राजनीतिज्ञों के लिए नहीं है कोरोना के नियम!

बिहार में विधानसभा चुनावों को लेकर प्रचार तेज हो गया है।

Update: 2020-10-20 04:31 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार में विधानसभा चुनावों को लेकर प्रचार तेज हो गया है। चुनावों की घोषणा के दौरान जिस तरह चुनाव तीन चरणों में करवाने कोरोना के नियमों की पालना करते हुए करने की बात कही गई थी वह सब बातें हवा होती दिखाई दे रही हैं। बिहार में हो रही चुनावी रैलियों को देखकर लगता ही नहीं कि देश में कोरोना महामारी का दौर चल रहा है। एक भी राजनीति पार्टी ऐसी नजर नहीं आ रही, जिसने नियमों की धज्जियां न उड़ाई हों। जनता दल(यू) के नेता चन्द्रिका राय, भाजपा के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, राष्टÑीय जनता दल के तेजस्वी यादव, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष संजय जायसवाल, जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव भारी भीड़ वाली रैलियां निकाल रहे हैं। हैरानी तो इस बात की है कि यह तस्वीरें लगभग सभी पार्टियों के बड़े नेताओं की ओर से अपने ट्वीटर हैंडल या फेसबुक पेज पर भी डाली जाती हैं।

इस माहौल को देखकर लगता है कि कोविड-19 के यह नियम केवल कुछ खास दिनों व आम लोगों के लिए ही लागू किए गए हैं। सत्ता प्राप्ति के लिए न तो किसी नियम की परवाह की जा रही है और न ही किसी को कोई रोकने वाला बचा है। खासकर तब जब सत्ताधारी नेता ही नियम की धज्जियां उड़ाएंगे तो दूसरी पार्टियों को कौन रोकेगा? आम दिनों में पुलिस लोगों के सरेआम चालान काट रही है लेकिन राजनीतिक अखाड़े में सबकुछ खुल्लम-खुला ही चल रहा है। कोई भी राजनेता इस गैर-कानूनी घटनाओं के खिलाफ बोलने के लिए भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। वोट बैंक ने सभी नियमों को भुला दिया है। यह सबकुछ तब हो रहा है जब देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने देश में कोरोना के सामाजिक फैलाव(कम्यूनिटी ट्रांसमिशन) को स्वीकार कर लिया है।

वहीं दूसरी तरफ विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दियों में कोरोना की दूसरी लहर उठ सकती है। चाहे पिछले कई दिनों से कोरोना के नए मरीजों में गिरावट दर्ज की जा रही है लेकिन सामाजिक फैलाव चिंताजनक है। बिहार चुनावों में प्रधानमंत्री के कोरोना के खिलाफ जन आंदोलन,'जब तक दवाई नहीं, तब तक ढ़िलाई नहीं' का कुछ भी असर नजर नहीं आ रहा। क्या मीडिया में चल रही इन तस्वीरों को लेकर देश का स्वास्थ्य विभाग कोई कदम उठाएगा? बिहार जैसे गरीब राज्य में कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ाना और भी खतरनाक साबित हो सकता है जहां स्वास्थ्य सेवाएं बिल्कुल भी मजबूत नहीं है। केन्द्र व राज्य सरकार दोनों को इस मामले में कानून लागू करवाने के लिए दृढ़ता व निष्पक्षता से काम करना होगा।

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