हरियाणा का संकट

हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार के खिलाफ कांग्रेस द्वारा पेश अविश्वास प्रस्ताव का गिर जाना जितना स्वाभाविक है

Update: 2021-03-11 00:41 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार के खिलाफ कांग्रेस द्वारा पेश अविश्वास प्रस्ताव का गिर जाना जितना स्वाभाविक है, उतना ही सीखने योग्य भी। बुधवार को पेश अविश्वास प्रस्ताव पर बाकायदे बहस हुई, पर हरेक पार्टी ने अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी कर दिया था। ऐसे में, कांग्रेस को सरकार में शामिल जिस जननायक जनता पार्टी (जजपा) से उम्मीद थी, उसके विधायकों के हाथ बंध गए। बाहर नाराजगी का इजहार करने वाले जजपा विधायक भी पार्टी व्हिप के खिलाफ जाने की नहीं सोच सकते थे। वैसे तो कांग्रेस को भी अंदाजा था कि क्या होने वाला है। कांग्रेस ने पहले की कह दिया था कि उसका मकसद भाजपा और जजपा को बेनकाब करना है। चूंकि अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के बाद सरकार के खिलाफ भाषण का मौका मिलता है, तो कांग्रेस ने लाभ उठाया। विधानसभा में मुख्यमंत्री खट्टर के भाषण से यह साफ हो गया कि कांग्रेस ने सत्ता पक्ष की नींद उड़ा रखी है। नैतिकता के पैमाने पर देखें, तो कांग्रेस ने जो किया, वह सदन के समय की बर्बादी थी, लेकिन अगर राजनीतिक नजरिए से देखें, तो इसमें कोई नई बात नहीं। किसी भी विपक्षी पार्टी को सुविधा हासिल है कि वह सरकार की कमजोरी या ताकत को समय-समय पर परखे। पंजाब की राजनीति में जहां अभी सुकून का आलम है, वहीं हरियाणा में खासतौर पर जमीनी स्तर से लेकर विधानसभा तक तनाव व्याप्त है। खट्टर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के आधार पर ही लाया गया था। दरअसल, आंदोलनरत किसान जगह-जगह सत्ताधारी नेताओं को घेरने लगे हैं, जिससे कुछ इलाकों में नेताओं को जाने में परेशानी होने लगी है। वैसे तो किसान आंदोलन को देशव्यापी बताया जा रहा है, पर इसमें कोई शक नहीं कि हरियाणा के सत्ताधारी नेताओं पर इसका सर्वाधिक दबाव है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति और जन-प्रतिनिधि भी तनावग्रस्त हैं, पर अगर कोई पूरा राज्य आंदोलन की आंच झेल रहा है, तो वह हरियाणा है। यहां सत्ता में रहते कांग्रेस ने अनुबंध खेती का प्रावधान किया था, पर अब वह कृषि कानूनों के खिलाफ है। भाजपा जहां कृषि कानूनों के पक्ष में है, वहीं सत्ता में शामिल जजपा विधायक रह-रहकर असंतोष जताते आए हैं और विपक्ष को सरकार की ताकत पर संदेह के मौके मिलते रहे हैं। हालांकि, अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस पर कांग्रेस के 30 में से 25 विधायकों के ही हस्ताक्षर थे। वह खुद एकमत नहीं है।

अविश्वास प्रस्ताव भले गिर गया, मगर हरियाणा में सत्ताधारी नेताओं पर तब तक संकट मंडराएगा, जब तक आंदोलन जारी है। इसकी आंच पर राजनीतिक रोटियां सेंकने की प्रशंसा भला कौन करेगा? आंदोलन का लाभ आज भले कोई पार्टी तात्कालिक रूप से ले ले, पर दूरगामी रूप से किसानों के सवाल सभी को परेशान करेंगे। किसानों के सवालों के जवाब उतने आसान होते, तो आंदोलन इतना लंबा न खिंचता। जहां तक राज्यों की राजनीति का प्रश्न है, तो वह भी जटिल ही है। किसान आंदोलन के समय ही पंजाब में जहां भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है, वहीं गुजरात में वह बड़ी विजेता बनकर सामने आई है। मतलब, किसी भी एक पार्टी को पूरा फायदा या नुकसान नहीं हो रहा है। यह संकेत है कि देर-सबेर शायद सभी को मिलकर समाधान के प्रयास करने पड़ेंगे।


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