। यह लोगों को बरगलाकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता के साथ किया जाने वाला खिलवाड़ है। ऐसा ही खिलवाड़ नागरिकता संशोधन कानून के मामले में भी किया गया था। हर कोई इससे परिचित है कि शाहीन बाग में धरने के जरिये किस तरह दिल्ली को महीनों तक बंधक बनाने का काम किया गया था। अच्छा हो कि राजनीतिक दल अपनी हद को पहचानें और ऐसा कोई काम न करें जिससे समस्या और अधिक गंभीर रूप ले ले।