By: divyahimachal
जब चुनावी असमंजस के बीच का चुनाव हो जाए, तो जनता का असमंजस भी सही आकलन को लेकर बढ़ जाता है। हिमाचल में कमोबेश परिस्थितियां असमंजस की ओर जा रही हैं और इसका बाकायदा एक पैटर्न विकसित हो रहा है। दरअसल सभी पार्टियों के बीच अपने समीकरणों को लेकर असमंजस है, इसलिए जीत का मनोबल उधार पर चल रहा है। मसलन भाजपा की जीत में आंख यह देख रही है कि कांग्रेस से कितने उम्मीदवार छीन लिए जाएं या कम से कम विपक्ष की संभावना पर तीर कैसे चलाया जाए। पिछले दिनों भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप की दिहाड़ी अगर कांगड़ा में पवन का•ाल के असमंजस को मिटाने की थी, तो वह अपनी ही पार्टी के योद्धाओं को कांग्रेसी विधायक के आगमन से संतुष्ट नहीं करवा पाए। यहां जिस असमंजस भरी स्थिति से दो कांग्रेसी विधायक भाजपा में आ गए, उससे किनारा अभी उन्हें नहीं मिल रहा। भाजपा के असमंजस को सत्ता विरोधी लहरों से पार पाना है, तो चुनाव में सरकार के प्रदर्शन को आजमाना है, लेकिन कांग्रेस अपने असमंजस को बढ़ाने के लिए मजबूर न•ार आती है। आनंद शर्मा ने जिस तरह हिमाचल चुनाव की बेला पर पद त्याग कर असंतोष के दाने बोए हैं, उन्हें चुगने वाले भी कम नहीं, यानी भाजपा से लडऩे के बजाय इस पार्टी के नेता यह बताने में मशगूल हैं कि आंतरिक जख्म किस हद तक रिस रहे हैं। ऐसे में टिकटार्थियों का सबसे बड़ा असमंजस ऐसे अवसर खोजना है जो सोने पर सुहागा हो जाएं। यानी यहां भाजपा के भीतर महत्त्वाकांक्षा अगर कुंद होती है, तो मिशन रिपीट के गहनों से शिकायत होगी।
नए उम्मीदवारों की टोलियां सबसे अधिक भाजपा में हैं और जहां भारतीय जनता युवा मोर्चा व विद्यार्थी परिषद की शाखाओं से निकली युवा क्षमता उस इशारे की खोज में है, जो उन्हें बता सके कि वर्तमान विधायकों की नालायकी से निकला अवसर उन्हें कब मिलेगा। यह भाजपा के फुट सोल्जर हैं, जिन्होंने लगातार रैलियों में जोश और सम्मेलनों में भीड़ बढ़ाई है। आने वाला समय इसी युवा वर्ग की परेशानी को और बढ़ाएगा। यह इसलिए भी कि कुछ तथाकथित सर्वेक्षणों में नए विकल्प के तौर पर भाजपा के अनेक युवा चेहरे कदमताल कर रहे हैं। जहां तक कांग्रेस के भविष्य का सवाल है, उसके सामने आलाकमान की छवि और आंतरिक विवादों से टूटता मनोबल, सबसे घातक परिदृश्य पैदा कर रहा है। कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी का हर कदम भी खतरे का संकेत है। यह दीगर है कि आप अपनी आरंभिक चाल को दुरुस्त करने के बजाय कुछ हद तक उलझ गई है।
उसके आरंभिक तीर भले ही कांग्रेस को चुभ रहे थे, लेकिन ईडी घटनाक्रम तथा स्थानीय तौर पर संगठनात्मक कमजोरियों के कारण पार्टी का असमंजस बढ़ा है। पार्टी के लिए हिमाचल के परिप्रेक्ष्य में सही मुद्दों की खोज अभी किंतु परंतु में फंसी है और इस तरह चुनाव की तैयारियों में बड़े नेताओं को झोंक कर भी आम आदमी पार्टी अपने तेवरों से दोनों प्रमुख दलों को उत्तराखंड, पंजाब या वर्तमान में गुजरात की तरह परेशान नहीं कर पाई है। हालांकि यह भी एक सत्य है कि दिल्ली, उत्तराखंड व पंजाब के चुनाव परिणामों का अध्ययन बताता है कि आप की उपस्थिति से कांग्रेस का वजूद हाशिए पर चला गया। गुजरात में पार्टी ने पुन: कांग्रेस का जीना हराम किया है, लेकिन हिमाचल में आम आदमी पार्टी असमंजस भरी स्थिति से बाहर नहीं निकल पाई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इस बार हिमाचल विधानसभा के चुनाव पिछली तमाम परंपराओं और परिपाटी से भिन्न कदमताल कर रहे हैं। जो दल समय रहते अपने सोच के चक्रव्यूह से बाहर निकल कर यह संदेश दे पाया कि उसके भीतर और बाहर कोई असमंजस नहीं है, उसके साथ जनता और समर्थकों का स्वाभाविक रिश्ता सुदृढ़ होगा, वरना हिमाचली समाज टूटे हुए समीकरणों की गिनती करके किसी भी असमंजस को दरकिनार कर देगा।