डर को डिप्रेशन न बनाएं, हर ओर फैली नकारात्मकता के इस युग में खुश रहने के बहाने ढूंढने होंगे
कोरोना महामारी की वजह से सोशल मीडिया सहित हर जगह इन दिनों डर ही डर पसरा हुआ है
कोरोना महामारी की वजह से सोशल मीडिया सहित हर जगह इन दिनों डर ही डर पसरा हुआ है। यह डर देह और मन को कमजोर कर पहले उदासी और फिर एंग्जाइटी व डिप्रेशन में तब्दील होता जा रहा है और हमारे दैनंदिन जीवन को प्रभावित करने लग रहा है। कोरोना वायरस से सावधानी तो ठीक है, लेकिन बहुत ज्यादा डरना नहीं है। किसी भी सूरत में डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है। जब भी यह डर हावी होने लगे, तो कोरोना से जूझ रहे ऐसे लोगों के बारे में सोचिए, जो अपनी जिजीविषा और संकल्प शक्ति के बल पर कोरोना को धता बताकर सामने दिखती मौत को मात दे आए हैं।
उन फ्रंटलाइन वर्कर्स (डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, एंबुलेंस ड्राइवर, पुलिस, सफाईकर्मी आदि) को याद कीजिए, जो हर वक्त अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाने में लगे हैं। बिना थके, बिना पर्याप्त आराम किए वे लगातार मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं। इसके अलावा, अखबारों के इन्हीं पन्नों पर प्रकाशित दूसरी खबरों पर भी गौर फरमाइए, जो मौत और निराशा नहीं, बल्कि उम्मीदें जगाती हैं। आकाश फिर से निर्मल और हवा ताजादम होने लगी है। दर्शनार्थियों और नमाजियों की भीड़ से खाली होकर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरजे अब सरकारों और सेवाभावी लोगों के साथ भोजन के साथ ऑक्सीजन सिलेंडर और दवा बांटने के कामों में लग गए है। जैन मंदिर खुशी-खुशी कोविड सेंटर में तब्दील हो गए हैं।
मुंबई की माहिम व हाजी अली दरगाहों और शहर के कई हिंदू, ईसाई और सिख धर्मस्थलों और संगठनों ने अफवाहों के दौर में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। यही तो हमारे देश की बहुलतावादी संस्कृति की खूबसूरती है कि जब भी कोई संकट दरवाजे पर दस्तक देता है, हम सभी अपने तमाम गिले-शिकवे भुलाकर एकजुट हो जाते हैं और संकट व चुनौतियों के खिलाफ खड़े होते हैं। इसके अलावा, अब देश में कोरोना के खिलाफ नई वैक्सीनें आने वाली हैं। 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के सभी लोगों को लगने वाली वैक्सीन की कीमतों का खुलासा भी हो गया है और यह आम लोगों के बूते के भीतर है।
दुनिया में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जो कोरोना काल में दूसरों के काम आने को ही 'असली खुशी' मानते हैं। शाहनवाज शेख ने 22 लाख रुपये की अपनी कार बेचकर चार हजार जरूरतमंदों तक ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाए हैं। किडनी फेल हो जाने के कारण खुद ऑक्सीजन सपोर्ट पर जिंदा रोजी सलढाना ने अपने सारे आभूषण बेचकर आठ सिलेंडर खरीदे हैं, जिनका ऑक्सीजन गंभीर कोराना मरीजों के लिए प्राणवायु है। नासिक महानगरपालिका के हिंदू शवदाह गृह की कमान पिछले दस वर्ष से एक मुसलमान महमूद शेख संभाल रहे हैं। महामारी के डर से जब सगे परिजन अपने मृतक रिश्तेदारों के शव के आसपास फटकने से इन्कार कर रहे हैं, ऐसे विकट समय में लखनऊ की वर्षा अपने शववाहन से अस्पतालों से शवों को श्मशान पहुंचा रही हैं।
मनोज वाल्मीकि, सुनील शर्मा और पुलिस नायक डी. पी. वारे पीपीई किट या ऐसे ही सुरक्षा कवच के बिना लावारिस लाशों का संस्कार कर रहे हैं। मॉरिस नोरोम्हा फुटपाथी वेंडरों से सामान खरीदकर जरूरतमंदों को बांटकर, दोनों का सहारा बने हुए हैं। ऐसे में आप चिंतित होकर दूसरों की चिंता का सबब बनने के बजाय खुद इन पहलों का हिस्सा बनने की कोशिश क्यों नहीं करते हैं! एक हालिया सर्वे ने खुलासा किया है कि कोविड के अनुभवों से गुजरे 84 फीसदी मरीज मानसिक उलझन और मूड स्विंग के शिकार हैं। यह प्रवृत्ति आत्महंता हो जाए, इससे पहले ही उसे रोकना होगा। हर ओर फैली नकारात्मकता के इस युग में खुश रहने के बहाने ढूंढने होंगे। ध्यान रखिए, कोरोना की सबसे बड़ी दवा इम्युनिटी ही है। और उसका ऑक्सीजन है खुशी। जीवन है, तो आशा है और आशा है, तो जीवन के लिए उम्मीद। कोरोना तो बस एक स्पीड ब्रेकर है। इतनी बदतर हालत में भी जिंदगी अभी थमी नहीं है। यह फिर दौड़ेगी, क्योंकि उसकी रफ्तार को रोकना मुमकिन ही नहीं है।
क्रेडिट बाय अमर उजाला