खतरनाक कौशल : एनडीए सरकार ने अपने कल्याण के लिए ढूंढ निकाला कर-कल्याण और वोट को आपस में जोड़ने का तरीका

अरबपतियों की संख्या और उनकी कर रहित संपत्ति कई गुना बढ़ जाती है।

Update: 2022-04-03 01:49 GMT

हमें एनडीए सरकार के कौशल का कायल होना चाहिए, जिसने कर, कल्याण और वोट को आपस में जोड़ने का तरीका ढूंढ लिया है। यह चुनावी बांड योजना जैसा ही है, जिसमें याराना पूंजीवाद, भ्रष्टाचार और चुनावी फंडिंग को आपस में इस तरह से जोड़ दिया गया, जिससे ऐसा लगे कि किसी कानून का उल्लंघन नहीं हो रहा है।

पहली तिकड़ी पर बात विचार करते हैं : कर, कल्याण और वोट। 2019 में फिर से चुने जाने के तुरंत बाद, मोदी सरकार ने व्यावहारिक रूप में सुधारों, अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन और निजी निवेश को जीडीपी में वृद्धि, नौकरियों के सृजन और गरीबी में कमी का मुख्य चालक न मानते हुए त्याग दिया। यह बहुत परिश्रम का काम था, जिसके लिए अच्छे आर्थिक प्रबंधन की जरूरत थी।
सरकार ने इसके बजाय लोकप्रिय समर्थन हासिल करने का आसान विकल्प चुना : कल्याणवाद। कोविड-19 के आगमन ने नई नीति के लिए आर्थिक औचित्य प्रदान किया (यह अलग बात है कि कल्याणकारी उपाय अत्यंत गरीब लोगों, प्रवासी मजदूरों जिन्होंने अपनी नौकरियां खो दीं, एमएसएमई जिन्हें बंद होने के लिए मजबूर होना पड़ा और बीमार तथा बूढ़े लोगों की न्यूनतम जरूरत के लिए पर्याप्त नहीं थे और इसे सरकार की नाकामी के रूप में दर्ज किया गया)।
अन्यायपूर्ण कर नीति
मोदी सरकार ने तेजी से विस्तारित कल्याणवाद का राजनीतिक और चुनावी लाभ उठाया। महत्वपूर्ण सवाल है, 'उनके लिए किसे भुगतान करना चाहिए'? यह गजब का विचार है कि खुद गरीब उन कल्याणकारी उपायों के लिए धन दें, जिनसे खुद उन्हें लाभान्वित होना था! समता और न्याय पर आधारित समाज में सरकार अमीरों और कॉरपोरेट से कहेगी कि वे अधिक भुगतान करें, ताकि सरकार नए कल्याणकारी उपायों को धन दे सके।
मोदी सरकार ने इसका उलटा किया : उसने कॉरपोरेट कर की दर में 22 से 25 फीसदी की कटौती कर दी और नए निवेश के लिए एक अत्यंत उदार 15 फीसदी की दर की शुरुआत की। उसने सर्वोच्च व्यक्तिगत आयकर की दर को 30 फीसदी और उस पर शिक्षा तथा स्वास्थ्य के चार फीसदी के अधिभार को भी बनाए रखा। संपत्ति कर समाप्त कर दिया गया था और विरासत कर पर विचार भी नहीं किया गया।
सरकार के राजस्व के मुख्य स्रोत हैं, जीएसटी और ईंधन पर लगने वाला कर। बाद वाला सरकार के लिए सोने की खान जैसा है। सरकार को भी महसूस हुआ कि उसे खदान से सोना निकालने के लिए प्रयास ही नहीं करना पड़ा : खुद करदाता हर रोज और हर मिनट खदान से सोना निकालकर सरकार को सौंप रहे हैं!
जबरन वसूली दरें
मोदी सरकार के सत्ता संभालने के समय पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क की दरों और आज की दरों और आवश्यक ईंधन की कीमतों की तुलना करें :
मई, 2014 अभी (रुपये में)
उत्पाद शुल्क
पेट्रोल प्रति लीटर 9.20 26.90
डीजल प्रति लीटर 3.46 21.80
मूल्य
पेट्रोल प्रति लीटर 71.41 101.81-116.72
डीजल प्रति लीटर 55.49 96.07-100.10
एलपीजी सिलेंडर 410 949.50-1,000
पीएनजी प्रति एससीएम 25.50 36.61
सीएनजी प्रति किलोग्राम 35.20 67.37-79.49
और ये जबरिया दरें उपभोक्ताओं पर तब लाद दी गई थीं, जब कच्चे तेल की कीमत 108 डॉलर प्रति बैरल के आसपास भी नहीं थी, जैसी कि मई, 2014 में स्थिति थी। पिछले तीन वर्षों (2019-2021) के दौरान औसत दर 60 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रही।
केंद्रीय राजस्व में पेट्रोलियम क्षेत्र का कर योगदान हैरतअंगेज रहा :
वर्ष करोड़ रुपये
2014-15 1,72,065
2015-16 2,54,297
2016-17 3,35,175
2017-18 3,36,163
2018-19 3,48,041
2019-20 3,34,315
2020-21 4,55,069
2021-22 (अनु) 4,16,794
कुल 26,51,919
गरीब रोज कर रहे हैं भुगतान
इस राशि का बड़ा हिस्सा डीजल पंप व ट्रैक्टर मालिक किसानों, दोपहिया और कार मालिकों, ऑटो-टैक्सी ड्राइवरों, दैनिक सफर करने वालों और गृहिणियों ने चुकाया। 2020-21 के दौरान जब करोड़ों उपभोक्ताओं ने केंद्र को 4,55,069 करोड़ रुपये ईंधन करों (और राज्य सरकारों को अलग से 2,17,650 करोड़ रुपये) के रूप में दिए, तभी 142 अरबपतियों की संपत्ति 23,14,000 करोड़ से बढ़कर 53,16,000 करोड़ हो गई- 30,00,000 करोड़ रुपये का इजाफा! गरीबों और मध्य वर्ग से कर वसूली कर भारी-भरकम धन जमा करने के बाद केंद्र ने इसका इस्तेमाल उन्हें 'अतिरिक्त खुशहाली' उपलब्ध कराने के लिए किया!
और 2020 के बाद से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में कितना धन दिया गया? हम गणना कर सकते हैं, मुफ्त अनाज ( दो वर्षों में 2,68,349 करोड़ रुपये), महिलाओं को एक बार प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण ( 30,000 करोड़ रुपये), किसानों को सालाना छह हजार रुपये (सालाना व्यय 50,000 करोड़ रुपये) और विशुद्ध नकद हस्तांतरण जैसे कुछ अन्य खर्च। इन सारे हस्तांतरण का सालाना व्यय 2,25,000 करोड़ रुपये से अधिक नहीं था, जो कि अकेले केंद्र द्वारा एक साल में ईंधन कर के रूप में वसूली गई रकम से कम है। इसलिए मैं कहता हूं, गरीबों के कल्याण का अर्थ है कि गरीब अपने कल्याण के लिए भुगतान करें! इस बीच, अरबपतियों की संख्या और उनकी कर रहित संपत्ति कई गुना बढ़ जाती है।


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