Vijay Garg: हर अगले रोज थोड़ा ज्यादा मशीनी होती जिंदगी में यह एक सामान्य अनुभव है कि रिश्ते हमारे जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं । चाहे वह दोस्ती हो, परिवार हो या फिर एक प्रेम संबंध, सभी रिश्तों की नींव विश्वास और आपसी समझ पर टिकी होती है, लेकिन कई बार इन्हीं रिश्तों में उपेक्षा का दंश और विश्वास की कमी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं, जो संबंधों को कमजोर कर देती हैं। आजकल जिंदगी की भाग-दौड़ में लोगों के बीच दूरियां बढ़ती ही जा रही हैं। किसी से उपेक्षित होना किसी भी रिश्ते में सबसे खतरनाक स्थिति होती है। यह वह स्थिति है जब किसी एक व्यक्ति को यह महसूस होने लगता है कि उसका साथी उसकी भावनाओं, आवश्यकताओं और इच्छाओं को महत्त्व नहीं दे रहा है। उपेक्षा धीरे-धीरे रिश्ते को अंदर से कमजोर कर देती है । कामकाजी जीवन, सामाजिक दायित्वों और व्यक्तिगत लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है। इससे संबंधों में समय की कमी होने लगती है, जो आखिर उपेक्षा का कारण बनता है। कई बार व्यक्ति अपने जीवन में इतना आत्म- केंद्रित हो जाता है कि वह अपने साथी की भावनाओं और आवश्यकताओं को नजरअंदाज करता जाता है। वह अपने सपनों, इच्छाओं और लक्ष्यों को पूरा करने में इतना व्यस्त हो जाता है कि उसके साथी को महसूस होने लगता है कि उनकी उपेक्षा हो रही है। एक बात यह भी है कि समय के साथ लोगों की प्राथमिकताएं बदलती हैं, जिसका असर कई बार स्पष्ट दिखने लगता है। मसलन, शादी के शुरुआती वर्षों में जो व्यक्ति अपने साथी के साथ अधिक समय बिताता था, वह बाद में अपने करियर या अन्य गतिविधियों में इतना खो जाता है कि उसका साथी उपेक्षित महसूस करने लगता है। अपने कामकाज के लिए हम किसी अपने की उपेक्षा करके उसका दिल तो दुखा देते हैं, पर उसका प्रभाव गहरा होता जाता है। यह व्यक्ति के आत्मसम्मान को चोट पहुंचा सकता है और उसे अपने आप में संदेह करने पर मजबूर कर सकता है।
उपेक्षा से व्यक्ति के भीतर अकेलेपन की भावना पनप सकती है, जिससे वह मानसिक और भावनात्मक रूप से अस्थिर हो सकता है। लंबे समय तक उपेक्षा सहने से व्यक्ति रिश्ते में रुचि खोने लगता है और रिश्ते में दरार पड़ने लगती है। इस तरह के दरार को पाटने के लिए एक दूसरे पर विश्वास होना आवश्यक है। विश्वास किसी भी रिश्ते की नींव होता है। यह वह धागा है जो दो लोगों को आपस में जोड़ता है, लेकिन जब इस धागे में दरार आ जाती है, तो रिश्ते का टूटना तय होता है। अक्सर देखा गया है कि कई बार व्यक्ति के अतीत में हुए धोखे और धोखाधड़ी के अनुभव उसे नए रिश्ते में विश्वास करने से रोकते हैं । उसे डर रहता है कि वही इतिहास दोहराया न जाए और इस डर के कारण वह अपने साथी पर पूरी तरह से विश्वास नहीं कर पाता। असुरक्षा की भावना भी विश्वास की कमी का एक प्रमुख कारण है। व्यक्ति को लगता है कि उसका साथी उसे छोड़ सकता है या धोखा दे सकता है। यह भावना उसे अपने साथी पर विश्वास करने से रोकती है और वह संदेह की दृष्टि से अपने साथी को देखने लगता है। कई बार छोटी-छोटी गलतफहमियां भी बड़े विवाद का रूप ले लेती हैं। जब दो लोगों के बीच संवाद की कमी होती है, तो वे एक- दूसरे के बारे में गलत धारणाएं बना लेते हैं। ये गलतफहमियां विश्वास की कमी का कारण बनती हैं। जब रिश्ते में विश्वास की कमी होती है, तो व्यक्ति को अपने साथी के हर कार्य पर संदेह होने लगता है। वह साथी के फोन, संदेश, ईमेल आदि की जांच करने लगता है। यह संदेह और असुरक्षा की भावना धीरे-धीरे रिश्ते को अंदर से कमजोर कर देती है। विश्वास की कमी से रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो जाती है, जो धीरे-धीरे रिश्ते के टूटने का कारण बनती है।
संवाद और संचार किसी भी रिश्ते का बुनियादी आधार होता है। अगर रिश्ते में उपेक्षा बढ़ रही हो और विश्वास की कमी हो रही हो, तो सबसे पहले दोनों पक्षों को खुलकर बातचीत करनी चाहिए । अपनी भावनाओं, चिंताओं और समस्याओं को एक-दूसरे के सामने रखना चाहिए, ताकि गलतफहमियां दूर हों और रिश्ते में मजबूती आए । उपेक्षा से बचने के लिए दोनों पक्षों को एक-दूसरे के लिए समय निकालना चाहिए, चाहे वह कुछ मिनट के लिए फोन पर बातचीत हो या संवेदना के खोए सूत्रों को फिर से जोड़ना । यह महत्त्वपूर्ण है कि एक-दूसरे के साथ समय बिताया जाए। आत्म जागरूकता रिश्ते में सुधार लाने का एक महत्त्वपूर्ण जरिया है। अगर किसी को लगता है कि वह अपने साथी की उपेक्षा कर रहा है या उस पर विश्वास नहीं कर रहा है, तो उसे अपने व्यवहार का विश्लेषण करना चाहिए | कारणों की खोज के बाद उसे सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए।
यह ध्यान रखने की जरूरत है कि दो लोगों के बीच कुछ गलतियां होना स्वाभाविक है, लेकिन माफी मांगने और माफ करने से रिश्ते में विश्वास की भावना फिर से स्थापित होती है। एक-दूसरे की सराहना करना भी रिश्ते को मजबूत करने का एक कारण बनता है। जब कोई अपने साथी के प्रयासों और योगदान को सराहता है, तब उसे यह महसूस होगा कि उसकी उपेक्षा नहीं हो रही है । यह रिश्ते में सकारात्मकता और प्रेम की भावना को बनाए रखता है। दरअसल, रिश्ते को निभाने में समझ, धैर्य और विश्वास की आवश्यकता होती है। विश्वास की कमी रिश्तों को बर्बाद कर सकती है, लेकिन अगर दोनों पक्ष समय पर इन समस्याओं को पहचानकर उनका समाधान करें, तो रिश्ते को मजबूत किया जा सकता है। एक मजबूत और स्वस्थ रिश्ता वही होता है, जिसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे की भावनाओं, आवश्यकताओं और इच्छाओं का सम्मान करते हैं और आपसी विश्वास बनाए रखते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चांद एमएचआर मलोट पंजाब