कोवैक्सीन का बाल-टीका

कोवैक्सीन

Update: 2021-10-15 05:08 GMT

दिव्याहिमाचल.

कोरोना वायरस के संदर्भ में वाकई खुशख़बरी है। टीकाकरण में भारत 100 करोड़ खुराक का आंकड़ा छूने के करीब है। यकीनन यह अभूतपूर्व सफलता है, क्योंकि टीकाकरण अभियान अब भी जारी है। इसी बीच बच्चों और किशोरों के लिए 'कोवैक्सीन जूनियर' को विशेषज्ञ समूह ने स्वीकृति दे दी है और आपात इस्तेमाल की अधिकृत मंजूरी के लिए उसे भारतीय औषधि महानियंत्रक को भेज दिया है। यदि अंतिम मुहर लग जाती है, तो भारत बायोटेक दूसरी स्वदेशी टीका निर्माता कंपनी होगी, जो बच्चों और किशोरों के लिए कोरोना रोधी टीके का उत्पादन करेगी। 'कोवैक्सीन जूनियर' टीका 2 साल के बच्चे से लेकर 18 साल की उम्र के किशोर को दिया जा सकेगा। भारत की ही जाइड्स कैडिला कंपनी के टीके को सबसे पहले आपात मंजूरी दी गई थी, लेकिन वह टीका 12-15 आयु-वर्ग के किशोरों के लिए है। कोवैक्सीन पहला स्वदेशी टीका होगा, जो शिशुओं को भी सुरक्षा-कवच देगा। फिलहाल दोनों ही टीकों को घरेलू बाज़ार में अभी आना है। उत्पादन संबंधी कुछ औपचारिकताएं शेष होंगी। अलबत्ता ये भारत के हिस्से की महान वैज्ञानिक और चिकित्सीय शोध उपलब्धियां हैं, लेकिन कोवैक्सीन के साथ एक गंभीर विरोधाभास भी चिपका है कि उसे अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता क्यों नहीं दी? कोवैक्सीन विभिन्न चरणों के परीक्षणों और अनुसंधान संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत कर चुका है। कोवैक्सीन भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान का एक प्रमुख हिस्सा है। टीके की करीब 11.10 करोड़ खुराक लोगों को दी जा चुकी हैं। कुल कोरोना टीकाकरण कवरेज में कोवैक्सीन की भागीदारी करीब 12 फीसदी है। कोविशील्ड टीका सबसे ज्यादा लगाया जा रहा है और उसकी आपूर्ति भी कई गुना है। भारत में कोवैक्सीन टीका लगातार दिया जा रहा है और उसके परिणाम भी बेहद सकारात्मक रहे हैं। कोरोना संक्रमण पर लगाम लगी है।

वैसे संक्रमण धीरे-धीरे 'नगण्य' की श्रेणी में आ रहा है। स्वस्थ होने वाले लोगों का औसत करीब 99 फीसदी हो गया है। शेष एक फीसदी आबादी में संक्रमण के अन्य कारण भी होते हैं। करीब 139 करोड़ की आबादी वाले देश में हररोज़ 14-15 हजार संक्रमित मामले कोई खास मायने नहीं रखते। यानी संक्रमण चिंता और भयावहता की परिधि में नहीं है। वैश्विक अनुसंधान में 30 दिसंबर, 2019 से 6 सितंबर, 2021 तक, 15 साल की उम्र तक के बच्चों में, कोरोना संक्रमण के मामले करीब 8 फीसदी पाए गए हैं। यह भी नगण्य स्थिति है। हालांकि बच्चों में कोरोना संक्रमण को लेकर चिकित्सकों की राय विभाजित है। ज्यादातर शिशु रोग विशेषज्ञ मानते हैं कि कोरोना की दोनों लहरों के दौरान बच्चों में संक्रमण बेहद कम देखा गया है। बच्चों मंे इम्युनिटी ज्यादा होती है या कोई और शारीरिक विशेषता है, लेकिन संक्रमण बहुत कम हुआ है और बच्चों की मौतें भी किसी और कारण से हुई हैं। फिर भी उन्हें टीका तो देना चाहिए, ताकि उन्हें सुरक्षा-कवच मिला रहे और वे परिवार में किसी बुजुर्ग या माता-पिता और भाई-बहिन को संक्रमित न कर सकें।

कई राज्यों में बच्चों के स्कूल खुल चुके हैं। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में भी प्रवेश की प्रक्रिया जारी है। प्रतियोगी परीक्षाएं भी आयोजित की गई हैं, लिहाजा बच्चे घर से बाहर जाने लगे हैं। नतीजतन संक्रमण की आशंकाएं बनी रहेंगी, लिहाजा यह बाल-टीका भी 'संजीवनी' साबित हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मान्यता का लाभ यह होगा कि भारत भी दुनिया में कोरोना पासपोर्ट की श्रेणी में आ जाएगा और भारत किसी भी देश को टीका निर्यात कर सकेगा। भारत बायोटेक कंपनी को यथाशीघ्र इस बाधा को पार करना चाहिए और विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपने डाटा के जरिए संतुष्ट करना चाहिए। भारत सरकार को भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जरिए कोवैक्सीन की पैरोकारी करनी चाहिए। जब तक यह नहीं होता और मान्यता नहीं मिलती, तब तक उन लाखों भारतीयों को विदेश यात्रा में असुविधा होगी, जिन्होंने कोवैक्सीन टीके की दोनों खुराक ले ली हैं। उन्हें पढ़ाई, नौकरी या कारोबार के लिए विदेश जाने में रोड़े अटकाए जाएंगे और कुछ देश क्वारंटीन को बाध्य करते रहेंगे। अब कोवैक्सीन को भी कोवीशील्ड की तरह अपना उत्पादन बढ़ाना चाहिए, ताकि भारत की कमोबेश 100 करोड़ आबादी को दोनों खुराकें दी जा सकें।
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