MCD चुनाव को लेकर बीजेपी और आप के बीच चल रहे झगड़े से बंटाधार सिर्फ दिल्ली का होगा
बीजेपी और आप के बीच चल रहे झगड़े से बंटाधार सिर्फ दिल्ली का होगा
अजय झा.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly Election) की गहमागहमी के बीच एक बड़ी खबर कहीं छुप गई कि दिल्ली के उपराज्यपाल के आदेशानुसार दिल्ली के तीनों नगर निगमों का चुनाव (Delhi Municipal Corporation Elections) अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया गया है. चूंकि तीनों नगर निगमों का कार्यकाल 5 मई को समाप्त हो जाएगा, लगता नहीं है कि 5 मई के पहले नया चुनाव हो भी पाएगा. दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दर्ज की है, सम्भावना यही है कि दिल्ली की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की जगह सरकारी अफसर कुछ समय तक दिल्ली में नगर निगम चलाएंगे, जो सीधे उपराज्यपाल की देखरेख में काम करेंगे, यानि अपरोक्ष रूप से केंद्र सरकार दिल्ली में नगर निगम चलाएगी.
बताया गया है कि केंद्र सरकार दक्षिण दिल्ली नगर निगम, उत्तर दिल्ली नगर निगम और पूर्व दिल्ली नगर निगम का विलय करके पुनः दिल्ली नगर निगम (MCD) को स्थापित करना चाहती है. इसका सीधा मतलब यह है कि दिल्ली में फ़िलहाल कई महीनों, शायद सालों तक, अब चुनाव नहीं होने वाला है, क्योंकि एकीकरण के बाद दिल्ली नगर निगम में सीटों की संख्या कम हो जाएगी जिस कारण एक बार फिर से सभी वार्ड के परिसीमन का कार्य शुरू होगा जो लम्बे समय तक चल सकता है.
अब तक दिल्ली नगर निगम पर बीजेपी का राज था
इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली नगर निगम को तीन निगमों में विभाजित करने का प्रयोग असफल रहा है. साल 2011 में जब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित होती थीं, तो उन्होंने दिल्ली विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास किया था जिसे केंद्र सरकार ने अपनी स्वीकृति दी थी और जिसके बाद तीनों नगर निगमों का पहली बार चुनाव 2012 में हुआ. उस समय दिल्ली और केंद्र दोनों जगहों पर कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी का राज था. कांग्रेस पार्टी की सोच यह थी कि इससे उन्हें कुछ राजनीतिक लाभ मिलेगा और बीजेपी कमजोर जो जाएगी. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उल्टे दिल्ली में कांग्रेस पार्टी का सफाया होना शुरू हो गया.
2012 के चुनाव में तीनों नगर निगमों में बीजेपी की शानदार जीत हुई. बीजेपी 272 में से 138 सीटें जीतने में सफल रही और कांग्रेस पार्टी को 77 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. 2017 में जब दूसरी बार नगर निगम का चुनाव हुआ तो बीजेपी की एकतरफा जीत हुई और बीजेपी के सीटों की संख्या 138 से बढ़ कर 181 पर पहुंच गयी. 2017 में पहली बार नगर निगम चुनाव लड़ते हुए आम आदमी पार्टी 49 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही और कांग्रेस 31 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर. पिछले 15 वर्षों से दिल्ली नगर निगम बीजेपी के अधीन है, तो फिर क्या बात हो गई कि केंद्र में बीजेपी की सरकार दिल्ली में स्थानीय निकाय चुनाव करवाने से कतरा रही है?
शीला दीक्षित सरकार का दिल्ली नगर निगम को तीन टुकड़ों के बांटने का फैसला गलत था. दिल्ली नगर निगम के विभाजन के बाद दिल्ली के पांच स्थानीय निकाय बन गए थे. दिल्ली छावनी परिषद् और नई दिल्ली म्युनिसिपल कौंसिल भी हैं, यूं कहें की वर्तमान समय में दिल्ली में पांच नहीं बल्कि 6 स्थानीय निकाय हैं तो गलत नहीं होगा. क्योंकि दिल्ली शहर का वह हिस्सा जो दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के अधीन होता है जहां नए कॉलोनी बसाए जाते हैं और तब तक कि जब तक विकास का कार्य समाप्त ना हो जाए और नए कॉलोनी दिल्ली नगर निगम को नहीं सौंप दिए जाते, वहां स्थानीय निकाय का काम दिल्ली विकास प्राधिकरण के जिम्मे ही होता है. शायद ही देश के किसी अन्य शहर में पांच या 6 स्थानीय निकाय हैं. अंग्रेजी में एक कहावत भी है कि Too many cooks spoil the broth यानि कई रसोइयां भी शोरबा खराब कर देते है. और यह कहावत दिल्ली शहर पर लागू होती है. दिल्ली की पहचान विदेशों में एक गंदे शहर में रूप में है जो किसी भी भारतीय के लिए बेहद शर्मनाक है.
पंजाब की जीत के बाद आप का सितारा बुलंदियों पर है
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि दिल्ली नगर निगम में अनंत काल से भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है, जिस वजह से दिल्ली कचरे का शहर बन गया है. तो क्या बीजेपी को अब यह भय सताने लगा था कि अगर नगर निगम चुनाव अभी हुए तो आम आदमी पार्टी चुनाव जीत जाएगी, जिसका असर दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर 2024 के आम चुनाव में पड़ सकता है?
इसमें कोई शक नहीं कि आम आदमी पार्टी का सितारा अभी बुलंदियों पर है, खासकर पंजाब में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद. यह एक दिलचस्प संयोग है कि दिल्ली में लगातार तीन बार नगर निगम चुनावों में और पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत हुई, पर पिछले दो विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी जानता की पहली पसंद रही. इस गुत्थी को सुलझाना कि किस आधार पर दिल्ली के मतदाता बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच एक तरफ़ा फैसला देते हैं आसान नहीं है. पर ऐसा लगता है कि विधानसभा चुनावों में दिल्ली के मतदाता अरविंद केजरीवाल के लिए वोट करते हैं ना कि उनकी पार्टी के लिए.
अगर केंद्र सरकार ने किसी आधार पर मन बना ही लिया था कि तीनो नगर निगमों का एकीकरण करना है, जो शायद एक सही फैसला भी है, तो फिर उस निर्णय को आखिरी समय तक क्यों लंबित रखा गया, अगर बीजेपी को आम आदमी पार्टी का भय नहीं सताने लगा था. खबर है कि इस दिशा में 2014 यानि केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद ही कार्य शुरू हो गया था. दिल्ली राज्य निर्वाचन आयोग के तत्कालीन आयुक्त राकेश मेहता ने वर्ष 2014 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम (DMC Act) में परिवर्तन कराने की तैयारी शुरू की थी पर उस पर कार्य अब होता दिख रहा है.
नगर निगम चुनाव का स्थगित होना बीजेपी के फायदे में है
अब खबर यह है कि दिल्ली के सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों के अंतर्गत नगर निगम के तीन वार्ड होंगे और जो छोटे विधानसभा क्षेत्र हैं वहां दो. यानि 272 की जगह दिल्ली नगर निगम में कुल वार्ड 170 से 210 के बीच हो सकते हैं. दिल्ली का अब एक ही मेयर होगा और स्थायी समिति की जगह अब मेयर की सहायता के लिए एक टीम होगी जो किसी मंत्रीमंडल की तरह होगी और महापौर यानि मेयर एक मुख्यमंत्री की तरह काम करेगा. इसका क्या फायदा होगा और क्या नुकसान, अभी से कहना मुश्किल है. पर अगर दिल्ली में एक मुख्यमंत्री के अलावा एक शक्तिशाली मुख्यमंत्री नुमा मेयर भी होगा तो यह अरविंद केजरीवाल क्या किसी भी मुख्यमंत्री को रास नहीं आएगा. इसका नतीजा हो सकता है कि अगर राज्य सरकार और दिल्ली नगर निगम एक ही पार्टी के अधीन नहीं हो तो फिर लगातार तकरार और टकराव की स्थिति बनी रहेगी जिससे जनता और शहर का भला नहीं होने वाला है.
केंद्र सरकार के मंसूबों कर कोई शक नहीं होता अगर एकीकरण का काम एक-दो वर्ष पहले ही शुरू हो जाता और निर्धारित समय में चुनाव हो जाता. अगर सर्वोच्च न्यायलय आम आदमी पार्टी की याचिका के पक्ष में फैसला नहीं देती है तो फिर यह मान कर चलिए कि एकीकृत दिल्ली नगर निगम का चुनाव अब शायद लोकसभा चुनाव के साथ ही हो जिससे बीजेपी को फायदा मिल सकता है, क्योंकि अगर चुनाव एक साथ हुआ तो लोग दिल्ली नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार को भूल कर मोदी के पक्ष या विपक्ष में वोट डालेंगे. और तब तक फिर दिल्ली में आए दिन सफाई कर्मचारी और नगर निगम अस्पतालों के डॉक्टरों की हड़ताल दिख सकती है. दिल्ली नगर निगम को राज्य सरकार पर आर्थिक सहायता के लिए निर्भर रहना पड़ता है.
कई बार नगर निगम को बदनाम करने के लिए यह आर्थिक सहायता समय से नहीं दी जाती है, जिस कारण नगर निगम के कर्मचारियों का वेतन कई महीनों तक रुक जाता है, हड़ताल होती है और मुख्य सड़कों पर कूड़े का ढेर लग जाता है. दिल्ली शाहर और दिल्ली की जनता के हित में यही होगा कि केंद्र सरकार दिल्ली नगर निगम के बारे में जो भी फैसला लेना चाहती है वह जल्द से जल्द ले ले और चुनाव लम्बे समय तक तथा राजनीतिक कारणों से स्थगित ना रहे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में लेखक के विचार निजी हैं.)