अमेरिकी ब्याज दरों में वृद्धि का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, पढ़ें एक्‍सपर्ट व्‍यू

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने हाल ही में ब्याज दरों में एक चौथाई प्रतिशत की वृद्धि की है

Update: 2022-03-24 08:03 GMT
राहुल लाल। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने हाल ही में ब्याज दरों में एक चौथाई प्रतिशत की वृद्धि की है। साथ ही अभी इसमें और बढ़ोतरी के स्पष्ट संकेत दिए हैं। अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने 2018 के बाद पहली बार ब्याज दर बढ़ाई है। पिछले चार दशकों में सबसे तेज मुद्रास्फीति से निपटने के लिए फेड ने अभियान शुरू किया है। वहीं अनुमान है कि वर्ष 2023 में फेड की दरें 2.8 प्रतिशत तक पहुंच सकती हैं। इस तरह अमेरिकी फेड ने अब कठोर मौद्रिक नीति का रास्ता अपना लिया है। ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी मौद्रिक नीति पर अत्यंत सावधानी से आगे बढऩा होगा
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अभी अमेरिका के समक्ष आर्थिक वृद्धि और महंगाई नियंत्रण के बीच संतुलन बनाने की चुनौती है। अमेरिका में सामान्यत: महंगाई दर दो प्रतिशत रहती है, लेकिन फरवरी 2022 में महंगाई दर बढ़कर 7.9 प्रतिशत हो गई, जो पिछले 40 वर्षों में सबसे अधिक है। अमेरिका में महंगाई का कारण जनता द्वारा खर्च में वृद्धि से मांग (डिमांड) में अप्रत्याशित वृद्धि है। इससे स्पष्ट है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था महामारी के दौर से बाहर निकल चुकी है। यही कारण है कि यूएस फेड ने मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था को देखते हुए धीमी आर्थिक वृद्धि के जोखिम को स्वीकार किया और महंगाई नियंत्रण को मुख्य लक्ष्य बनाया। अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने अमेरिका के वर्ष 2022 के ग्रोथ रेट अनुमान को चार प्रतिशत से घटा कर 2.8 प्रतिशत कर दिया है।
इस बीच भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तरह ही यूएस फेडरल रिजर्व की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) ने 8-1 के वोट से नीतिगत ब्याज दरों में वृद्धि की अनुमति दी। कोरोना महामारी के काल में ये ब्याज दरें लगभग शून्य के स्तर पर बनी हुई थीं, ताकि अर्थव्यवस्था को गति दी जा सके। इसके पहले यूएस फेड ने दिसंबर 2018 में नीतिगत दरों में वृद्धि की थी, परंतु जुलाई 2019 में इस बढ़ोतरी को वापस कर लिया था।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर : भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना काल से पूर्व ही चुनौतियों का सामना कर रहा है। वर्ष 2016-17 के प्रथम तिमाही में आर्थिक विकास दर 9.2 प्रतिशत था, जो कोरोना से पूर्व ही गिरते हुए 3.2 प्रतिशत तक पहुंच चुकी थी। इस तरह पहले से ही संवेदनशील हालत में पहुंची अर्थव्यवस्था को कोरोना महामारी का सामना करना पड़ा। इस स्थिति में रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों को कम रखा, जिससे सस्ते लोन की उपलब्धता बनी रहे। अब भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है और लोगों को वास्तव में सस्ते ऋण की जरूरत है, लेकिन यूएस फेड के ब्याज दरों में वृद्धि के बाद अब आरबीआइ पर भी ब्याज दरों में वृद्धि का दबाव होगा। अगर आरबीआइ ब्याज दरों में वृद्धि नहीं करेगा, तो निवेशक भारत से निवेश निकाल सकते हैं। ऐसे में मौद्रिक नीति पर आरबीआइ को अत्यंत सावधानी से निर्णय लेना होगा। इस समय ब्याज दरों में वृद्धि निवेशकों को रोकने में मददगार हो सकती है, लेकिन महंगे लोन से अर्थव्यवस्था की रिकवरी धीमी हो सकती है। इसलिए आरबीआइ को मौद्रिक नीति में सस्ते लोन और निवेशकों के बीच संतुलन कायम करना होगा।
वैश्विक निवेशक दुनिया भर की संपत्तियों में निवेश करने के लिए शून्य या कम ब्याज दर वाले देशों से उधार लेते हैं। इसे ही कैरी ट्रेड कहते हैं। अमेरिका में ब्याज दर इस बढ़ोतरी के पूर्व लगभग शून्य पर थी। ऐसे में निवेशक वहां से लोन लेकर भारत सहित अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करते थे, जहां ब्याज दर ज्यादा है। कोरोना काल में भी भारत सहित अन्य कई देशों के शेयर बाजार में तेजी के पीछे कैरी ट्रेड भी था। लेकिन यूएस फेड में बढ़ोतरी से वैश्विक बिकवाली के कारण कैरी ट्रेड उलट भी सकता है।
क्या अब भारत में ब्याज दर बढऩे की संभावना है : फेड के निर्णयों का असर आरबीआइ के ब्याज दरों पर अवश्य पड़ेगा। अमेरिका में जैसे-जैसे ब्याज दरें बढ़ती रहेंगी, वैसे-वैसे अमेरिका और भारत सरकार के बांड के बीच का अंतर कम हो जाएगा, जिससे वैश्विक निवेशक भारतीय प्रतिभूतियों से पैसा निकालेंगे। इसलिए भारतीय बांड बाजार से एफपीआइ के निकासी को रोकने के लिए आरबीआइ को ब्याज दरें बढ़ाने होंगी। अभी प्रथम स्तर पर यूएस फेड ने केवल 0.25 प्रतिशत की वृद्धि की है, इसलिए अभी आरबीआइ यूएस फेड के निर्णय से बिना प्रभावित हुए मौद्रिक नीति का निर्णय ले सकती है, लेकिन इस वर्ष ही फेड की दरों में छह बार और वृद्धि होनी है। ऐसे में उन वृद्धियों से निबटने के लिए आरबीआइ को अंतत: ब्याज दर में वृद्धि करनी पड़ेगी।
आरबीआइ पर दोहरा दबाव : आरबीआइ के मौद्रिक नीति पर यूएस फेड और भारतीय महंगाई का दोहरा दबाव है। फेडरल रिजर्व द्वारा रेट बढ़ाने के फैसले और भारत के खुदरा बाजार में बढ़ी महंगाई दर का आरबीआइ की मौद्रिक नीति समीक्षा पर छह अप्रैल से आठ अप्रैल के बीच होने वाली मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक में सीधा असर पड़ेगा। अमेरिकी केंद्रीय बैंक के विपरीत अब तक मौद्रिक नीति पर आरबीआइ का रुख उदार रहा है। इसका एक कारण भारत में खुदरा महंगाई दर प्राय: अब तक आरबीआइ के घोषित दायरे में रही है। लेकिन जनवरी और फरवरी में खुदरा महंगाई दर आरबीआइ के घोषित दर से ज्यादा रही। फरवरी में खुदरा महंगाई दर आठ माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। आरबीआइ का पहले अनुमान था कि मार्च 2023 तक खुदरा महंगाई दर 4.5 प्रतिशत रहेगी, लेकिन अब इस अनुमान में भी बदलाव की पूरी संभावना है। थोक महंगाई दर भी लगातार कई माह से दो अंकों में बनी हुई है। इस तरह आरबीआइ को भी भविष्य में ब्याज दरों में वृद्धि के लिए बाध्य होना ही होगा।
डालर के मुकाबले रुपया कमजोर होने की आशंका : फेड के इस फैसले से डालर को मजबूती मिलेगी, जो रुपये को कमजोर कर सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पहले ही रुपया 76 के आसपास पहुंच चुका है। ऐसे में आगे इसमें और भी गिरावट आने की आशंका है। रुपया इस मामले में तीन कारकों से प्रभावित होगा। प्रथम, यूएस फेड के निर्णय के कारण डालर मूल्यवर्ग के प्रतिभूतियों की ब्याज दरें अधिक बढऩे लगती हैं, फलत: अमेरिकी डालर और मजबूत होगा। इससे भी रुपये में गिरावट आएगी। दूसरा, अगर एफपीआइ स्टाक और बांड बाजारों से पैसा निकालना जारी रखते हैं, तो इससे भी रुपया कमजोर होगा। तीसरा, यदि वैश्विक जोखिम से बचने में वृद्धि होती है, तो आम तौर पर जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों जैसे सोने और अमेरिकी ट्रेजरी उपकरणों में पैसा निकाला जाता है। इसका असर भी रुपये पर पड़ेगा।
महंगे हो सकते हैं लोन : यूएस फेड के निर्णय के कारण ब्याज दरों में वृद्धि होने पर भारतीय लोन महंगे हो सकते हैं। पर्सनल लोन और अधिकांश डेट प्रोडक्ट की ब्याज दर फिक्सड होती है, लेकिन अधिकांश होम लोन फ्लोटिंग रेट पर आधारित होते हैं। आरबीआइ पर यूएस फेड का दबाव लगातार बना हुआ है, जिससे कैलेंडर वर्ष 2022 के प्रथम छमाही में भारत में भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है, जिससे आपके होम लोन की दरों में बढ़ोतरी होगी। कर्ज लेने वालों को अब सतत बढऩे वाले ब्याज दर के विभिन्न चक्रों के लिए तैयार रहना चाहिए। अगर आप नया होम लोन लेने जा रहे हैं, तो वर्तमान रिकार्ड निम्न दरों पर बहुत ज्यादा कर्ज नहीं लें, अन्यथा भविष्य में आपका बजट बिगड़ सकता है।
फेड के ब्याज दरों में वृद्धि के बाद डालर की स्थिति लगातार मजबूत बनी हुई है, जिससे रुपये पर लगातार दबाव बना हुआ है। आरबीआइ के पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों के अनुसार 11 मार्च को खत्म हुए हफ्ते के दौरान देश का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 10 अरब डालर घट गया है। बीते दो साल में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। सात मार्च को डालर के मुकाबले रुपया 77 के स्तर को पार कर गया था। रुपये में और गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व बैंक ने हस्तक्षेप किया और बाजार में डालर की बिक्री की। अनुमान के अनुसार रिजर्व बैंक ने एक सप्ताह के दौरान करीब एक डालर प्रतिदिन के हिसाब से डालर बाजार में उतारा। इसके बावजूद देश का विदेशी मुद्रा भंडार 631.92 अरब डालर के आसपास बना हुआ है। फेड निर्णय के बाद वर्तमान में पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार के कारण रुपये की स्थिति कुछ बेहतर बनी हुई है, लेकिन अभी भी विदेशी निवेश को रोकना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है।
भारत के लिए मिले-जुले असर की आशंका : अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में वृद्धि से एक तरफ लोन महंगा होगा, लेकिन दूसरी तरफ ब्याज में वृद्धि से बचत धारकों को अधिक लाभ होगा। अब तक ब्याज दरों में लगातार कटौती के कारण केंद्र सरकार को वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, सुकन्या समृद्धि योजना इत्यादि महत्वाकांक्षी योजनाओं में ब्याज दर में कटौती करनी पड़ रही थी। परंतु अब फिर से अधिकांश बचत योजनाओं में अच्छे ब्याज दर की प्राप्ति हो सकेगी। इस तरह बचत धारकों के लिए यह घटनाक्रम खुशखबरी लेकर आया है। फेड द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि से भारत में महंगाई और बढ़ सकती है। फेड के इस फैसले से डालर और मजबूत होगा और रुपया कमजोर पड़ जाएगा। रुपये के कमजोर होने पर भारत सरकार को कच्चे तेल के लिए और अधिक कीमत चुकानी होगी, परिणामस्वरूप पेट्रोल और डीजल महंगा हो जाएगा। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में वृद्धि हो रही है। पेट्रोल-डीजल महंगा होने से परिवहन की दरें बढ़ जाएंगी, जिससे अधिकांश वस्तुओं की कीमतें प्रभावित होंगी। इसके अलावा, आयात होने वाले सभी प्रकार के कच्चे माल की खरीदारी के लिए पहले से अधिक रुपये खर्च करने होंगे, जिस कारण उन कच्चे माल से बनने वाले उत्पाद महंगे हो जाएंगे।
सोने की कीमत में गिरावट : डालर की मजबूती सोने को कमजोर करेगी, जिसका असर भारतीय बाजार में भी देखने को मिलेगा। इस निर्णय के बाद सोने में लगातार बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है। सोना 54 हजार से टूटकर 51 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुंच चुका है। निकट भविष्य में यह आसानी से 46 हजार रुपये के स्तर को एक बार फिर से छू सकता है। लेकिन इन परिस्थितियों के बीच एक अच्छी बात यह हो सकती है कि इससे निर्यात को प्रोत्साहन मिल सकता है। यह सही है कि कमजोर रुपया आयात को महंगा करता है, परंतु निर्यात को सस्ता बनाता है। भारतीय वस्तुएं कमजोर रुपये के कारण वैश्विक बाजार में सस्ती हो जाती हैं। वैश्विक बाजार में कठोर प्रतिस्पर्धा की स्थिति होती है। ऐसे में निर्यात की वस्तुएं सस्ती होने पर उसकी मांग में स्वत: वृद्धि हो जाती है और इस प्रकार निर्यात बढ़ जाता है। उल्लेखनीय है कि फरवरी में भारतीय निर्यात दर में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। जैसे-जैसे यूएस फेड के अगले चक्रों की वृद्धि होगी, वैसे-वैसे निर्यात में भी वृद्धि होगी, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सुखद स्थिति होगी।
[आर्थिक मामलों के जानकार]
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