ममता बनर्जी के अंदर प्रधानमंत्री बनने का यह सपना अभी नहीं आया है, बल्कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान ही उन्होंने घोषणा कर दिया था कि अब उनकी नजर दिल्ली की गद्दी पर है. ममता बनर्जी ने अपना सपना पूरा करने के लिए अपने सबसे खास चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लगाया हुआ है. प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) तमाम विपक्षी नेताओं से मिलकर गैर बीजेपी दलों का एक ऐसा गठबंधन तैयार कर रहे हैं जिसकी नेता ममता बनर्जी हों. हालांकि उनके सामने शरद पवार और सोनिया गांधी जैसे नेता हैं जो शायद ऐसा नहीं चाहते हैं. इस वक़्त देश की राजनीतिक स्थिति जैसी है उसे देख कर यही लग रहा है कि शायद बहुत से दल ममता बनर्जी के नाम पर तैयार हो जाएं.
शहीद दिवस के बहाने विपक्ष को एक करने की कोशिश
21 जुलाई को ममता बनर्जी ने हर साल की तरह बंगाल से शहीद दिवस का आगाज़ किया. हालांकि इस बार उनके साथ दिल्ली से कई बड़े विपक्ष के नेता जुड़े थे. कांग्रेस से पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह, डीएमके से तिरुचि शिवा, एनसीपी से शरद पवार और सुप्रिया सुले, आरजेडी से मनोज झा और तमाम विपक्ष के नेता जुड़े थे. ममता बनर्जी ने इस मौके पर कहा था, 'देश को बचाने के लिए हमें एक जुट होना होगा वर्ना इस देश के लोग हमें कभी माफ नहीं करेंगे.'
मोदी के सामने अकेली खड़ी हो रही हैं ममता
ममता बनर्जी दिल्ली की सियासत को लेकर कितनी उत्सुक हैं, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दीदी इस वक्त केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के हर फैसले का खुला विरोध करती हैं. अभी हाल ही में पेगासस वाला मुद्दा जब आया उस पर भी ममता बनर्जी ने अपने मोबाइल के कैमरे पर टेप लगाकर केंद्र सरकार पर हमला बोला. इसके बाद 22 जुलाई को दैनिक भास्कर समूह पर आयकर विभाग की छापेमारी हुई तो उस पर भी ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को घेरा और कहा कि मीडिया घरानों पर हमला करके यह लोकतंत्र को कुचलने का एक और प्रयास किया जा रहा है. ममता बनर्जी के इस तरह के कई बयान है जो वह हर मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरते हुए देती हैं. जबकि पहले ऐसा नहीं देखा जाता था. पहले ममता बनर्जी उन्हीं मुद्दों पर हमलावर होती थीं जो बंगाल से जुड़े होते थे. लेकिन अब मुद्दा कहीं का भी हो ममता बनर्जी उसे हाथों-हाथ लेती हैं और बीजेपी पर हमला बोलने का एक भी अवसर नहीं छोड़ती हैं. जैसे वह देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों को यह दिखाना चाहती हों कि वह पूरी तरीके से बीजेपी के विरोध में खड़ी हैं और देश की राजनीति करने को तैयार हैं.
ममता बनर्जी को किसका मिलेगा समर्थन और कौन नहीं देगा साथ
भारतीय राजनीति में कब कौन किसके साथ हो जाए इसका सही सही अंदाजा लगाना नामुमकिन है. क्योंकि भारतीय राजनीति का इतिहास रहा है कि कई बार दो विपरीत विचारधाराओं के दल भी सत्ता की मलाई के लिए एक साथ आए हैं. ममता बनर्जी की ओर से प्रशांत किशोर काफी दिनों से फील्डिंग कर रहे हैं, प्रशांत किशोर एक ऐसे चुनावी रणनीतिकार है जिनके कई राजनीतिक दलों के अध्यक्षों से अच्छे संबंध हैं. चाहे वह एमके स्टालिन हों, अखिलेश यादव हों, तेजस्वी यादव हों, जगनमोहन रेड्डी हों या फिर उद्धव ठाकरे. ममता बनर्जी के नाम पर हो सकता है प्रशांत किशोर इन दलों को उनके समर्थन में खड़ा कर लें, लेकिन कांग्रेस पार्टी और नेशनल कांग्रेस पार्टी यानि शरद पवार की एनसीपी ममता बनर्जी के नाम पर सहमत होगी इसमें बड़ी गफलत है. दरअसल शरद पवार उम्र के उस पड़ाव में है कि वह खुद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं और कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के अलावा किसी और व्यक्ति को विपक्ष का चेहरा नहीं बनने देना चाहती है. शायद यही वजह है कि अब प्रशांत किशोर की बजाए सोनिया गांधी और शरद पवार से मिलने खुद ममता बनर्जी दिल्ली आ रही हैं.
देश में चलेगा ममता बनर्जी का जादू
बंगाल में चुनाव जीत लेना और देशभर में चुनाव जीतना दोनों अलग-अलग बातें हैं, ममता बनर्जी बेशक पश्चिम बंगाल में एक बड़ा चेहरा है और उन्होंने वहां भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त दी है लेकिन यह सोच कर कि बंगाल में उन्होंने बीजेपी को हरा दिया है तो वह देश भर में मोदी ब्रांड के सामने टिक सकती हैं शायद ऐसा सोचना ओवरकॉन्फिडेंस हो सकता है. दिल्ली में जब अरविंद केजरीवाल ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई तो उन्हें भी लगा था कि वह देश में मोदी के चेहरे को टक्कर दे सकते हैं और इसी कॉन्फिडेंस में उन्होंने बनारस से नरेंद्र मोदी के चेहरे के सामने चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. खासतौर से हिंदी बेल्ट के राज्यों में अभी ममता बनर्जी इतना बड़ा चेहरा नहीं बनी हैं कि उन्हें यहां मोदी के मुकाबले वोट मिल सके.
पीछे के रास्ते से शायद पीएम बन जाएं
ममता बनर्जी सामने से चुनाव लड़ के अपने चेहरे पर देश की जनता को मोदी से ज्यादा भरोसा दिला दें इसका अनुमान शून्य के बराबर है. हालांकि अगर चुनाव के बाद की राजनीतिक गणित को सेट करके प्रधानमंत्री का चेहरा विपक्ष की ओर से ममता बनर्जी बन जाएं तो वह अलग बात है. दूसरा तरीका हो सकता है कि तमाम क्षेत्रीय दल अपने-अपने क्षेत्र में क्षेत्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ें और वहां बीजेपी को शिकस्त देने की कोशिश करें. राष्ट्रव्यापी रूप से अगर एक साथ मिलकर एक खास चेहरे पर मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ कर विपक्ष जीतने की कोशिश करेगा तो शायद उसे नाकामी हासिल होगी. क्योंकि जानकारों के अनुसार अभी भी देश में कोई ऐसा विपक्ष का चेहरा नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चुनावी मैदान में सरवाइव कर सके.