Corona Crisis: दो डोज़ के बावजूद मेडिकल प्रोफेशनल की मौत की वजह क्या है?

आईएमए (IMA) ने कोरोना (Corona) के दूसरे लहर में 278 डॉक्टर्स के गुजरने की पुष्टी की है

Update: 2021-05-19 07:16 GMT

पंकज कुमार। आईएमए (IMA) ने कोरोना (Corona) के दूसरे लहर में 278 डॉक्टर्स के गुजरने की पुष्टी की है. दिल्ली के नामचीन कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ के के अग्रवाल और पूर्वी भारत के नामचीन हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ प्रभात कुमार की कोरोना की वजह से हुई मौत से पूरा मेडिकल फ्रेटरनिटी स्तब्ध है. पिछले दिनों दिल्ली और एनसीआर में कुछ और नामचीन डॉक्टर समेत 28 डॉक्टर्स की मौत हो चुकी है जिनमें ज्यादातर वैक्सीन के दो डोज ले चुके थे. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि दो डोज के 14 दिनों बाद भी हॉस्पिटलाइजेशन और मौत जैसी गंभीर समस्याओं से रूबरू क्यों होना पड़ रहा है, जबकि वैक्सीन को लेकर किए गए दावों में ऐसा नहीं होने की बात कही गई थी.


मेदांता के चेस्ट सर्जरी डिपार्टमेंट के चिकित्सक डॉ अरविन्द कुमार कहते हैं कि सौ फीसदी मौत और हॉस्पिटलाइजेशन से बचाव का दावा तीसरे फेज के ट्रायल के रिजल्ट के आधार पर दूसरी लहर आने से पहले किया गया था. वैक्सीन के ट्रायल के दरमियान वैक्सीनेटेड वॉलंटियर्स कोरोना वायरस से एक्सपोजर के बाद 25 से 30 फीसदी संक्रमित हुए थे, लेकिन उनकी कंडीशन माइल्ड थी और किसी को भी आईसीयू या वेंटिलेटर की जरूरत नहीं पड़ी थी.
दो डोज़ के बाद मौत की वजह क्या है?
दूसरी लहर आने के बाद कई मेडिकल प्रोफेशनल्स, पत्रकार और पुलिस के साथियों को कोरोना की गंभीर बीमारी की वजह से हॉस्पिटल जाना पड़ा और बाद में कई मौत के शिकार भी हुए, लेकिन ये तय है कि पिछले साल की तुलना में ये काफी कम है. डॉ अरविन्द कुमार कहते हैं कि ट्रायल में भाग लेने वाले वॉलंटियर्स की संख्या कम थी, लेकिन अब करोड़ों की संख्या में लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है. इसलिए ऐसे लोगों में मौत के संभावित कारण ये हो सकते हैं.

(1) क्या दो डोजेज के बाद एंटीबॉडी कम बनी या समुचित मात्रा में नहीं बन पाई.
(2) एंटीबॉडी बनने के बाद भी न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी सही मात्रा में नहीं बन पाई.
(3) नया स्ट्रेन क्या शरीर में बने एंटीबॉडी को अवॉइड कर पाने में (यानि कि एंटीबॉडी के चंगुल से बच निकलने में) सफल हो गया.

वैसे डॉ. अरविन्द कुमार कहते हैं कि ये विषय रिसर्च का है, लेकिन इसके बावजूद वैक्सीन ही कोरोना वायरस के खिलाफ सबसे प्रभावी हथियार है. इसलिए वैक्सीनेशन की प्रक्रिया लगातार चलती रहनी चाहिए.

ज्यादा मौतों की वजह हाई वायरल लोड और वायरस का नया वैरिएंट भी हो सकता है
यूरोलॉजी और आईएमए के पूर्व प्रेसिडेंट और नामचीन चिकित्सक डॉ अजय कुमार दिवंगत आत्मा डॉ के के अग्रवाल और डॉ प्रभात कुमार के सालों पुराने दोस्त रहे हैं. डॉ अजय कुमार कहते हैं कि दो डोजेज के बाद मेडिकल प्रोफेशनल में कई मौतों की वजह वायरस का नया वेरिएंट और हाई वायरल लोड है जिससे एक्सपोज होना प्रैक्टिसिंग डॉक्टर की मजबूरी है.

डॉ अजय कुमार कहते हैं कि वैक्सीन बेहतरीन सुरक्षा कवच है, लेकिन वायरस का एरोसॉल इंफेक्ट, नए वेरिएंट की संक्रमण क्षमता और लगातार संक्रमित लोगों या फिर संभावित संक्रमित लोगों के बीच में डॉक्टरों के रहने की वजह से हाई वायरल लोड का खतरा हमेशा रहता है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि डॉ अजय कुमार प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल को भी नए वैरिएंट पैदा होने की वजह मानते हैं. इसलिए वो रेमेडेसिविर के इस्तेमाल से लेकर प्लाज्मा थेरेपी को लेकर लगातार मुखर रहे हैं.

उचित मात्रा में एंटीबॉडी नहीं बनने की वजह और क्या हो सकती है?
आंकड़ों के मुताबिक देश में अभी तक 80 फीसदी मेडिकल प्रोफेशनल ही वैक्सीन की डोज लेने में कामयाब हुए हैं जिनमें सिंगल डोज लेने वाले भी शामिल हैं. वैक्सीन रोल आउट के शुरूआती समय में मेडिकल प्रोफेशनल में वैक्सीन लेने को लेकर एक झिझक थी, जिस वजह से सभी लोग तय समय पर दोनों डोज लेने में कामयाब नहीं हो पाए हैं.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के आंकड़ों के मुताबिक दूसरी लहर में 278 डॉक्टर्स हताहत हुए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा (78) डॉक्टर्स बिहार के हैं. यूपी दूसरे नंबर पर है जहां 37 वहीं दिल्ली में 28 और आंध्रप्रदेश में 22 डॉक्टर्स कोरोना की माहमारी में मौत के शिकार हुए हैं.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसिंडेंट डॉ जे ए जयलाल कहते हैं कि दूसरी माहमारी में मौत के शिकार हुए सभी डॉक्टर्स वैक्सीन के दोनों डोज ले चुके थे या नहीं इसका डाटा हमारे पास नहीं है.

लेकिन इबहास की प्रोफेसर और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की पूर्व सचिव डॉ संगीता शर्मा कहती हैं कि वो खुद संक्रमित होने से एक महीना पहले वैक्सीन के दोनों डोज ले चुकी थीं. लेकिन कोविड से पीड़ित होने के बाद उन्हें मैट्रो अस्पताल में तकरीबन एक महीने तक गंभीर ईलाज के दौर से गुजरना पड़ा है. डॉ संगीता शर्मा कहती हैं कि कैजुअल्टी या हॉस्पिटलाइजेशन के मामले दोनों डोजेज के बाद भी सामने आ रहे हैं और इसकी वजह वायरस का नया स्ट्रेन हो सकता है जो हमारे शरीर के इम्यूनिटी यानी कि एंटीबॉडी से बच निकलने में कामयाब हो रहा है.

डॉक्टर्स में हो रही कैजुअल्टी की वजह से वैक्सीन की इफिकेसी पर संशय कहां तक जायज है?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ रंजन शर्मा इस बहस को ही सिरे से खारिज करते हैं और कहते हैं कि वैक्सीन से बेहतर कवच हमारे पास कुछ नहीं है. उनका कहना है कि दोनों डोज के बावजूद कुछ डॉक्टर्स संक्रमित हुए भी हैं तो ज्यादातर माइल्ड और मॉडरेट की ही श्रेणी में हैं लेकिन कुछ कैजुअल्टी को लेकर सवाल खड़े करना सही नहीं है.

यूरोलॉजिस्ट डॉ अजय कुमार वायरस के बदलते स्वरूप का हवाला देते हुए कहते हैं कि पहले वायरस मोटा था जो 6 फीट से जायादा सफर नहीं कर सकता था. लेकिन वायरस म्यूटेशन के बाद छोटे साइज का हो चुका है जिसका एरोसॉस इफेक्ट है यानि लंबे समय तक हवा में तैर सकता है. डॉक्टर्स के पास एसिम्प्टोमैटिक पेशेंट भी आते हैं जो कई लोग को संक्रमित कर सकते हैं और पीपीई किट पहन कर भी इलाज कर रहे डॉक्टर फूलप्रूफ नहीं कहे जा सकते हैं. इसलिए हाई वायरल लोड और नए स्ट्रेन का खतरा डॉक्टरों को सबसे ज्यादा रहता है.

नोएडा में कार्यरत फीजिशियन डॉ अमित की राय में कोरोना वायरस का व्यवहार अनप्रिडेक्टेबल है. डॉ अमित कहते हैं कि वैक्सीन की वजह से ही इस बार 45 से ज्यादा के लोग काफी कम हताहत हुए हैं, जबकि युवाओं की संख्या कहीं ज्यादा है. इसलिए दो डोज के बाद भी कई डॉक्टर्स में हॉस्पिटलाइजेशन और मौत की घटनाएं वैक्सीन की महत्ता को कम नहीं करती हैं.

दरअसल नए वेरिएंट की संक्रमण क्षमता और घातकता को लेकर मेडिकल प्रैक्टिशनर सशंकित जरूर हैं फिर भी दूसरी लहर में ओवर एकस्पोज्ड होने के बावजूद कम कैजुअल्टी का श्रेय वैक्सीन को ही देते हैं. एक्सपर्टस डबल डोज के बावजूद हॉस्पिटलाइजेशन और मौत की घटी कई घटनाओं के लिए नए वेरिएंट और जरूरत से ज्यादा वायरस के एक्सपोजर को जिम्मेदार मानते हैं.
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