कमाई की जमीन

सरकारों के सामने एक बड़ी समस्या रहती है कि वे बीमार पड़े या बिल्कुल नकारा साबित हो रहे उपक्रमों को कैसे लाभकारी बनाएं। देश में ऐसे अनेक सरकारी संस्थान हैं, जिनके पास बड़ी मात्रा में भूमि है

Update: 2022-03-11 04:04 GMT

Written by जनसत्ता: सरकारों के सामने एक बड़ी समस्या रहती है कि वे बीमार पड़े या बिल्कुल नकारा साबित हो रहे उपक्रमों को कैसे लाभकारी बनाएं। देश में ऐसे अनेक सरकारी संस्थान हैं, जिनके पास बड़ी मात्रा में भूमि है और उनकी इमारतों का बड़ा हिस्सा वर्षों से अनुपयोगी पड़ा हुआ है। उनके रखरखाव पर सरकार को भारी खर्च उठाना पड़ता है। इसलिए केंद्र सरकार ने ऐसे उपक्रमों, संस्थानों और अन्य सरकारी भूखंडों के मौद्रीकरण को मंजूरी दी है।

इसके लिए राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम की स्थापना की जाएगी, जो ऐसी सरकारी संपत्तियों की देखरेख करेगा, उन्हें किराए पर उठाने या फिर बेचने का निर्णय करेगा। सरकार अब तक घाटे में चल रहे अनेक उपक्रमों का मौद्रीकरण कर चुकी है। उनमें एअर इंडिया और कई हवाईअड््डों, रेलवे स्टेशनों का मौद्रीकरण प्रमुख है। लालकिला जैसी कुछ ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव की जिम्मेदारी भी निजी कंपनियों को सौंपी जा चुकी है। राष्ट्रीय भूमि का मौद्रीकरण उसकी अगली कड़ी है। माना जा रहा है कि सरकार के इस कदम से न सिर्फ बेकार पड़े भूखंडों का उचित उपयोग हो पाएगा, उनके रखरखाव पर सरकार का खर्च कम होगा, बल्कि सरकार का खजाना भी कुछ भरेगा।

देश में बहुत सारे उपक्रमों, सरकारी संस्थानों की स्थापना आजादी के ठीक बाद हुई थी। तब उनके विशाल भवन बनाए गए थे, उनके आसपास खेलकूद के मैदान, बगीचों आदि के नाम पर विशाल भूखंड खाली छोड़ा गया था। तब इस तरह शहरों का फैलाव नहीं हुआ था। अब उन संस्थानों के आसपास तक शहर का फैलाव हो गया है। वे इमारतें और उनके भूखंड महंगे माने जाने वाले इलाकों के भीतर आ चुके हैं।

उनमें से कई उपक्रम और संस्थान अब लाभकारी नहीं रहे या अपनी उपयोगिता खो चुके हैं। इस तरह, उनके रखरखाव पर सरकार को नाहक पैसा खर्च करना पड़ता है। पर सरकारी संपत्ति होने की वजह से उनका कोई व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था। अब केंद्र की मंजूरी के बाद राष्ट्रीय भूमि मौद्रीकरण निगम उनके व्यावसायिक उपयोग के तरीके निकाल सकेगा। हालांकि यह एकदम नया प्रयोग नहीं होगा। इसके पहले भी अलग-अलग विभाग अपनी संपत्तियों का मौद्रीकरण करके राजस्व की उगाही बढ़ाने के प्रयास करते रहे हैं। रेलवे इसका उदाहरण है। उसने न सिर्फ स्टेशनों पर विज्ञापनों और दुकानों के ठेके से अपनी कमाई बढ़ाई, बल्कि कई जगह भवनों के व्यावसायिक उपयोग की छूट भी दी। इसी तरह रेलवे से निकलने वाले कबाड़ की बिक्री में निजी कंपनियों को शामिल किया गया।

हालांकि केंद्र के ताजा फैसले को लेकर आशंका जताई जा रही है कि इनके खरीदार या किराएदार मिलने मुश्किल होंगे। इसके पीछे हवाईअड््डों आदि के मौद्रीकरण के वक्त ग्राहकों में उत्साह न दिखाई देने का तर्क दिया जा रहा है। मगर इस मामले में वही स्थिति नहीं मानी जा सकती। सरकारी भूखंडों और भवनों के व्यावसायिक उपयोग के लिए अनेक कंपनियां लालायित रहती हैं।

महंगे इलाकों में होटल, बाजार, अतिथिगृह आदि के निर्माण की बड़ी संभावना रहती है। इसके अलावा शादी-विवाह जैसे आयोजनों के लिए जगहों का उपयोग किया जा सकता है। हालांकि कई जगह सरकारों ने भी अपने स्तर पर इस तरह के व्यावसायिक उपयोग का प्रयास किया था, मगर वे सफल नहीं हो पार्इं। इसकी बड़ी वजह थी कि उनके पास निजी कंपनियों की तरह व्यावसायिक तरीका नहीं था। यह फैसला निस्संदेह उचित कहा जा सकता है, पर यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि इन भूखंडों के प्रबंधन में तार्किकता और पारदर्शिता बरती जाए।


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