Environment: अगला साल हो सकता है सबसे गर्म, कार्बन उत्सर्जन में कटौती जरूरी

तो ऐ सी हीटवेव की संभावना हर पांच साल में एक बार होगी।

Update: 2022-12-29 03:51 GMT
ब्रिटेन के मौसम विभाग के मुताबिक, 2023 में पृथ्वी के औसत तापमान में सामान्य से 1.2 डिग्री की बढ़ोतरी दर्ज होगी। यहां सामान्य का तात्पर्य प्री-इंडस्ट्रियल (पूर्व औद्योगिक) स्तर (1850-1900) से है। इसके साथ ही यह दुनिया का अब तक का सबसे गर्म साल हो सकता है। अगर ब्रिटेन के मौसम विभाग की यह भविष्यवाणी सच हुई, तो 2023 लगातार दसवां साल होगा, जब धरती के तापमान में एक डिग्री से अधिक की वृद्धि दर्ज हो रही है।
दरअसल जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान में वृद्धि प्री-इंडस्ट्रियल स्तर (1850-1900) से मापी जाती है, क्योंकि 1850-1900 के बाद से विकास के तेज रथ पर सवार दुनिया में इंसानी गतिविधियों ने बेहिसाब ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को जन्म दिया है, जिसका नतीजा जलवायु परिवर्तन के रूप में हमारे सामने है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के चलते पृथ्वी के बीते 2,000 वर्षों के इतिहास की तुलना में अब बीते कुछ दशकों में धरती का तापमान बेहद तेजी से बढ़ रहा है।
फिलहाल मानव इतिहास में 1850 के बाद से अब तक का सबसे गर्म साल 2016 रहा है, लेकिन अब आने वाला नया साल 2023 लगता है, उसे भी पीछे छोड़ देगा। यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए देशों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है, जो मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं।
वैश्विक तापमान का विश्लेषण कई वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा नियमित रूप से किया जाता है। कॉपरनिकस के अलावा, नासा, एनओएए, बर्कले अर्त और हैडली वेधशालाएं पूरे वर्ष वैश्विक तापमान की निगरानी करती हैं। वे अलग-अलग तरीकों का उपयोग करते हैं, इसलिए डाटासेटों के बीच छोटे अंतर होते हैं। इन छोटी विसंगतियों के बावजूद, सभी विश्लेषण समग्र प्रवृत्ति की पुष्टि करते हैं कि हाल के वर्ष लगातार रिकॉर्ड स्तर पर गर्म रहे हैं।
दूसरी तरफ विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैसों-कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का वायुमंडलीय स्तर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। डब्ल्यूएमओ के ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन ने 2021 में मीथेन कॉन्सेंट्रेशन में साल-दर-साल की सबसे बड़ी छलांग की जानकारी दी। गैसों के वायुमंडलीय कॉन्सेंट्रेशन की माप बीते चालीस वर्षों से हो रही है और यह उछाल बीते 40 साल में सबसे बड़ी है। इस असाधारण वृद्धि का कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यह जैविक और मानव-प्रेरित, दोनों प्रक्रियाओं का परिणाम है।
साल 2022 खत्म होने को आ गया, मगर अब भी वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर है। इस बात की जानकारी मिलती है ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट साइंस टीम से, जिसका कहना है कि वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन रिकॉर्ड ऊंचाई पर बना रहा। इसमें गिरावट के कोई निशान नहीं हैं, जबकि वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन में गिरावट लाना अनिवार्य है।
उत्सर्जन कटौती के बिना, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना पहुंच से बाहर है। संयुक्त राष्ट्र की सलाह है कि इस काम के लिए हमें 2030 तक अपना उत्सर्जन आधा करना होगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव की आवश्यकता है और जीवाश्म ईंधन के उपयोग में भारी कमी लानी होगी। पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अब बस इस एक दशक के अंत तक उत्सर्जन को कम से कम आधा करने के लिए तेजी से नीतियों और उपायों को लागू करना पड़ेगा।
अगर ऐसा नहीं किया गया, तो संयुक्त राष्ट्र ने भविष्यवाणी की है कि जलवायु परिवर्तन से 30 गुना हीटवेव का खतरा बढ़ जाएगा। अगर मनुष्य की हरकतों की वजह से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन नहीं होता, तो भीषण हीटवेव का दौर अत्यंत दुर्लभ होता। अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है, तो ऐसी हीटवेव की संभावना हर पांच साल में एक बार होगी।

  सोर्स: अमर उजाला 

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