Corona Vaccination: कोरोना वैक्सीन को अनिवार्य तब बनाएं जब वह वायरस पर 99.9 प्रतिशत तक असरदार हो: एक्सपर्ट

जब हम वैक्सीनेशन या यहां तक कि मेडिसिन लेने की बात करते हैं

Update: 2022-05-07 06:57 GMT
डॉ. ईश्वर गिलाडा।
जब हम वैक्सीनेशन (Vaccination) या यहां तक कि मेडिसिन लेने की बात करते हैं तो यह किसी की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है. किसी भी पब्लिक हेल्थ पॉलिसी (सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति) को इस तरह से तैयार नहीं किया जा सकता है कि वह उन लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर जाने से प्रतिबंधित करे जिन्होंने वैक्सीनेशन नहीं लिया या जो लेना नहीं चाहते. 2 मई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इसे बरकरार रखना चाहिए. यह लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में है.
कोई भी सरकार या प्राधिकरण ऐसी सार्वजनिक नीति नहीं बना सकता, जिसमें हम लोगों को वैक्सीनेशन कराने के लिए बाध्य करें. खास तौर से COVID वैक्सीन (Corona Vaccine) को लेकर जहां हमारे पास इसके फायदों को गिनाने के लिए कोई डाटा नहीं है. हमारे डॉक्टरों ने जो कुछ कहा है (वैक्सीन से लोगों में गंभीर बीमारी नहीं पैदा करने के बारे में) वह ट्रायल और एरर मेथड पर बेस्ड है. इस बात की बहुत कम संभावना है कि बिना वैक्सीनेशन वाला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को COVID से संक्रमित (Corona Positive) कर सकता है. जैसे वैक्सीनेशन को रक्षक की तरह देखना एक गलत धारणा थी वैसे ही भारत में हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) का आइडिया. 95 प्रतिशत से अधिक वयस्क आबादी ने पहली COVID खुराक ली है और 86 प्रतिशत का वैक्सीनेशन (Corona Vaccination) पूरा हो चुका है हम इस अनुमान से जा रहे थे कि बाकी लोगों में हर्ड इम्युनिटी होगी.
हर्ड इम्युनिटी एक काल्पनिक अवधारणा
हमने पाया कि जब SARS CoV2 की बात आती है तो हर्ड इम्युनिटी एक काल्पनिक अवधारणा है. 90 प्रतिशत लोगों के पास कम से कम एक तरह की इम्युनिटी है नेचुरल इम्युनिटी या फिर वैक्सीनेशन के जरिए, लेकिन इसके बावजूद आज भी लोग संक्रमित हो रहे हैं जो यह साबित करता है कि हर्ड इम्युनिटी की अवधारणा इस संदर्भ में काम नहीं करती है.
हमने केंद्र से वैक्सीनेशन प्रोग्राम को इस तरह संचालित करने का अनुरोध किया है कि लोगों को टीका लगवाने में आसानी हो और ऐसा करने के लिए वो दबाव महसूस न करें. यदि आप लोगों पर इसे लेने के लिए दबाव डालेंगे तो देश में वैक्सीन लेने को लेकर लोगों में हिचकिचाहट बनी रहेगी.
वैक्सीनेशन को प्रमोट करने का गलत समय
वैक्सीनेशन प्रोग्राम को लेकर हमारी टाइमिंग सही नहीं है. लोगों को वैक्सीनेट करने का सबसे अच्छा समय तब होता है जब COVID के पॉजिटिव मामले कम होते हैं न कि जब मामले बढ़ रहे हों. लेकिन हमारा प्रोग्राम ऐसा है कि जब देश में कोई लहर आती है तो हम वैक्सीनेशन की संख्या बढ़ाते हैं क्योंकि तब लोग संक्रमण होने से डरते हैं. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है क्योंकि संक्रमण पहले से ही फैल रहा होता है और आप किसी भी तरह से संक्रमित या फिर से संक्रमित होने वाले होते हैं.
इस वजह से वैक्सीनेशन के फायदों पर महत्वपूर्ण आंकड़ों का मिलान करना भी असंभव हो जाता है. जब संक्रमण का स्तर ज्यादा होता है तो हमें यह पता नहीं चलता कि संक्रमण वैक्सीनेशन किए हुए व्यक्ति से फैल रहा है या फिर यह हमारी उस छोटी सी आबादी के कारण फैल रहा है जिन्हें COVID वैक्सीन की पहली खुराक भी नहीं मिली.
वैक्सीन के पॉजिटिव इम्पैक्ट के बारे में जानकारी कम
वैक्सीन को अनिवार्य बनाना तब समझ में आता है जब उसकी एफिशिएंसी पोलियो और चेचक के टीके की तरह 99.9 प्रतिशत हो जिनके वैक्सीन ने इन बीमारियों को खत्म कर दिया. लेकिन COVID की बात करें तो हम वायरस पर वैक्सीन के पॉजिटिव इम्पैक्ट के बारे में बहुत कम जानते हैं. जब हम कोविड के पीक या सर्ज के बारे में बात करते हैं तो हम कई दूसरे पैरामीटर्स को देखते हैं – अस्पताल में भर्ती होने की दर क्या है, गंभीरता क्या है; लोगों की मृत्यु दर और सिम्टोमैटिक इन्फेक्शन. आज के आंकड़ों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि COVID और इसके वेरिएंट चिंता का प्रमुख कारण नहीं होंगे.
(लेखक एचआईवी और संक्रामक रोगों के सलाहकार हैं. वे ऑर्गनाइज्ड मेडिसीन एकेडमिक गिल्ड के महासचिव भी हैं. उन्होंने शालिनी सक्सेना से बात की)
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