साहित्य और सिनेमा के क्षेत्र में अश्लीलता प्रदर्शित करने के सारे आरोप अदालतों ने खारिज कर फैसला लेखक तथा फिल्मकार के पक्ष में किया है

महामारी के समय इंटरनेट पर अश्लीलता उपलब्ध कराने वाले मंचों की संख्या बहुत अधिक हो गई है।

Update: 2021-09-03 10:03 GMT

जयप्रकाश चौकसे। महामारी के समय इंटरनेट पर अश्लीलता उपलब्ध कराने वाले मंचों की संख्या बहुत अधिक हो गई है। कमसिन उम्र वालों को इससे बचाना अब उनके परिवार वालों के लिए एक नई चुनौती है। गौरतलब है कि अधिकांश देशों में अश्लील फिल्में बनाना और देखना प्रतिबंधित रहा है। स्वीडन की व्यवस्था ने इस पर कभी पाबंदी नहीं लगाई। वहां के नागरिक इतने जागरूक हैं कि वे इससे दूरी बनाए रखते हैं।

दूसरी ओर यह उद्योग पर्यटकों को आकर्षित करता है और इससे उन्हें खूब आय होती है। गौरतलब है कि अश्लीलता बाजार की एक झलक, कंगना रनौत की फिल्म 'क्वीन' में प्रस्तुत की गई है। अश्लीलता उद्योग को नीले फीते का जहर माना गया है। ज्ञातव्य है कि साहित्य और सिनेमा के क्षेत्र में अश्लीलता प्रदर्शित करने के सारे आरोप अदालतों ने खारिज किए हैं और फैसला लेखक तथा फिल्मकार के पक्ष में गया है।
इंडियन पीनल कोर्ट में इस विषय की धाराएं 292-293 और 294 हैं। कानून संबंधी विषय की पुस्तकों के प्रकाशक रतनलाल द्वारा 'कानून और उसकी व्याख्या' के 29 वें संस्करण में इनका खुलासा उपलब्ध है। अश्लीलता पाठक में घृणा जगाती है और समाज में मान्यता प्राप्त नैतिकता के मानदंड को भंग करती है। बहरहाल, इस विषय में बहुत धुंध छाई हुई है।
अमेरिका की एक अदालत में एक विज्ञापन फिल्म पर आरोप लगा था कि इसमें एक निर्वस्त्र महिला पर फिल्माए गए दृश्य की झलक दर्शक के अवचेतन में दर्ज होती है परंतु सिनेमा घर में दिखाई नहीं देती। यह जादुई करिश्मा इस तरह रचा गया था कि फिल्मकार ने हर पांचवी फ्रेम में महिला का शॉट रखा था। ज्ञातव्य है कि 1 सेकंड में 24 फ्रेम होती हैं। अत: पांचवीं फ्रेम दिखाई नहीं देती। सिने कैमरे के आविष्कार के समय ही फ्रेंच दार्शनिक ने कहा था कि मनुष्य का दिमाग और कैमरे की कार्यप्रणाली में समानता है।
मनुष्य की आंख, कैमरे के लेंस की तरह है। आंख रूपी कैमरा, लेंस से लिए गए चित्र मनुष्य के अवचेतन की रसायनशाला में डेवलप किए जाते हैं। इसी प्रक्रिया में स्थिर चित्र चलाएमान हो जाते हैं। अतः उस विज्ञापन फिल्म की पांचवीं फ्रेम अवचेतन में दर्ज होती है परंतु सिनेमाघर में दिखाई नहीं पड़ती।
1971 में फिल्मकार स्टेनले क्यूब्रिक की फिल्म 'अ क्लॉकवर्क ऑरेंज' के विषय में हिंसा और अश्लीलता का समावेश है। फिल्म में एलेक्स नामक 16 वर्ष का युवा आदतन एक महिला पर हिंसा का प्रयोग करके उसके बेहोश होने पर दुष्कर्म भी करता है। एक बार पुलिस उसे रंगे हाथों पकड़ लेती है। एक वकील जज से आज्ञा प्राप्त करता है कि 3 माह में वह नाबालिग लड़के एलेक्स की विचार प्रक्रिया में हिंसा और दुष्कर्म के विचार हटा देगा।
सुधार की आज्ञा दी जाती है। वह वकील एलेक्स को कुर्सी पर बैठा कर रस्सियों से बांध देता है। उसके सामने हिंसा, दुष्कर्म के प्रतिबंधित सीन बार-बार दिखाए जाते हैं। उसे सोने भी नहीं दिया जाता। मनोचिकित्सक इसे लुडोविको उपचार विधि कहता है। कुछ समय पश्चात एलेक्स को अदालत में प्रस्तुत किया जाता है। एक सामान्य महिला के उसकी ओर आने पर वह कांपने लगता है। यह सिद्ध कर दिया जाता है कि एलेक्स की विचार प्रक्रिया अब शुद्ध हो गई है। अदालत उसे दोषमुक्त घोषित कर देती है।
इस फिल्म के एक संस्करण में एलेक्स अपने पुराने साथियों द्वारा मखौल उड़ाए जाने के कारण आत्महत्या कर लेता है। गौरतलब है कि मखौल उड़ाने वाले हुड़दंगियों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती। इस तरह देखें तो पसंद या नापसंद एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हुड़दंगियों को प्राप्त है। इस विचार में भी एक पेंच यह है कि हुड़दंगी वेतन प्राप्त कर्मचारी हैं। उन्हें कहां से कौन वेतन देता है यह ज्ञात नहीं है। क्या व्यवस्था में इसे लुडोविको उपचार माना जा सकता है? हर चीज या विचार का स्पष्टीकरण आवश्यक है।


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