एलएसी पर टूटा गतिरोध
पूर्वी लद्दाख सीमा पर स्थित गोगरा हॉट स्प्रिंग्स (पेट्रोलिंग पॉइंट 15) इलाके से भारत और चीन की सेनाओं के पीछे हटना शुरू कर देने की खबर राहत देने वाली है। सैन्य वार्ताओं के 16वें दौर में सहमति बनने के बाद पिछले दो साल से जारी गतिरोध के इस आखिरी पॉइंट से सैनिकों का पीछे हटना संभव हुआ है।
नवभारत टाइम्स; पूर्वी लद्दाख सीमा पर स्थित गोगरा हॉट स्प्रिंग्स (पेट्रोलिंग पॉइंट 15) इलाके से भारत और चीन की सेनाओं के पीछे हटना शुरू कर देने की खबर राहत देने वाली है। सैन्य वार्ताओं के 16वें दौर में सहमति बनने के बाद पिछले दो साल से जारी गतिरोध के इस आखिरी पॉइंट से सैनिकों का पीछे हटना संभव हुआ है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं माना जा सकता कि एलएसी पर अब सब कुछ ठीक हो गया है। अव्वल तो इस सहमति को लेकर भी संयुक्त वक्तव्य में डीटेल्स नहीं दिए गए हैं। इसलिए यह पूरी तरह साफ नहीं हुआ है कि सैनिकों के पीछे हटने का ठीक-ठीक क्या मतलब समझा जाए। लेकिन अगस्त 2021 में पीछे हटने पर बनी सहमति को आधार मानें तो उस बार सैनिकों के पीछे हटने के साथ ही दोनों पक्षों द्वारा किए गए अस्थायी निर्माण आदि को भी हटा दिया गया था। इसलिए उम्मीद है कि इस बार की सहमति के साथ भी ये बातें जुड़ी होंगी।
दूसरी बात यह कि उसी क्षेत्र में विवाद के दो बड़े पॉइंट डेमचोक और डेपसांग बरकरार हैं। उन पर कोई सहमति तो दूर अभी बातचीत भी शुरू नहीं हुई है। हालांकि इन्हें लेकर विवाद काफी पहले से है, इसलिए उन्हें पिछले दो साल से चले आ रहे विवादों के साथ मिलाकर देखना जरूरी नहीं है। तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि दोनों सेनाओं के पीछे हटने का मतलब यह जरूर है कि अब सैनिक बिलकुल आमने-सामने तैनात नहीं होंगे, लेकिन सीमा पर दोनों तरफ से सेनाओं का जो असाधारण जुटान हो गया था, वह बना ही हुआ है।
करीब सालभर चली बातचीत के बाद, भारत और चीन कुगरांग नाला के पास PP-15 से सेना पीछे करने पर राजी हुए हैं। सेना ने गुरुवार एक बयान में कहा कि 16वें दौर की कोर कमांडर लेवल बातचीत में PP-15 से डिसइंगेजमेंट पर सहमति बनी। यह बातचीत 17 जुलाई को हुई थी। PP-15 पर दोनों तरफ से केवल 40-50 सैनिक मौजूद थे जबकि इससे सटे इलाकों में कहीं ज्यादा फोर्स है।
मई 2020 में PP-15 भारत और चीनी सैनिकों के टकराव की प्रमुख लोकेशन थी।एलएएसी पर चीन ने घातक हथियारों के साथ 1,000 से ज्यादा सैनिक तैनात कर दिए थे।जुलाई 2020 आते-आते इनमें से ज्यादातर सैनिकों को हटा लिया गया।40-50 सैनिक रह गए थे जिन्हें अब पीछे किया जा रहा है।PP-15 पर एक 'नो पैट्रोल बफर जोन' बना दिया गया है।भारतीय सैनिक PP-16 पर बनी परमानेंट पोस्ट पर लौट आए हैं।PLA के सैनिक LAC के अपनी तरफ लौटे हैं।
PP-15 पर 'बफर जोन' बनाए जाने के साथ ही LAC पर ताजा तनाव के दरम्यान बने बफर जोन्स की संख्या 4 हो गई है। इससे पहले, PP-14, PP-17A और पैंगोंग झील के दो तटों पर 3 से लेकर 10 किलोमीटर के बफर जोन बनाए गए थे। पैगोंग झील-कैलाश रेंज क्षेत्र से डिसइंगेजमेंट फरवरी 2021 में हुआ था। गोगरा पोस्ट के पास मौजूद PP-17 पर इसी साल अगस्त की शुरुआत में बफर जोन बना। चिंता की बात यह है कि ये बफर जोन्स उन इलाकों में बने हैं जिन्हें भारत अपना मानता है।
भारत के लिए एक बड़ी समस्या देपसांग में PLA का अतिक्रमण है। उत्तर में काराकोरम पास और अति-महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी (DBO) तक जाने के लिए 16,000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद यह पठारी इलाका बेहद अहम है। PLA लगातार देपसांग में भारतीय सैनिकों को ब्लॉक कर रही है। वह भी 18-18 किलोमीटर भीतर तक, जिस इलाके को भारत अपना मानता है। अप्रैल-मई 2020 के बाद भारत परंपरागत रूप से PP-10, 11, 12, 12A और 13 पर पैट्रोल भी नहीं कर पा रहा। यह माना जा रहा है कि देपसांग का मसला केवल शीर्ष स्तर पर राजनीतिक दखल से सुलझ सकता है।
डेमचोक सेक्टर की स्थिति भी देपसांग से अलग नहीं है। यहां पर चारदिंग निंगलुंग नाला (CNN) ट्रैक जंक्शन के पास, जून 2022 से भारतीय इलाके में चीन ने अतिरिक्त टेंट गाड़ रखे हैं। चीन के लड़ाकू विमान कई बार वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के बेहद करीब से उड़ान भरते हुए नजर आए हैं। अक्सर उन्होंने 10 किलोमीटर के नो-फ्लाई जोन का भी उल्लंघन किया।
PP-15 से डिसइंगेजमेंट पर सहमति बनने में सालभर से ज्यादा लग गए। देपसांग और डेमचोक में तनाव के आगे यह बेहद छोटा कदम है। हालांकि, इससे पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक का रास्ता साफ हो सकता है। यह बैठक 15-16 सितंबर के बीच उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान हो सकती है। दोनों देशों ने अभी तक न तो द्विपक्षीय मुलाकात की पुष्टि की है, न ही इससे इनकार किया है। पीएम मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच अप्रैल-मई 2020 के बाद से कोई बात/मुलाकात नहीं हुई है।
दोनों सेनाओं के पास अचानक उपजी किसी अप्रिय स्थिति का सामना करने के लिए बड़े पैमाने पर हथियार भी हैं। ऐसे में सीमा पर तात्कालिक शांति भले हो, तनाव में भी कुछ कमी आ जाए, लेकिन इसे खत्म नहीं माना जा सकता। यह तभी हो सकता है जब दोनों पक्ष सीमा पर इकट्ठा हुए अतिरिक्त बलों को वापस लाने पर सहमत हो जाएं। लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों में फिर से विश्वास बहाल करना होगा। एक बार विश्वास टूट जाने के बाद फिर से बनना आसान नहीं होता।
जाहिर है, इसमें वक्त लगेगा। लेकिन इसी बिंदु पर यह ध्यान देने वाली बात है कि सैन्य बातचीत के 16वें दौर में सहमति की यह खबर ऐसे समय आई है, जब अगले सप्ताह ही शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आमने सामने मुलाकात होनी है। हालांकि मौजूदा हालात में तत्काल किसी चौंकाने वाले घटनाक्रम की उम्मीद नहीं की जा सकती, अभी यह भी तय नहीं है कि दोनों नेताओं के बीच अलग से कोई मुलाकात या बातचीत होगी या नहीं, फिर भी सीमा से आई खबर ने ऐसी किसी सकारात्मक पहल की संभावना तो बना ही दी है।