15 August 2024 को स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर लाल किले की प्राचीर पर हिंदुस्तान की अस्मिता आन बान जान और शान और हमारा प्यारा राष्ट्रीय अस्मिता एवं गौरव का प्रतीक राष्ट्रध्वज तिरंगा फिर एक बार फहराया जाएगा। तिरंगा लहराएगा और भारतीय जनता हल्की फुहारों के बीच भारतीय स्वतंत्रता की इस निशानी को देखेगी। 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली. इस ऐतिहासिक दिन के बाद से 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन स्वतंत्रता का उत्सव मनाने वालों में से बहुत कम लोगों को इस बात का पता होगा कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास क्या है ? कैसे हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने पहले प्रारूप से कई बदलावों का रास्ता इख्तियार करते हुए अपने वर्तमान स्वरूप में आया है?
तिरंगे का इतिहास :– ब्रिटिश राज में भारत के विभिन्न राज्यों के शासकों द्वारा अलग-अलग झंडे प्रयोग किए जाते थे, जिस पताका के तले पूरा राष्ट्र अभिमान से एकत्रित हो ऐसा कोई एक राष्ट्र-ध्वज अस्तित्व में ही नहीं था। कहा जाता है कि क्रांति ही राष्ट्रवाद की जनक होती है, तो भारत में पहली क्रान्ति 1857 में हुई थी। इस विद्रोह ने संपूर्ण देश में राष्ट्रीयता की भावना जगाई थी और एक राष्ट्रीय ध्वज के तले एकजुट होने की जरूरत भी महसूस हुई। 1900 ईस्वी के आस-पास स्वदेशी आंदोलन के शुरू होने के साथ ही एक राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता को शिद्धत से महसूस किया गया। 1904 में स्वामी विवेकानंद की आयरिश शिष्या सिस्टर निवेदिता ने भारत के सबसे पहले राष्ट्रध्वज की रूपरेखा बनाई। उनके द्वारा मूलतः लाल रंग के ध्वज के चारों ओर 101 पीली ज्योतियों से एक बॉर्डर बनाई गई थी। इस ध्वज के बीचों बीच शक्ति, पराक्रम और विजय के प्रतीक के रूप में देवताओं के राजा इंद्र के अस्त्र 'वज्र' और शुचिता के प्रतीक 'कमल' का एक संयुक्त चिन्ह अंकित था। चिन्ह को मध्य में रख कर दोनों तरफ बांग्ला में वंदे मातरम लिखा हुआ था। लाल रंग स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक था और पीला रंग विजय का। इसी ध्वज को थोड़े परिवर्तित रूप में 1905 में पेरिस में मैडम कामा और में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया। इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते हुए बनाए गए थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था। 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता में विभाजन विरोधी आंदोलन की पहली जयंती मनाई गई। उस समय पारसी बागान स्क्वेयर (ग्रीन पार्क) में एक विशाल रैली आयोजित की गई। रैली के दौरान एक तिरंगा झंडा फहराया गया।
यह झंडा सुरेंद्रनाथ नाथ बैनर्जी क अंतरंग अनुयायी शचिन्द्र प्रसाद बोस ने तैयार किया था। राष्ट्रीय ध्वज के इस प्रारूप में लाल, पीले और हरे रंगों की तीन पट्टियां थीं। 'लोटस फ्लैग' या 'कोलकाता फ्लैग' के नाम से प्रसिद्ध हुए इस ध्वज में बीचोबीच स्थित पीली पट्टी पर वंदे मातरम लिखा हुआ था। नीचे की लाल पट्टी पर श्वेत रंग में, एक सूर्य, एक अर्धचंद्र और कमल के 8 पुष्पों का प्रयोग किया गया था। सुरेंद्र नाथ बैनर्जी ने एक सौ एक पटाखों की ध्वनि के साथ यह ध्वज फहराया था।
सन 1931 में कांग्रेस ने कराची अधिवेशन में स्वराज ध्वज को अपनाया। पिंगाली वेंकैया द्वारा निर्मित इस ध्वज में ऊपरी पट्टी के रंग को लाल की जगह केसरिया रखा गया जो कि शौर्य और साहस का प्रतीक था। सबसे निचली पट्टी हरे रंग की थी और बीच में सफेद रंग की पट्टी पर चरखे का चिन्ह बना हुआ था। साल 1947 आते-आते देश के नेताओं को एक सर्वमान्य राष्ट्रीय ध्वज की कमी महसूस हुई, क्योंकि दुनिया के सभी बड़े देशों के पास अपना राष्ट्रीय ध्वज था। इसके लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक 'ध्वज समिति' का गठन किया गया। इस समिति ने फैसला लिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को ही राष्ट्रीय ध्वज मान लिया जाए। हालांकि इसमें एक परिवर्तन किया गया और बीच में चरखे की जगह अशोक चक्र लगाने की बात कही गई। इसके बाद 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा में तिरंगे झंडे को भारत का राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया। इसमें तीन रंग हैं, केसरिया, सफेद और हरा। सफेद रंग की पट्टी में नीले रंग से अशोक चक्र बना है, जिसमें 24 तीलियां होती हैं, जो बताती है कि दिन रात्रि के 24 घंटे जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है। इस नवीनतम राष्ट्रीय ध्वज में केसरिया रंग जहां अपनी प्रतीकात्मकता में शौर्य और साहस को समेटे हुए है वहीं हरा रंग समृद्धि एवं प्रगति को और सफेद रंग शांति और सत्य को। इस बात को लेकर बहस बनी हुई है कि राष्ट्रीय ध्वज पर चरखे के स्थान पर धर्म चक्र का सुझाव किसने दिया। इस विचार के जनक के रूप में बदरुद्दीन और सुरैया तैयब जी का नाम सामने आता रहा है परंतु इस पर अभी एक आम राय नहीं बन पाई है।
राष्ट्रीय ध्वज का सिर्फ इतना ही इतिहास नहीं है। 1916 में पिंगाली वेंकैया ने एक बुकलेट तैयार की, जिसमें राष्ट्रीय ध्वज के 30 नमूने शामिल थे। इसके बाद 1917 में होम रूल मूवमेंट के दौरान बाल गंगाधर तिलक और अनी बेसेंट ने एक नए राष्ट्रीय ध्वज का अनावरण किया। इसमें चार हरी और पांच लाल पट्टियां थीं। इस के दाएं हिस्से में अर्धचंद्र और एक तारा स्थित था तो वही बाएं हिस्से में ऊपर की तरफ अंग्रेजी यूनियन जैक मौजूद था। इसके अतिरिक्त सप्तऋषि के प्रतीक के रूप में 7 तारकों का भी प्रयोग किया गया था। यह वह पहला ध्वज था, जिस के प्रयोग पर अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रतिबंध लगाया गया। प्रतिबंध लगने के बाद देशभर में व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय ध्वज के महत्व की चर्चाएं होने लगीं। 1920 में लीग ऑफ नेशंस में भारतीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा एक ध्वज के प्रयोग पर जोर दिया गया। साल 1921 में महात्मा गांधी ने भी एक झंडे का सुझाव दिया था, जिसमें दो रंग थे लाल और हरा। इसे पिंगली वैकैया ने बनाया था। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले वेंकैया की मुलाकात जब महात्मा गांधी से हुई तो गांधी ने उनसे भारत के लिए एक झंडा बनाने को कहा। वेंकैया ने 1916 से 1921 कई देशों के झंडों पर रिसर्च करने के बाद एक झंडा डिजाइन किया। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गांधी से मिलकर लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद से देश में कांग्रेस के सारे अधिवेशनों में इस दो रंगों वाले झंडे का इस्तेमाल होने लगा था आजादी के बाद तिरंगा झंडे फहराने की इजाजत सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही थी, लेकिन साल 2002 में एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे बाकी दिनों में भी फहराने की मंजूरी दे दी। इसके बाद साल 2005 में इसे कुछ वस्त्रों में भी तिरंगे झंडे के इस्तेमाल की इजाजत दी।
हर घर तिरंगा अभियान :– इस अभियान की शुरुआत भारत सरकार की ओर से की गई थी। हर साल यह अभियान 13 अगस्त से शुरू होकर 15 अगस्त तक चलता है। देशवासियों में राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित करने देश भक्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ हर घर तिरंगा अभियान को शुरू किया गया। इस अभियान के दौरान लोगों से अपील की जाती है कि वह अपने घरों पर राष्ट्रीय ध्वज को फहराएं। 22 जुलाई 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से इस कार्यक्रम में भाग लेने का अनुरोध किया था।
सभी देशवासियों को 78 वे स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
आलेख ©® :– डॉ राकेश वशिष्ठ, वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादकीय लेखक