दोहरी चुनौती
रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट बता रही है कि देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां अभी कम नहीं हुई हैं। हालांकि अर्थव्यवस्था अब संकट के उस दौर से बाहर आ चुकी है जो कोरोना महामारी से उपजे हालात के कारण पैदा हो गया था।
Written by जनसत्ता; रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट बता रही है कि देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां अभी कम नहीं हुई हैं। हालांकि अर्थव्यवस्था अब संकट के उस दौर से बाहर आ चुकी है जो कोरोना महामारी से उपजे हालात के कारण पैदा हो गया था। इसलिए जोखिम का स्तर अब पहले वाला तो नहीं ही है। पर अभी हालात पूरी तरह से पटरी पर आने में समय लगेगा। रिपोर्ट में बढ़ती महंगाई और आर्थिक वृद्धि को लेकर रिजर्व बैंक की चिंता साफ झलक रही है। इसीलिए अपनी प्राथमिकता साफ करते हुए शीर्ष बैंक ने कहा भी है कि अभी उसका सारा जोर महंगाई काबू करने और आर्थिक वृद्धि दर पर है।
दरअसल थोक और खुदरा महंगाई के आंकड़े जिस तरह रेकार्ड तोड़ते जा रहे हैं, उससे नए संकट खड़े हो सकते हैं। लेकिन ऐसी नौबत न आए, इसलिए चार मई को नीतिगत दरों में वृद्धि का बड़ा कदम उठाया गया। नीतिगत दरों में और इजाफा करने का संकेत भी बैंक पहले दे ही चुका है। लेकिन उसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि महंगाई थामने के प्रयासों के साथ ही आर्थिक वृद्धि के उपाय भी साथ-साथ चलेंगे। रिजर्व बैंक के सामने यह दोहरी चुनौती है जब उसे महंगाई और आर्थिक वृद्धि दोनों में संतुलन साधना है।
इस वक्त देश आर्थिक मोर्चे पर जिस तरह के संकट का सामना कर रहा है, उसमें रूस-यूक्रेन युद्ध ने आग में घी का काम किया है। गौरतलब है कि पिछले दो वित्त वर्ष तो कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गए थे और अर्थव्यवस्था बैठ गई थी। लेकिन कुछ महीनों से इसमें सुधार के संकेत दिखने लगे थे। उससे उम्मीद बनी थी कि हालात जल्द काबू में आ जाएंगे। पर यूक्रेन संकट ने सारी उम्मीदों को धराशायी कर दिया। युद्ध की वजह से कच्चे तेल, धातु और उवर्रकों के व्यापार को तगड़ा झटका लगा।
सबसे ज्यादा असर कच्चे तेल के दामों का पड़ा और इसके दाम एक सौ तीस डालर प्रति बैरल को पार गए थे। भारत अपनी जरूरत का अस्सी फीसद से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है। जाहिर है, भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने थे। इससे महंगाई बेकाबू होती गई। महंगाई को लेकर आरबीआइ ने रिपोर्ट में कहा भी है कि 2021-22 की चौथी तिमाही में खुदरा महंगाई छह फीसद से ऊपर निकल गई थी और इस वजह से मौद्रिक नीति तय करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया था। जाहिर है,ऐसे में केंद्रीय बैंक के सामने नीतिगत दरें बढ़ाने के अलावा कोई चारा बचा भी नहीं था।
महंगाई दर को काबू में रखने और आर्थिक वृद्धि दर के लिए मौद्रिक नीति तय करना रिजर्व बैंक का दायित्व है। उसे मौद्रिक नीति और सरकार की आर्थिक नीतियों में तालमेल भी बना कर चलना होता है। महामारी के बाद केंद्रीय बैंक का सारा जोर आर्थिक वृद्धि पर था। इसीलिए उसने लंबे समय तक नीतिगत दरें नहीं बढ़ाई थीं। अगर महंगाई दर रिजर्व बैंक के निर्धारित दायरे से बाहर नहीं जाती तो शायद बैंक नीतिगत दरों में वृद्धि को कुछ समय के लिए और टालने पर विचार करता। अभी कई मोर्चे हैं जिन पर काम होना है।
बाजार में मांग और खपत का चक्र कैसे बने, यह बड़ी चुनौती है। बिना आर्थिक वृद्धि के रोजगार के अवसर भी नहीं बनेंगे। रोजगार नहीं होगा तो लोगों के हाथ में पैसा कहां से आएगा और कैसे लोग महंगाई का सामना करेंगे? रुपए में गिरावट और व्यापार असंतुलन भी कम बड़ी चिंता की बात नहीं हैं। स्पष्ट है कि केंद्रीय बैंक को अब फूंक-फूंक कर कदम रखने हैं।