गोरखालैंड पर फिर विवाद
अगले साल पश्चिम बंगाल विधान सभा का चुनाव होगा। तो लाजिमी है कि केंद्र सरकार को फिर से गोरखालैंड मुद्दे की याद आई है।
राज्य सरकार की आपत्ति बैठक बुलाने के तरीके पर थी। उसके अधिकारियों ने कहा कि केंद्र बैठक बुलाने की सूचना राज्य सरकार को दे सकता है। लेकिन वह यह तय नहीं कर सकता कि उसमें बंगाल से कौन-कौन हिस्सा लेगा। इस बैठक में दार्जिलिंग के जिलाशासक को भी न्योता दिया गया था। जबकि राज्य सरकार का कहना है कि बैठक में सरकारी प्रतिनिधियों के शामिल होने के बारे में राज्य सरकार ही फैसला कर सकती है। उसने कहा कि केंद्र ने बैठक बुलाने से पहले उससे सलाह-मशविरा नहीं किया। अब तक ऐसी किसी त्रिपक्षीय बैठक के बारे में केंद्र की ओर से मुख्य सचिव या गृह सचिव को पत्र भेजने की परंपरा रही है। लेकिन इस बार केंद्र ने सीधे दार्जिलिंग के जिलाशासक और जीटीए के प्रमुख सचिव को पत्र भेज कर उनसे बैठक में शामिल होने को कहा। साफ तौर पर यह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण है। मगर आजकल केंद्र ऐसी सीमाओं को बहुत से मामलों में नहीं मान रहा है। इसलिए राज्य में भाजपा से अलग दायरों में यही धारणा बनी कि हर चुनाव के पहले भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के दिल में अचानक दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के प्रति प्रेम उमड़ने लगता है। गोरखालैंड का मुद्दा उठा कर वह फिर अलगाववादी आंदोलन को हवा देने का प्रयास कर रही है। इस बात पर सहमति है कि पर्वतीय क्षेत्र को और स्वायत्तता दी जानी चाहिए। लेकिन यह राज्य की सीमा के भीतर ही होना चाहिए।