शिक्षा के अवसर
आजकल भी भारत से हर साल लाखों विद्यार्थी अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया आदि देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार 2022 में 82 हजार विद्यार्थी केवल अमेरिका में ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए गए! इस साल बारह लाख विद्यार्थी विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए गए।
Written by जनसत्ता: आजकल भी भारत से हर साल लाखों विद्यार्थी अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया आदि देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार 2022 में 82 हजार विद्यार्थी केवल अमेरिका में ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए गए! इस साल बारह लाख विद्यार्थी विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए गए।
2024 तक विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए पढ़ने वालों की संख्या अठारह लाख तक पहुंचने की आशा है। जब कभी भारत के विद्यार्थी विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाना चाहते हैं तब वे यह सोचकर जाते हैं कि जीवन की गुणवत्ता, पढ़ाई करने और रहने का खर्च, शिक्षा का स्तर और उस शिक्षा संस्थान से पढ़ कर गए विद्यार्थियों का उसके बारे में क्या विचार है।
आजकल एक देश से दूसरे देश में विद्यार्थियों का पढ़ने के लिए जाना और आना एक आम बात हो गई है! लेकिन भारत के लिए चिंता की बात यह है कि जितने विद्यार्थी भारत से विदेशों में जाते हैं और उनके कारण जितना देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ पड़ता है, उसके मुकाबले में विदेशों से भारत में पढ़ने के लिए आने वाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम है, जिसकी वजह से हम उनके कारण बहुत कम विदेशी मुद्रा अर्जित कर पाते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक 2021 में केवल 23,439 विदेशी विद्यार्थी भारत में पढ़ने के लिए आए, जबकि यहां से विदेशों में जाने वालों की संख्या बारह लाख के आसपास थी! भारत में आइआइटी, आइआइएम तथा इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस को छोड़कर कोई ऐसी संस्था नहीं है, जिससे आकर्षित होकर विदेशी विद्यार्थी भारत में पढ़ने के लिए आएं। हमें इस बात का पता करना चाहिए कि भारत के विद्यार्थी विदेशों में पढ़ने के लिए क्यों जाते हैं और विदेशी विद्यार्थी भारत में क्यों नहीं आना चाहते?
एक बात तो पक्की है कि भारत में शिक्षा का स्तर तथा गुणवत्ता इतनी श्रेष्ठ नहीं है जितनी विदेशों में है। जिस तरह से भारत में बहुत सारे विद्यार्थी एमबीबीएस करके डाक्टर बनना चाहते हैं, पर चूंकि उन सबको दाखिला नहीं मिलता, इसलिए कुछ विद्यार्थी अपना क्षेत्र बदल लेते हैं और कुछ लोग एमबीबीएस करने रूस, चीन या यूक्रेन चले जाते हैं, जहां आसानी से उन्हें दाखिला भी मिल जाता है और पढ़ाई का खर्च भी बहुत कम है। बेशक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विदेशी विद्यार्थियों को दाखिला देने के लिए 25 फीसद सीटें बढ़ाने के लिए सरकार से अनुमति मांगी है, इसके बावजूद भारत में दाखिला इतना आसान नहीं। दाखिले की प्रक्रिया काफी कठिन है!
अगर हमें भारतीय विद्यार्थियों के विदेशों में भारी संख्या में जाने और विदेशों से बहुत कम संख्या में आने की समस्या को विदेशी विनिमय की समस्या को लेकर हल करना है तो उसके लिए सबसे पहले हमें अपनी शिक्षा की गुणवत्ता को इन देशों के बराबर करना होगा, जहां हमारे विद्यार्थी पढ़ने जाते हैं। पढ़ाई के खर्चे को कम करना होगा और दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा की शर्तों को नरम करना होगा। पढ़ाई की सुविधाएं, योग्य और अनुभवी शिक्षक उपलब्ध कराने होंगे। प्राचीन समय में विदेशों से हमारे यहां नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय में विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे। हमें अपनी आज की शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षा संस्थान को उसी तरह बनाना होगा!