एनजीटी का निराश करने वाला आकलन, सीवरों का करीब 50 प्रतिशत दूषित पानी जा रहा गंगा नदी में
एनजीटी का निराश करने वाला आकलन
सोर्स- जागरण
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का यह आकलन निराश करने वाला है कि सीवेज शोधन संयंत्रों के पूरी तरह काम न करने के कारण सीवरों का करीब पचास प्रतिशत दूषित पानी गंगा नदी में जा रहा है। इस संस्था ने यह भी पाया कि औद्योगिक कचरा भी गंगा में पहुंच रहा है। यह समझना कठिन है कि गंगा को साफ-स्वच्छ करने के अभियान को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के बावजूद अभी तक संबंधित राज्यों में पर्याप्त संख्या में सीवेज शोधन संयंत्र स्थापित क्यों नहीं किए जा सके हैं? निश्चित रूप से इस प्रश्न का उत्तर भी मिलना चाहिए कि जो सीवेज शोधन संयंत्र लगे हुए हैं, वे पूरी क्षमता से काम क्यों नहीं कर रहे हैं?
इस प्रश्न का उत्तर राज्य सरकारों और विशेष रूप से उनके स्थानीय निकायों को देना ही चाहिए, क्योंकि यह प्रश्न एक लंबे अर्से से अनुत्तरित है। स्थानीय निकायों को इसके लिए बाध्य किया जाना चाहिए कि वे अपने इस प्राथमिक दायित्व का निर्वहन सही तरह से करें। इतने वर्षों बाद भी गंगा को साफ करने का उद्देश्य पूरा होता हुआ न दिखना इसलिए एक बड़ी चिंता का कारण है, क्योंकि यदि देश की इस सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र समझी जाने वाली नदी को स्वच्छ नहीं किया जा सका तो फिर अन्य नदियों के साफ-सुथरा होने की आशा कैसे की जा सकती है?
यह समय की मांग है कि केंद्र सरकार ऐसी कोई व्यवस्था करे जिससे एक निश्चित समय में इस नदी को स्वच्छ करने का संकल्प लिया जाए और उसे पूरा करके दिखाया जाए। ऐसा करके ही देश की अन्य नदियों को साफ करने के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश की अधिकतर नदियां प्रदूषण की चपेट में हैं। इनमें यमुना नदी भी है, जो सर्वाधिक प्रदूषित देश की राजधानी में दिखाई देती है।
चूंकि नदियों की साफ-सफाई पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा रहा है इसलिए उनमें से अनेक गंदे नाले में परिवर्तित होती जा रही हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि राज्य सरकारें नदियों को साफ करने को अपने एजेंडे का हिस्सा नहीं बना रही हैं। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि छोटी-बड़ी नदियों को साफ करने के साथ ही इस पर भी ध्यान दिया जाए कि जल के अन्य परंपरागत स्रोतों को प्रदूषित होने से कैसे बचाया जाए।
ध्यान रहे कि समस्या केवल यही नहीं है कि छोटी-बड़ी नदियां और नहरें प्रदूषण से ग्रस्त हैं, बल्कि यह भी है कि देश के तमाम हिस्सों में भूगर्भ जल भी प्रदूषित होता जा रहा है। निश्चित रूप से सरकारों के साथ समाज को भी इसके लिए चेतना होगा कि नदियों के साथ-साथ जल के जो भी परंपरागत स्रोत हैं, उन्हें साफ-स्वच्छ रखने की आवश्यकता कहीं अधिक बढ़ गई है।