मेडिकल जर्नल 'लांसेट' में प्रकाशित शोध रिपोर्ट से वे आशंकाएं गलत साबित हुई हैं, जिनमें संक्रमण बढ़ने पर आत्महत्या की घटनाएं बढ़ने की बात कही गई थी। सौभाग्य से यह आशंका सही नहीं निकले हैं। 21 देशों के संबंधित अध्ययन में पाया गया कि 2019 के मुकाबले 2020 में आत्महत्याओं में 11 फीसदी तक गिरावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार 2020 के अप्रैल-जून के दौरान जितनी खुदकुशी की आशंकाएं जताई गई थीं, उससे 10 फीसद कम लोगों ने जान दी। इस तीन महीने की अवधि में वर्ष 2019 की तुलना में सात फीसदी कम लोगों ने आत्महत्या का रास्ता चुना। जापान में 2009 के बाद आत्महत्याओं में पिछले साल आए उफान को देखते हुए सरकार ने -मिनिस्टर ऑफ लोनलीनैस की नियुक्ति की थी। हालांकि 2021 की पहली तिमाही में जापान में आत्महत्याओं की दर महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच गई। ब्रिटेन में आत्महत्याओं में 12 फीसद गिरावट दर्ज की गई है, जबकि अमेरिका में वर्ष 2020 के मुकाबले अब तक छह फीसद की कमी दर्ज की गई है। कुछ अन्य देशों के ताजा आंकड़े भी आत्महत्याओं में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं दर्शाते हैं। इंग्लैंड में तो आत्महत्याओं की दर में 12 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है।
अमेरिका के बीमारी नियंत्रण और रोकथाम सेंटर ने वर्ष 2020 में देश में इस मामले में छह फीसद की कमी होने की बात कही है। केवल कुछ विकासशील देशों जिनमें र्आिथक आघात सहने की क्षमता अपेक्षाकृत कम है, उन्होंने ही वर्ष 2020 के संबंधित आंकड़े जारी किए हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर के दौर में संक्रमण के बढ़ते मामलों के देखते हुए लोगों से घरों में ही रहने के लिए कहा जा रहा है। वहीं कई इलाकों में आंशिक तो कहीं संपूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया है। लोगों को साबुन और हैंडवॉश से बार-बार हाथ धोने, अनिवार्य रूप से मास्क पहनने और शारीरिक दूरी समेत कोरोना प्रोटोकॉल को अपनाने के लिए कहा जा रहा है। ऐसे में लंबे समय से घर में रहने की वजह से बड़ी संख्या में लोग अवसाद का शिकार भी होने लगे हैं।
कई लोगों की तो सहनशीलता कम होने लगी तो वहीं कई सब्र खोने लगे। बच्चों के साथ निरंतर समय व्यतीत करने के बीच उनकी पढ़ाई-लिखाई में भी सहयोगी के तौर अभिभावकों को पूरा समय देना पड़ रहा है। ऐसे में मानसिक स्थिति को ठीक रखने के लिए और घर में शांति बनाए रखना के लिए खुद को किसी न किसी काम में व्यस्त रखना बहुत जरूरी होता है, ताकि ध्यान बटा रहे और सोच भी पॉजिटिव बनी रहे। इसके लिए सबसे पहले यह कोशिश करनी चाहिए कि किसी भी तरह की नकारात्मक सोच से खुद को दूर रखा जा सके। घर का परिवेश भी ऐसा बनाना चाहिए, जिससे सोच सकारात्मक रहे और उसे सकारात्मक ऊर्जा मिले। कोरोना वायरस से हर कोई खौफ में है, लेकिन इसका सकारात्मक असर भी हुआ है। लोगों ने अपने परिवार के साथ ज्यादा समय व्यतीत किया है। इससे परिवार में सहयोग व एक दूसरे के प्रति प्रेम का भाव बढ़ा है। परिवार की अहमियत समझ में आई है।
व्यस्तता के कारण जिंदगी में अक्सर तनाव में रहने वाले लोग परिवार के साथ रहकर सुखद अनुभव महसूस कर रहे हैं। आत्महत्या की दर में कमी का कोई एक कारण नहीं है। इस दर में गिरावट से यह साफ हो जाता है कि बड़े पैमाने पर फैले सामाजिक शोक से लोग व्यक्तिगत स्तर पर दुखी नहीं होते हैं। एक अन्य कारण यह हो सकता है कि महामारी के दौरान कुछ देशों ने अपने लोगों की बड़ी मदद की जिससे खुदकुशी की नौबत आई ही नहीं। एक बड़ा सत्य यह भी है कि जीवन कहीं ठहरता नहीं है और सबकुछ कभी खत्म नहीं होता। इस समय लोग अपने पड़ोसी से भी बात करते हुए बच रहे हैं। सभी को छोटे-छोटे काम करने वाले लोगों की अहमियत समझ में आ गई है, जिनके अभाव में उनके काम अटके पड़े हैं। यद्यपि कोरोना की वजह से लोगों के रोजगार-धंधे छिन गए, अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा है, पर पर्यावरण सुधरा है। लोग पुराने दोस्तों, रिश्तेदारों से फोन पर बात कर रहे हैं। कोरोना काल में पारिवारिक रिश्तों को व्यापक मजबूती मिल रही है।
[सामाजिक मामलों के जानकार]