Editorial: सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की चुनौतियां

Update: 2024-10-07 14:23 GMT

Editorial: देश में तेज आर्थिक विकास के साथ जैसे-जैसे असंगठित और अनुबंध आधारित रोजगार का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे सामाजिक आर्थिक सुरक्षा की चिंताएं तेजी से बढ़ रही हैं। सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का संबंध ऐसी कानूनी व्यवस्था से है, जिसके तहत व्यक्ति या परिवार की आय के कुछ या सभी स्रोत बाधित हो जाएं, तब संबंधित व्यक्ति या परिवार का उपयुक्त रूप से ध्यान रखा जा सके। सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के तहत जीवन चक्र में सामना किए जाने वाले बेरोजगारी भत्ता, विकलांगता लाभ, छंटनी लाभ, स्वास्थ्य बीमा, चिकित्सा लाभ, मातृत्व अवकाश आदि लाभ प्रदान किए जाते हैं। निश्चित रूप से सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा मानव पूंजी निर्माण में या तो सीधे भोजन, कौशल और सेवाएं प्रदान करके योगदान देती है, या परोक्ष रूप से नकदी पहुंच प्रदान करके परिवारों को उनके विकास में सक्षम बनाती है। भारत सरकार द्वारा नागरिकों की सामाजिक भलाई सुनिश्चित करने और उन्हें विविध माध्यमों से आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने के मद्देनजर निशुल्क आवास, खाद्य सुरक्षा, सबसिडी वाली रसोई गैस, जन-धन योजना के माध्यम से गरीबों और किसानों को निर्धारित धनराशियां देकर करोड़ों लोगों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आइएलओ की रपट के मुताबिक दुनिया में महज 140 देशों में सामाजिक सुरक्षा से संबंधित योजनाएं हैं। दुनिया के विकासशील देशों में खासकर ये योजनाएं श्रमिकों की बीमारी, विकलांगता, बेरोजगारी पेंशन आदि से संबंधित हैं। हालांकि भारत सरकार विभिन्न माध्यमों से सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा का दायरा विस्तृत करने की डगर पर लगातार आगे बढ़ रही है, लेकिन अभी भी देश के अधिकांश लोग सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की उपयुक्त छतरी से दूर हैं। देश के ऐसे करोड़ों लोग, जो अपनी बचत से अपनी सामाजिक सुरक्षा का प्रबंध करते हैं, वे बैंकों की 'फिक्सड डिपाजिट तथा डाकखाने और अन्य सरकारी योजनाओं से जुड़ी विभिन्न बचत योजनाओं पर मिलने वाली कम ब्याज दरों से चिंतित हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 11 सितंबर को सत्तर वर्ष या उससे अधिक उम्र के सभी वर्गों के लोगों को आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने का फैसला किया है। इस योजना के तहत पांच लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज मिलेगा। इससे 4.5 करोड़ परिवारों को फायदा होने की उम्मीद है। इन परिवारों में छह करोड़ बुजुर्ग हैं। इसी तरह केंद्र सरकार ने अगस्त में सरकारी कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन योजना (यूपीएस) को मंजूरी दी है।
निश्चित रूप से अभी देश का आम आदमी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के लिए चिंतित रहता है। देश के करीब 57 करोड़ के श्रमबल में से तीन फीसद से भी कम सरकारी क्षेत्र के कर्मचारी यूपीएस से जुड़े हुए हैं। मगर करोड़ों श्रमिकों और कर्मचारियों से संबंधित संगठित निजी क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र के श्रमबल के सामने वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा चिंता का विषय बनी हुई है। हालांकि सरकारी कर्मचारियों के अलावा संगठित निजी क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए भी पेंशन की कुछ व्यवस्थाएं हैं, लेकिन वे वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा के मद्देनजर अपर्याप्त और असंतोषप्रद हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत मात्र 436 रुपए वार्षिक भुगतान पर दो लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जाता है। यह योजना 18 से 55 वर्ष की आयु के लोगों के लिए उपलब्ध है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत 18 से 70 वर्ष के लोग बीस रुपए वार्षिक भुगतान पर दो लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा प्राप्त कर सकते हैं। अटल पेंशन योजना (एपीवाई) असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर केंद्रित एक पेंशन योजना है। इसके तहत साठ वर्ष की उम्र में एक हजार रुपए से लेकर पांच हजार रुपए प्रति माह की न्यूनतम पेंशन की गारंटी ग्राहकों द्वारा योगदान के आधार पर दी जाती है। देश का कोई भी श्रमिक जिसकी उम्र 18 से 40 साल के बीच हो, एपीवाई योजना में शामिल हो सकता है।
इसी तरह व्यापारियों, दुकानदारों और स्वरोजगार करने वाले व्यक्तियों सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने दो प्रमुख पेंशन योजनाएं शुरू की हैं- प्रधानमंत्री श्रम योगी मान- धन योजना (पीएम-एसवाईएम) और व्यापारियों, दुकानदारों तथा स्वरोजगार करने वाले व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस- ट्रेडर्स)। इन योजनाओं के तहत, लाभार्थी साठ वर्ष की आयु के बाद न्यूनतम तीन हजार रुपए की मासिक पेंशन प्राप्त करने के हकदार हैं। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि 18-40 वर्ष की आयु के वे श्रमिक जिनकी मासिक आय पंद्रह हजार रुपए से कम है, वे पीएम एसवाईएम योजना में शामिल हो सकते हैं और व्यापारी, दुकानदार और स्वरोजगार करने वाले व्यक्ति, जिनका वार्षिक कारोबार 1.5 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है, वे एनपीएस- ट्रेडर्स योजना में शामिल हो सकते हैं। दोनों योजनाओं के तहत लाभार्थी द्वारा 50 फीसद मासिक अंशदान देय है और केंद्र सरकार द्वारा समान मिलान अंशदान का भुगतान किया जाता है।
संगठित क्षेत्र में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) सबसे बड़ा सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा संगठन है। भविष्य निधि के लिए कर्मचारी का जो अशंदान करता है, उसका एक हिस्सा पेंशन फंड के लिए कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएफ) में जाता है। पेंशन के लिए शर्त है कि कर्मचारी को कम से कम दस वर्ष तक नौकरी करनी होती और पीएफ खाते में अंशदान करना होता है। मौजूदा नियमों के अनुसार पेंशन योग्य वेतन की अधिकतम सीमा पंद्रह हजार रुपए है। ईपीएफ सदस्य को न्यूनतम एक हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन मिल पाती है। इसे साढ़े सात हजार रुपए प्रति माह करने की मांग लंबे समय से हो रही है। असंगठित क्षेत्र के श्रमबल द्वारा सरकार के समक्ष उपयुक्त पेंशन की मांग की जा रही है। इसमें कोई दो मत नहीं कि इस समय 'गिग वर्क' सहित नई निर्मित नौकरियों में से ज्यादातर नौकरियां असंगठित क्षेत्र में सृजित हो रही हैं और इनमें पेंशन संबंधी सुरक्षा नहीं है। 'गिग' अर्थव्यवस्था का मतलब है अनुबंध आधारित या अस्थायी रोजगार वाली अर्थव्यवस्था ।
एक चिंताजनक प्रश्न यह भी है कि जहां असंगठित क्षेत्र के करोड़ों लोग पेंशन व्यवस्था से दूर हैं, वहीं बचत पर घटी हुई ब्याज दर और विभिन्न आकर्षण कम होने के कारण देश में सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की चिंताएं बढ़ रही हैं। अभी भी देश में बड़ी संख्या में लोगों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की छतरी उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं, बचत योजनाओं पर मिलने वाली ब्याज दरों पर देश के उन तमाम छोटे निवेशकों का दूरगामी आर्थिक प्रबंधन निर्भर होता है, जो अपनी छोटी बचतों के जरिए जिंदगी के कई महत्त्वपूर्ण कामों को निपटाने की व्यवस्था सोचे हुए हैं। ऐसे में उपयुक्त पेंशन की अहमियत है। अब सरकार को इस ओर अवश्य ध्यान देना होगा कि वह निजी क्षेत्र तथा असंगठित क्षेत्रों में सेवा देने वाले करोड़ों लोगों के लिए उपयुक्त सम्मानजनक पेंशन और सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के बारे में गंभीरतापूर्वक ध्यान दे और निजी क्षेत्र की पेंशन योजनाओं को भी आकर्षक बनाए।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब

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