हलाल मीट पर यूरोप में बढ़ रहा विवाद, क्या इस बहाने मुस्लिम विरोधी राजनीति को दी जा रही है हवा

यूरोप (Europe) में हलाल मीट (Halal Meat) की राजनीति आज की नहीं है,

Update: 2021-06-28 11:37 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | संयम श्रीवास्तव|  यूरोप (Europe) में हलाल मीट (Halal Meat) की राजनीति आज की नहीं है, बल्कि दशकों पुरानी है. दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के बाद जब मुस्लिम प्रवासियों की पहली खेप यूरोप पहुंची और वहां रहने लगीं तो इस समुदाय ने अपनी परंपराओं को आगे बढ़ाना जारी रखा. इन्हीं में से एक था हलाल मीट, हलाल मीट का मतलब होता है जिस जानवर को आप खा रहे हैं उसे मारते वक्त हलाल किया गया हो ना कि झटके से काटा गया हो. मुसलमान इसे पवित्र मानते हैं, यही वजह है कि वह हलाल मीट ही खाना पसंद करते हैं. पर हाल ही में बेल्जियम में बने एक कानून के चलते जानवरों को मारने के पहले बेहोश करना अनिवार्य कर दिया गया है, जिसके चलते हलाल मीट पर स्वतः रोक लग जाएगी. नीदरलैंड, जर्मनी, स्पेन और साइप्रस के साथ ऑस्ट्रिया और ग्रीस में भी इस तरह के कानून बन चुके हैं.

हालांकि हलाल मीट का विवाद सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि देखते-देखते यह पूरी दुनिया में एक बड़ा कारोबार बन गया जो केवल कुछ ही लोगों द्वारा चलाया जाने लगा. इसका असर यह हुआ कि मीट के कारोबार में धीरे-धीरे एक खास समुदाय का प्रभुत्व बढ़ने लगा और बाकी के सभी समुदाय उस से गायब होने लगे. विवाद यहीं से शुरू होता है. फ्रांस (France) में यह एक बड़ा मुद्दा बना, चुनाव के समय इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया जाने लगा.
दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के समय फ्रांस में लगभग 40,000 कसाई थे जिनकी संख्या घटते घटते 20,000 से भी कम हो गई. यह हालत केवल फ्रांस की ही नहीं बल्कि भारत समेत दुनिया के कई देशों की थी जहां धीरे-धीरे मीट के कारोबार पर केवल एक समुदाय का प्रभुत्व बढ़ने लगा. यूरोप में फ्रांस एक ऐसा देश है जहां बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है और यहां हलाल खाद्य बाजार लगभग 8 बिलियन डॉलर का है. वहीं अगर दुनिया भर में देखा जाए तो एंड्राइड मार्केट रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में हलाल बाजार की कीमत लगभग 500 बिलियन डॉलर है, जिस पर केवल एक समुदाय का कब्जा है.
यूनाइटेड किंगडम के खाद्य मानक एजेंसी के अनुसार, हर सप्ताह वहां कुल 16 मिलियन जानवरों के मीट में से 54 फ़ीसदी लैम्ब 31 फीसदी चिकन और 7 फ़ीसदी बीफ धार्मिक रूप से काटा जाता है. जबकि उस देश की कुल मुस्लिम आबादी मात्र 5 फ़ीसदी है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन जिन्हें अक्सर कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा का विरोध करते देखा जाता है उन्होंने हाल ही में इस पर बयान देते हुए कहा था कि मुस्लिम समाज फ्रांस में एक समानांतर समाज बनाने की कोशिश कर रहा है जो देश के अंदर धीरे-धीरे इस्लामी अलगाववाद को बढ़ावा दे रहा है. यहां तक कि उन्होंने कहा था कि दुनिया भर में कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा को रोकने के लिए सबसे पहले हलाल भोजन और धार्मिक कपड़ों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना चाहिए.
हलाल मीट के जरिए कट्टरपंथी इस्लामिक विचार धारा का विरोध
कुछ वक्त पहले तक केवल भारत ही एक ऐसा देश दुनिया में खड़ा दिखाई देता था जो कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा का विरोध करता था. लेकिन अब धीरे-धीरे फ्रांस अमेरिका और यूरोप के कई देश इस लिस्ट में शामिल होते जा रहे हैं. दरअसल बीते दिनों यूरोपीय देशों में जिस तरह की घटनाएं हुईं और उसकी वजह कहीं ना कहीं कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा निकल कर सामने आई. ऐसी घटनाओं ने यूरोपीय देशों की आंखें खोल दी हैं. उन्हें मालूम है कि अगर जल्द से जल्द इस कट्टरपंथी विचारधारा पर लगाम नहीं लगाया गया तो यूरोप में भी रेडिकल इस्लाम का एक ऐसा कैंसर जन्म ले लेगा जिसका इलाज शायद ही संभव हो.
दरअसल यूरोप में 2014 से 2016 के बीच आतंकवादी वारदात में बेहद तेजी आई, इसके साथ ये घटनाएं और बढ़ने लगीं. इनमें बास्तील दिवस पर फ्रांस के नीस शहर में हमला, बर्लिन के क्रिसमस मार्केट में हमला, पेरिस में कई आतंकवादी घटनाएं शामिल हैं. यूरोपोल के मुताबिक सिर्फ 2018 में जिहादी आतंकी हमलों में 62 लोगों की जानें चली गई थीं. हालांकि साल 2018 में ये संख्या 13 और साल 2019 में ये संख्या 10 तक ही सीमित रही. वर्ष 2018 में फ्रांस में इस्लामोफ़ोबिया से जुड़े मामलों में 52 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई तो वहीं ऑस्ट्रिया में ऐसे मामले 74 फीसदी तक बढ़ गए.
इसकी वजह से यूरोप अब कट्टरपंथी विचारधारा पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश कर रहा है. इसी कोशिश के चलते, फ्रांस ने अपने यहां कट्टरपंथी विचारधारा को पनपने से रोकने के लिए एक नया कानून लाया है. जिसका नाम है 'गणतांत्रिक मूल्यों को सशक्त करने का विधेयक' इसके अंतर्गत फ्रांस अब मुसलमानों को चरमपंथी विचारधारा से दूर करेगा. इस कानून के आने के बाद अब फ्रांस के मस्जिद बाहर से कोई फंड नहीं ले सकते. मुस्लिम बच्चे अब मदरसों में शिक्षा नहीं ले सकते. ना ही अब कोई डॉक्टर मुस्लिम लड़कियों को कुंवारी होने का सर्टिफिकेट देगा.
बेल्जियम में भी बैन है हलाल मीट
दरअसल यूरोपीय महाद्वीप के देश बेल्जियम में काफी समय से एक मांग उठ रही थी, कि जानवरों को मारने से पहले उन्हें बेहोश किया जाना चाहिए. लेकिन मुसलमानों में परंपरा है कि वह जिंदा जानवर को ही हलाल करते हैं. बहरहाल, जनवरी 2019 में बेल्जियम की सरकार ने एक कानून बनाया जिसके अनुसार अब बिना किसी जानवर को बेहोश किए मारना कानूनन अपराध होगा. इस कानून को यूरोपीय संघ की अदालत ने भी सही ठहराया. बेल्जियम में रहने वाले मुसलमान इस कानून के प्रति नाराजगी जाहिर करते हैं, उनका मानना है कि यह उनके मजहबी मान्यता के खिलाफ है. मुसलमान कहते हैं कि यह कानून उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों पर हमला है. लेकिन बेल्जियम के इस कदम के बाद अन्य यूरोपीय देश भी अब ऐसे ही कानून बनाने की ओर अग्रसर हैं.
जानवरों के लिए काम करने वाले तमाम कार्यकर्ताओं का मानना है कि किसी भी जीव को मारने से पहले अगर उसे बेहोश कर दिया जाए तो उसकी तकलीफ कम हो जाती है. ऐसे कानून नीदरलैंड, जर्मनी, स्पेन और साइप्रस जैसे देश में लागू हैं. यहां तक कि ऑस्ट्रिया और ग्रीस में भी जानवरों के काटे जाने से तुरंत पहले ही उन्हें बेहोश करने का प्रावधान है. बेल्जियम के बाद डेनमार्क, स्वीडन, स्लोवेनिया, नॉर्वे और आइसलैंड ने भी जानवरों को मारने से पहले उन्हें बेहोश किए जाने के कानून को अपना लिया है.
भारत में भी हलाल और झटके पर विवाद
बीबीसी में छपी एक खबर के अनुसार भारत में 2019-2020 के वित्तीय वर्ष के दौरान लगभग 23,000 करोड रुपए का लाल मांस निर्यात किया गया था. जिसमें सबसे ज्यादा वियतनाम को एक्सपोर्ट हुआ था. इसकी कीमत लगभग 76 सौ करोड़ रुपए थी. भारत में गैर मुस्लिम मांस का व्यापार करने वाले लोगों का कहना था की यह मांस मुस्लिम देशों में निर्यात नहीं होते, इसलिए यह हलाल से कटे हों या झटके से इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
लेकिन हलाल मीट एक्सपोर्ट की वजह से ही इस पूरे व्यापार पर केवल एक समुदाय का ही कब्जा है. इसी विरोध को देखते हुए भारत सरकार ने जनवरी 2020 में भारत से एक्सपोर्ट होने वाले मीट से 'हलाल' शब्द को हटा दिया और उसकी जगह अब लिखा जाने लगा कि यह मीट आयातित देश के नियमों के हिसाब से कटा है. इस वजह से भी भारत में मुस्लिम कारोबारियों और गैर मुस्लिम मांस कारोबारियों के बीच तनातनी बढ़ी थी, क्योंकि पहले मांस के निर्यात के लिए हलाल का प्रमाण पत्र लेना पड़ता था जो अब जरूरी नहीं रहा.
हिंदुस्तान में यह मामला इतना बढ़ा कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने तो अपने क्षेत्र के सभी मीट की दुकानों, होटलों पर पोस्टर लगाने के आदेश दे दिए जिनमें यह लिखा होना चाहिए कि यहां हलाल मीट बिक रहा है या झटका. दरअसल गैर मुस्लिम मीट खाने वाले लोगों का यह आरोप था कि उनके धर्म में झटका मीट खाया जाता है, लेकिन उन्हें अनजाने में जबरन हलाल मीट खाना पड़ता है.


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