गृहयुद्ध का काउंटडाउन शुरू, सीरिया की राह पर अफगानिस्तान?

अमेरिका के जाने के बाद अफगानिस्तान गृहयुद्ध के करीब पहुंच गया है

Update: 2021-08-31 16:11 GMT

धर्मेंद्र द्विवेदी।

अमेरिका के जाने के बाद अफगानिस्तान गृहयुद्ध के करीब पहुंच गया है. तालिबान, ISIS खुरासान और नॉर्दर्न अलायंस के बीच खूनी अखाड़ा बनने की आशंका बढ़ गई है. 30 अगस्त रात 11 बजकर 59 मिनट. अफगानिस्तान के लोगों की घड़ी जब ये वक्त दिखा रही थी. ठीक उसी वक्त अमेरिका का C-17 ग्लोबमास्टर प्लेन अपने फौजियों के साथ पठानलैंड की राजधानी काबुल से टेकऑफ कर चुका था. अमेरिकी फौज के रूखसत होने के बाद तालिबान ने आधी रात को जश्न मनाया. अफगानिस्तान का आजाद होने की मुनादी करवा दी गई. तालिबान के लिए अमेरिका का जाना भले ही जंग में फतेह जैसा है, लेकिन अमेरिका के बाद उसके दो बड़े दुश्मन तलवार खींच चुके हैं.

नॉर्दर्न अलाएंस और ISIS खुरासान, दो ऐसे संगठन है जो तालिबान की सत्ता को हर रोज़ चुनौती देंगे और वही चुनौती गृहयुद्ध की शक्ल अख्तियार कर लेगी. इसमें कोई शक नहीं है. यानी तालिबान को अमेरिका से मुक्ति के बाद भी दो मोर्चे पर लड़ना है और यही सिविल वॉर की बुनियाद है. पंजशीर में लड़ाई शुरु हो चुकी है जबकि ISIS-K के खिलाफ तालिबान सर्च ऑपरेशन स्टार्ट कर चुका है.
खुरासान की चुनौती से बढ़ेगा खून खराबा
अफगानिस्तान की सत्ता हासिल करने के बाद तालिबान की ये कोशिश होगी कि उसके मुजाहिदीन अवाम पर उस तरह का जुल्म न करें. जैसा दो दशक पहले होता था क्योंकि तालिबान को विश्व बिरादरी से मान्यता की दरकार है, लेकिन खुरासान तालिबानी सत्ता को कबूल नहीं करेगा. वो हर हाल में तालिबान की छवि को खराब करने की फिराक में है. काबुल एयरपोर्ट पर ब्लास्ट करके खुरासान ये साबित भी कर चुका है कि वो तालिबान को चैन से सत्ता नहीं चलाने देगा. दरअसल ISIS-K पूरे मध्य और दक्षिण एशिया में इस्लामिक शासन चाहता है. सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि ISIS खुरासान का नेटवर्क पूरे अफगानिस्तान में है और वो हर जगह तालिबान को चुनौती देगा, जिससे गृहयुद्ध होना तय है.
फिदायीन जिहादियों से ज्यादा खतरा
ISIS ऐसा आतंकी संगठन है जिसके पास सबसे ज्यादा सुसाइड बॉम्बर्स है. काबुल एयरपोर्ट पर जो धमाके हुए वो भी आत्मघाती थे. 29 अगस्त को अमेरिका ने जिन 2 कारों पर स्ट्राइक की थी, उनमें भी सुसाइड बॉम्बर्स थे, जो विस्फोटकों से भरी कार एयरपोर्ट की तरफ ले जा रहे थे. खुरासान के आत्मघाती तालिबान को सबसे ज्यादा डिस्टर्ब करेंगे. हर हमले के बाद तालिबान में अस्थिरता और खून खराबा बढ़ेगा. सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि 20 साल अमेरिका के साथ जंग झेलने वाली अफगान जनता का खून बहना बंद नहीं होगा. तालिबान लाख कोशिश कर ले, लेकिन सुसाइड अटैक रोक पाना उसके लिए बेहद मुश्किल होगा, यानी अफगानिस्तान में खून-खराबा बढ़ने की आशंका बहुत बढ़ गई है. कई बड़े धमाके हो सकते हैं, कई आत्मघाती हमले हो सकते हैं.
नॉर्दर्न अलायंस भी तालिबान के लिए चुनौती
अमेरिका की वापसी के बाद गृहयुद्ध का एक मोर्चा ISIS खुरासान की तरफ से खुलेगा, तो दूसरा मोर्चा पंजशीर वैली में मौजूद नॉर्दर्न अलायंस का होगा. तालिबान अब पूरी ताकत के साथ पंजशीर वैली पर कब्जे के लिए लड़ रहा है. सूत्रों के मुताबिक तालिबान ने अपने 10 हजार लड़ाकों को पंजशीर वैली भेजा है, जिसमें अल-कायदा के आतंकी भी शामिल हैं. लाख कोशिश के बाद भी पंजशीर पर कब्जा तालिबान के लिए टेढ़ी खीर है, क्योंकि पंजशीर घाटी ऊंचे पहाड़ों से घिरी. ऊंचाई पर मौजूद नॉर्दन अलायंस के लड़ाके तालिबानियों तगड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं. यही वजह है कि पंजशीर जीतना तालिबान के लिए आसान नहीं होगा और लड़ाई चलती रहेगी. 1996 से 2001 के तालिबान शासन के दौरान भी पंजशीर तालिबान के लिए एक अभेद्य किला था. पंजशीर को बाहर के देशों ले भी मदद मिल सकती है..जिससे शांति की उम्मीद कम और सिविल वॉर की आशंका ज्यादा है.
तालिबान का आपसी विवाद बढ़ेगा
तालिबान अमेरिका को अफगानिस्तान से बाहर निकालने में कामयाब रहा, लेकिन अब आपसी मतभेद भी सामने आने लगे हैं. तालिबानी सरकार का मुखिया कौन होगा इस बात पर तलवारें खिंच सकती हैं. मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान के संस्थापक सदस्यों में शामिल हैं और चीफ भी हैं, जबकि हैबतुल्ला अखुंदजादा संगठन में तीसरे नंबर पर होते हुए भी बड़ी ख्वाहिश रखा है. आशंका है कि जब सरकार बनेगी, तब सत्ता और ताकत को लेकर तालिबान के भीतर भी दोफाड़ हो सकता है, जिससे अफगानिस्तान में हिंसा ही भड़केगी. साफ शब्दों में कहें तो अफगानिस्तान में गृहयुद्ध का काउंटडाउन शुरू हो चुका है और उस सिविल वॉर का अंतिम अंजाम अवाम को ही भुगतना होगा. अफगानिस्तान का इतिहास यही कहता है. लड़े कोई भुगतना अफगानियों को ही पड़ता है.
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