प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कश्मीर दौरा ऐतिहासिक भी है और प्रेरक भी। ऐतिहासिक इसलिए कि अनुच्छेद 370 के हटने और जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छिनने के बाद प्रधानमंत्री की यह पहली कश्मीर यात्रा है। सांबा जिले के पल्ली में प्रधानमंत्री ने यह उचित ही कहा है कि जम्मू-कश्मीर की जड़ों तक लोकतंत्र पहुंच गया है, यही वजह है कि मैं यहां से पूरे देश को संबोधित कर रहा हूं। वाकई, कश्मीर में पहले जैसा माहौल नहीं है। सुरक्षा जब कड़ी हो गई है, निचले स्तर पर सरकार काम कर रही है, तब लोगों को भी राहत का एहसास होने लगा है। हालांकि, कुछ हिंसा अभी भी जारी है, लेकिन उसका आतंक पहले जैसा नहीं है। सबसे खास बात यह है कि प्रधानमंत्री ने कश्मीर घाटी के युवाओं से संवाद सशक्त करने की कोशिश की है। इसमें कोई दोराय नहीं कि कश्मीर में शांति और विकास की पहल के लिए युवाओं की भागीदारी सबसे जरूरी है। युवाओं को यह एहसास दिलाना जरूरी है कि वह एक सुरक्षित और विकसित भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। कश्मीर घाटी की कम से कम पिछली दो पीढ़ियों के हिस्से समस्याओं की जो विरासत आई है, उससे पीछा छुड़ाना जरूरी है।
प्रधानमंत्री ने इस केंद्र शासित प्रदेश के लिए लगभग 20,000 करोड़ रुपये की कई परियोजनाओं का उद्घाटन या शिलान्यास किया है। अगर इनमें से आधी परियोजनाएं भी पूरी हुईं, तो कश्मीरी युवाओं को रोजगार मिलेगा और उनकी दशा-दिशा बदलेगी। बनिहाल-काजीगुंड सड़क सुरंग का उद्घाटन भी बहुत महत्वपूर्ण है। उपयोगी और बड़ी परियोजनाओं का उद्घाटन जब कोई बड़ा भारतीय नेता करता है, तब इससे पूरे देश को मजबूती मिलती है और भटके हुए युवाओं को प्रेरणा। सरकार को अपने स्तर पर रोजगार बढ़ाने के अलावा निजी क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर रोजगार की जरूरत है, इस बात को यदि हमारी सरकारों ने समझ लिया है, तो फिर कश्मीर में स्थिति पूरी तरह सामान्य होने की दिशा में बढ़ चलेगी। जिस गति से वहां बुनियादी सेवाओं को सुधारने की दिशा में काम हो रहा है, उस पर सभी को गौर करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने पल्ली में 500 किलोवाट के सौर ऊर्जा संयंत्र का उद्घाटन किया है, मतलब यहां देश की पहली कार्बन न्यूट्रल पंचायत का सपना साकार होने वाला है। विकास के ऐसे द्वीप ही घाटी को राहत का एहसास कराते हुए रास्ते पर लाएंगे।
प्रधानमंत्री ने बिल्कुल सही कहा है कि जम्मू-कश्मीर के लोग दशकों बाद ऐसी बात देख रहे हैं। विकास का ढांचा जैसे-जैसे मजबूत होगा, स्थानीय लोगों का सरकार पर भरोसा बढ़ेगा। यह सच है, लगभग 175 कानूनों को जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया गया था, पर अब देश में लागू तमाम लोक-कल्याणकारी कानून वहां भी लागू हैं। लोगों के लिए अवसर बढ़े हैं, न्याय की उम्मीदें बढ़ी हैं। पर सरकारी निवेश की अपनी सीमा है, अत: वहां निजी निवेश बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। अति-आतंक प्रभावित क्षेत्रों को विशेष रूप से निशाना बनाना चाहिए। विकास का कवच बनाते हुए ऐसे इलाकों को घेरना चाहिए। अति-आतंकग्रस्त इलाकों में जब बेहतर रोजगार की स्थिति बनेगी, तो युवा भी ज्यादा आकर्षित होंगे। युवा शक्ति को सकारात्मक दिशा में व्यस्त रखना जरूरी है। प्रधानमंत्री का यह कश्मीर दौरा एक नई शुरुआत होनी चाहिए। नियमित अंतराल पर या बार-बार देश के बड़े नेताओं को घाटी के गांवों-कस्बों में जाना होगा, ताकि वंचितों व भटके हुए लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सके।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान