पर्यावरण की आड़ में देश विरोधी ताकतों के मददगार बने दिशा रवि, निकिता और शांतनु

इस पर हैरानी नहीं कि बहुचर्चित टूलकिट मामले की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे साजिश की परतें सामने आ रही हैं।

Update: 2021-02-19 01:57 GMT

इस पर हैरानी नहीं कि बहुचर्चित टूलकिट मामले की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे साजिश की परतें सामने आ रही हैं। कनाडा में बैठे खालिस्तानियों ने जिस आसानी के साथ कनार्टक की दिशा रवि और महाराष्ट्र की निकिता एवं शांतनु को अपने साथ मिला लिया, उससे यही संकेत मिलता है कि ये तथाकथित पर्यावरण हितैषी ऐसी गतिविधियों में पहले से लिप्त रहे होंगे और इसी के चलते खालिस्तानी तत्वों ने इन्हें अपने लिए उपयोगी पाया।

आखिर इन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे उनकी साजिश में शामिल होना क्यों स्वीकार कर लिया? क्या कोई इतना अज्ञानी हो सकता है कि चाय और योग के देश वाली भारत की छवि नष्ट करने के अभियान का मकसद न समझ पाए?
इन तीनों की खालिस्तानियों से मिलीभगत ने उन तत्वों की याद दिला दी, जो पर्यावरण की आड़ में देश विरोधी ताकतों के मददगार बनते रहते हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि कुडानकुलम में परमाणु ऊर्जा संयंत्र के खिलाफ किस तरह पर्यावरण रक्षा की आड़ में लंबे समय तक आंदोलन चलाया गया। इसी तरह के कुछ और आंदोलन अन्य परियोजनाओं के खिलाफ भी चलाए गए हैं।
इनमें से कई के पीछे विदेशी संगठनों का हाथ पाया गया। ऐसे तत्वों के बारे में खुफिया ब्यूरो की एक रपट में कहा गया था कि कई गैर सरकारी संगठन पर्यावरण रक्षा के बहाने विदेश से पैसा लेकर विकास से जुड़ी परियोजनाओं का विरोध करते हैं। अब इसका अंदेशा बढ़ गया है कि दिशा, निकिता और शांतनु के संगठन भी इसी किस्म के हों।
दिशा, निकिता और शांतनु के बारे में यह तर्क दिया जा रहा है कि इन्हें तो बस किसानों से हमदर्दी थी, लेकिन यह गले नहीं उतरता, क्योंकि कृषि कानून विरोधी आंदोलन के कर्ता-धर्ता तो यह चाह रहे कि उन्हें बेरोक-टोक पराली जलाने की सुविधा मिले। क्या ये तीनों किसानों को यही सुविधा दिलाने के लिए इस आंदोलन को अपना समर्थन दे रहे थे


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