जिला पंचायतों में भाजपा का डंका!
उत्तर प्रदेश के जिला पंचायतों के अध्य़क्ष के चुनाव में राज्य में सत्ताधारी भाजपा को मिली इकतरफा शानदार जीत को राज्य की जमीनी हकीकत के राजनैतिक थर्मामीटर में माप कर देखे जाने की जरूरत इसलिए है
आदित्य चोपड़ा| उत्तर प्रदेश के जिला पंचायतों के अध्य़क्ष के चुनाव में राज्य में सत्ताधारी भाजपा को मिली इकतरफा शानदार जीत को राज्य की जमीनी हकीकत के राजनैतिक थर्मामीटर में माप कर देखे जाने की जरूरत इसलिए है क्योंकि अप्रैल महीने के अन्तिम सप्ताह में सम्पन्न जिला पंचायत सदस्यों के चुनावों में भाजपा को मामूली सफलता मिली थी। राज्य के कुल 75 जिलों में से 66 में भाजपा के प्रत्याशी पंचायत अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए हैं और केवल पांच जिलों में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष चुने गये हैं। जबकि अन्य स्थानों पर छिट-पुट दलों के प्रत्याशी विजयी रहे हैं। बसपा ने इन चुनावों में अपने प्रत्याशियों की घोषणा ही नहीं की थी जबकि पंचायत सदस्यों में जीत कर आने वाले बहुत से कांग्रेसी व बसपा सदस्य भी थे। चूंकि पंचायत सदस्यों के चुनाव राजनैतिक आधार पर पार्टियों के चुनाव निशानों के बूते पर नहीं होते हैं अतः विजयी प्रत्याशियों के विशेष पार्टी की तरफ झुकाव से ही उनके राजनैतिक दल का अन्दाजा होता है परन्तु जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव राजनैतिक आधार पर होते हैं इसलिए जिले के चुने हुए पंचायत सदस्य उसका चुनाव अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता के आधार पर करते हुए माने जाते हैं। पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में पिछले तीस साल से ही विपक्षी पार्टियां धांधली का आरोप लगाती रही हैं और चुने हुए पंचायत सदस्य भी राजनैतिक लाभ की दृष्टि से सत्तारूढ़ पार्टी के पाले में पहुंचने में देर नहीं करते हैं।