Editorial: गरबा डांडिया, नवरात्रि, रामलीला, दशहरा, दीपावली - देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग अंदाज में यह जश्न का मौसम होता है। इतना ही नहीं, यह तो सिर्फ ट्रेलर है, क्योंकि फिर दीपावली से बढ़ते हुए क्रिसमस और नए साल तक का पूरा वक्त त्योहारी मौसम या फेस्टिव सीजन कहलाता है। परंपरा है कि भारत के ज्यादातर त्योहार किसी न किसी तरह फसल से जुड़े होते हैं, यानी यह जश्न सिर्फ शहरों का नहीं, गांवों का या पूरे भारत का भी होता है।
बात सिर्फ घर-परिवार तक सीमित नहीं है। जब आप त्योहार के मूड में आते हैं, तो तैयारी भी करते हैं और खरीदारी भी । इसीलिए आपके आसपास के दुकानदारों से लेकर देश और दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों तक को इसी मौसम का इंतजार रहता है। मौजूदा साल खास है, क्योंकि पिछले कई वर्षों से तेज आर्थिक तरक्की के बावजूद यह सवाल बना हुआ है कि भारत के बाजारों में मांग कब लौटेगी। एक चावल से पूरे पतीले का हिसाब लगाने वालों को तो नमूना हाथ लग भी गया है। सितंबर के अंत में अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसे दिग्गजों और दूसरे प्लेटफॉर्म्स ने बड़ी- बड़ी सेल लगाई। बिग बिलियन डे और ग्रेट इंडियन फेस्टिवल की शुरुआत तो 27 सितंबर से हुई, लेकिन प्राइम और प्लस जैसे लॉयल्टी प्रोग्राम के मेंबरों के लिए यह एक दिन पहले खुल गई थी। आंकड़े आए हैं कि एक हफ्ते में ऑनलाइन रिटेल कंपनियों ने 55 हजार करोड़ रुपये या करीब साढ़े छह अरब डॉलर का सामान बेच डाला। यह पिछले साल की इसी सेल से 26 फीसदी ज्यादा है, लेकिन बड़ी बात यह है कि इस साल जानकारों ने त्योहारी सीजन में कुल जितनी बिक्री का अनुमान लगाया था, उसकी आधे से ज्यादा बिक्री दशहरे के पहले ही हो चुकी थी। बिक्री के गणित को जोड़ने वाली मार्केट रिसर्च एजेंसियों का अनुमान था कि इस त्योहारी सीजन में करीब 12 अरब डॉलर की बिक्री होगी, जो पिछले साल से लगभग 30 फीसदी ज्यादा है। मगर पहले ही हफ्ते में बिक्री की रफ्तार उम्मीद से पार निकल गई। ऑनलाइन बिक्री का ज्यादातर हिस्सा मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स और फैशन पर खर्च हुआ है। हालांकि, इसी हफ्ते के भीतर की खबर यह भी है कि तेजी के शुरुआती झोंक के बाद हफ्ता खत्म होते-होते बिक्री ठंडी पड़ने लगी। मार्केट रिसर्च करने वाले और इस कारोबार में लगे लोग भी मानते हैं कि ये सेल इसी तरह चलती हैं। शुरू में महंगी चीजें धड़ाधड़ बिकती हैं और उसके बाद लोग सस्ते माल की तलाश में लग जाते हैं। इसके बावजूद जिस रफ्तार से सेल चली, उससे उत्साह की लहर है।"
उपभोक्ता बाजार में माहौल का सुधरना कई कारणों से जरूरी भी है, क्योंकि इससे पहले चिंता और तनाव वाले कई संकेत आ चुके हैं या सामने खड़े हैं। सितंबर में जीएसटी वसूली का आंकड़ा सिर्फ 6.5 प्रतिशत बढ़कर आया, जबकि इससे पहले यह 10 फीसदी से ऊपर की रफ्तार दिखा रहा था। औद्योगिक उत्पादन में भी कमजोरी दिखने लगी और पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स आठ महीनों में सबसे नीचे पहुंच गया। यह इंडेक्स बड़ी कंपनियों में खरीदारी करने वाले मैनेजरों के बीच सर्वे करके बनता है। इनका मूड बिगड़ने का अर्थ है कि कंपनियां खरीदारी कम कर रही हैं। ऐसा तभी होगा, जब उनका माल आगे बाजार में बिक नहीं रहा हो या उनके पास नए ऑर्डर न आ रहे हों। इसी तरह कारों के बाजार में लगातार तीन महीनों से बिक्री गिरने की खबर आ रही है। वह भी तब, जबकि हर रोज अखबारों में कारों पर छूट और तोहफों के तरह-तरह के ऑफर दिख रहे हों। हालात चिंताजनक हैं, इसीलिए अब अर्थशास्त्रियों की उम्मीद दो चीजों पर टिकी हैं अच्छे मानसून का असर, यानी अच्छी फसल और आम आदमी की जेब, यानी बाजार में खरीदारी तेज होने की उम्मीद। खरीफ की बुआई के आंकड़ों से पहली उम्मीद तो पूरी होती दिख रही है। 27 सितंबर तक 11 लाख हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में फसल बोने की रिपोर्ट थी। यह सामान्य से बेहतर बुआई है। हालांकि, देश के कुछ हिस्सों में असामान्य बारिश से फसल के खराब होने की खबरें भी आ रही हैं और सिर्फ बुआई हो जाना ही अच्छी फसल की गारंटी नहीं होता। मगर यहां किस्सा खेती से ज्यादा खरीदारी का है। अच्छी फसल का मतलब यह भी होता है कि गांवों में या उनके आसपास के बाजारों में बिक्री बढ़ेगी या लोग खरीदारी के लिए निकलेंगे। अब इस पर ही देश-दुनिया की उम्मीदें टिकी हैं। विश्व बैंक ने पूरे दक्षिण एशिया की ग्रोथ का अनुमान बढ़ाया है और उसकी इस उम्मीद का बड़ा आधार भारत में घरेलू मांग का बढ़ना है।
मगर एक दूसरी चुनौती भी सामने खड़ी है। ऑनलाइन खरीदारी की वजह से दुकानों का, खासकर फैशन और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी चीजों में छोटे दुकानदारों का धंधा काफी परेशानी में पड़ चुका है। मॉल्स में बने बड़े-बड़े स्टोर तो बड़ी सेल लगाकर ग्राहकों को खींचने की कोशिश करते हैं, लेकिन छोटे वाले मुश्किल में हैं। उधर ग्राहकों के लिए यह बड़ी मुश्किल है कि वे असली और नकली सेल में फर्क कैसे करें। हर साल दो साल कोई उद्यमी रिपोर्टर किसी बड़ी चेन में जाकर बाकायदा फोटो खींचकर सबूत के साथ खबर देता है कि कैसे ये लोग दाम बढ़ाकर फर्जी सेल लगाकर दिखा रहे हैं। कई बार तो आप खुद ही दाम के ऊपर लगा स्टिकर उखाड़कर देख सकते हैं कि असली दाम क्या था।
इसके अलावा त्योहारी सीजन में खरीदारी का एक और बड़ा ठिकाना सर्राफा बाजार या ज्यूलरी स्टोर्स होते हैं। शौक भी, शगुन भी और साथ-साथ निवेश भी। सोने-चांदी और जवाहरात का बाजार भी इस मौसम में चमक जाता है। वजह यह भी है कि इसी वक्त शादी ब्याह का मौसम भी आ जाता है। इस वक्त सोने का दाम आसमान छू रहा है, यह चिंता की बात हो सकती है। लेकिन इसी में तमाम लोग यह भी देख रहे हैं कि पिछले दो-तीन सालों में जिन लोगों ने सोने में पैसा लगाया, उन्हें बाकी तमाम निवेश के मुकाबले बेहतर मुनाफा हुआ है। फिर इस कारोबार का बड़ा हिस्सा पुराने गहनों के बदले नए गहने खरीदने से भी चलता है, जिस पर दाम का कोई खास असर पड़ता नहीं है। यानी तस्वीर में कुछ चिंता की रेखाएं जरूर हैं, लेकिन उम्मीद भी है कि त्योहार खुशहाली लेकर आएंगे न सिर्फ हमारे आपके परिवार में, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब