देश में आजकल उत्सव का माहौल है। सारा देश उत्सवमय है। यह उत्सव न आज ख़तम होगा न कल। यह उत्सव कभी ख़तम होने वाला नहीं। यह उत्सव कभी ख़तम हो भी नहीं सकता। वजह, यह देश घोर लोकतांत्रिक है और लोकतंत्र की रक्षा करना आम आदमी का परम कर्त्तव्य है। ऐसा संविधान निर्माता कहते हैं। यह बात दीगर है कि जहां घोर है, वहां अघोर भी होगा। लोक है तो अलोक भी होगा। वैसे भी चुनाव के समय वोटर किसी देव से कम नहीं होता। यह हमारी ख़ुशनसीबी है कि कभी पाँच साल में एक बार होने वाले चुनाव अब हर साल में पाँच मर्तबा होते हैं। ये चुनाव पूरे देश में सारा साल तो चलते हैं। पर हमारा दुर्भाग्य कि ये चुनाव पूरे देश में एक साथ नहीं होते। टुकड़ों में होते हैं। बिल्कुल टुकड़ा-टुकड़ा गैंग की तरह। इसीलिए टुकड़ा-टुकड़ा गैंग की तरह चुनावों को देशभक्त नहीं कहा जा सकता। चुनाव तभी देशभक्त कहे जा सकते हैं, जब पूरे भारत में ईवीएम देश की राजधानी से लेकर तृणमूल स्तर, क्षमा करें ग्रास रूट लेवल तक एक साथ पीं बोलें। ऐसे में ईवीएम के सुचारू प्रबंधन में कोई बाधा नहीं आएगी और हो सकता है कि वे कूड़े के ढेर या नगर निगम के ट्रकों में न मिलें या प्रशासनिक अधिकारियों को इन्हें अपनी गाडि़यों में न ढोना पढ़े। कहते हैं जब देश आज़ाद हुआ था, तब जो चुनावों में हिनहिनाते थे उनमें से अधिकांश घोड़े होते थे। अब तो केवल हिनहिनाना ही शेष बचा है।
सोर्स- divyahimacha