कोरोना वैक्सीन: निर्भय भारत
कोरोना वैक्सीन लगाने की देश में शुरूआत हो चुकी है और इस पर अवश्यक विवाद भी शुरू हो गया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना वैक्सीन लगाने की देश में शुरूआत हो चुकी है और इस पर अवश्यक विवाद भी शुरू हो गया है। भारत के विभिन्न विपक्षी दलों के नेता जिस प्रकार से इस वैक्सीन अभियान और 'वैक्सीन' पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं वह कदाचित अनुचित कहा जा सकता है क्योंकि इसका सम्बन्ध देश के 130 करोड़ लोगों से है। इनके मन में शंका का भाव बैठाने से परोक्ष रूप से लोकतन्त्र को ही हानि पहुंचती है क्योंकि इस प्रणाली के तहत चुनी गई किसी भी पार्टी की सरकार प्रत्यक्षतः लोक कल्याण के लिए ही समर्पित होती है। अतः सरकार जब कोई भी स्वास्थ्य से जुड़ा अभियान चलाती है तो वह केवल नागरिक मूलक होता है परन्तु कांग्रेस पार्टी के नेता मनीष तिवारी समेत कुछ अन्य दलों के नेताओं ने यह कह कर कि वैक्सीन को सबसे पहले राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री को लगवाना चाहिए, पूरे अभियान को राजनीतिक रंग दे दिया है। समाजवादी पार्टी के नेता व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव पहले ही वैक्सीन को 'भाजपा वैक्सीन' कह चुके हैं। श्री यादव ने हालांकि अपने बयान में बाद में संशोधन किया मगर इससे उनकी विभाजनकारी संकीर्ण मानसिकता का परिचय सभी आम लोगों को मिल गया। ऐसा बयान देकर उन्होंने सिर्फ वोटों की वह राजनीति करने की कोशिश की जिससे समाज में राजनीतिक वरीयताओं के आधार पर बंटवारा हो सके। मगर लेकिन कड़वी हकीकत यह भी है कि उनके राज्य में पिछले तीस साल से इसी प्रकार की विभाजनकारी राजनीति का बोलबाला है जिसकी वजह से सपा, बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियां इस राज्य में फली-फूली हैं। मगर श्री तिवारी ने जो सवाल खड़ा किया है वह विश्व में फैली कोरोना बीमारी से निडर होकर छुटकारा पाने के व्यापक सन्दर्भ में है। हालांकि इस क्षेत्र में भी हर देश की अलग-अलग परिस्थियों को हम नजरअन्दाज नहीं कर सकते।