By NI Editorial
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा था कि जितना तेल और गैस अभी भी यूरोपीय देश खरीद रहे हैं, उसकी तुलना में भारत की खरीदारी बहुत कम है। अब इस बात के तथ्यात्मक सबूत भी सामने आए हैँ। यूक्रेन युद्ध के बाद के पहले दो महीने में रूसी ऊर्जा का सबसे बड़ा खरीदार जर्मनी रहा है।
पिछले दिनों जब रूस से भारत के कच्चे तेल की खरीदारी जारी रखने के बारे में विदेश मंत्री एस जय शंकर से पूछा गया, तो उन्होंने सीधे इशारा यूरोप की तरफ कर दिया था। उनका अर्थ यह था कि जितना तेल और गैस अभी भी यूरोपीय देश खरीद रहे हैं, उसकी तुलना में भारत की खरीदारी बहुत कम है। अब इस बात के तथ्यात्मक सबूत भी सामने आए हैँ। यह सच है कि यूक्रेन युद्ध के बाद के पहले दो महीने में रूसी ऊर्जा का सबसे बड़ा खरीदार जर्मनी रहा। एक स्वतंत्र रिसर्च एजेंसी ने हिसाब लगाया है कि इस अवधि में रूस ने करीब 63 अरब यूरो का जीवाश्म ईंधन बेचा है। 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला था। उसके बाद की जहाजों की आवाजाही, पाइपलाइनों में गैस के बहाव और मासिक व्यापार के पुराने आंकड़ों के आधार पर रिसर्चरों ने हिसाब लगाया है कि अकेले जर्मनी ने ही करीब 9.1 अरब यूरो का भुगतान रूस को किया है। युद्ध के पहले दो महीने में हुए इस भुगतान का ज्यादातर हिस्सा प्राकृतिक गैस की कीमत है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर यानी सीआरईए के मुताबिक पिछले साल जर्मनी ने तेल, कोयला और गैस के आयात पर करीब 100 अरब यूरो खर्च किए थे। इसका एक चौथाई रूस को गया था।
ये आंकड़े सामने आने पर जर्मन सरकार के लिए असहज स्थिति बनी। उसके प्रवक्ता ने कहा कि वे अनुमानों पर प्रतिक्रिया नहीं दे सकते। साथ ही सरकार ने अपना कोई आंकड़ा देने से भी इनकार कर दिया। रूस के जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर रहने के लिए जर्मनी की बड़ी आलोचना हुई है। कई देश यह चेतावनी दे रहे हैं कि इससे यूरोप और खुद जर्मनी की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता है। एक साल पहले जब अमेरिका जर्मनी के लिए रूसी गैस पाइपलाइन के निर्माण को रोकने की कोशिश में था, तब तत्कालीन जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने उसका विरोध किया था। जर्मनी के कुल आयात में रूसी नेचुरल गैस की हिस्सेदारी फिलहाल 35 फीसदी है। हाल ही में जर्मनी ने तय किया है कि 2035 तक वह अपनी सारी बिजली केवल अक्षय ऊर्जा से हासिल करने के लिये खुद को तैयार कर लेगा। दक्षिण कोरिया, जापान, भारत और अमेरिका ने भी युद्ध शुरू होने के बाद रूसी ऊर्जा खरीदी है, लेकिन यूरोपीय संघ की तुलना में यह बहुत कम है।