ईवीएम पर विवाद : क्या यह 2 मई की तैयारी का हिस्सा है ताकि गाँधी परिवार पर आंच ना आये?

असम में दूसरे चरण का चुनाव ख़त्म होते-होते ही एक विवाद शुरू हो गया

Update: 2021-04-03 15:23 GMT

असम में दूसरे चरण का चुनाव ख़त्म होते-होते ही एक विवाद शुरू हो गया. राताबरी विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के उम्मीदवार क्रिशेंदु पाल की कार से एक ईवीएम मिलने के बाद प्रदेश की प्रमुख विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने बखेड़ा शुरू कर दिया मानो पूरे प्रदेश में ही चुनाव में धांधली हो रही है. वृहस्पतिवार को 39 क्षेत्रों में मतदान हुआ और अब तीसरे और आखिरी चरण में 6 अप्रैल को 40 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान होना बाकी है.

किसी विपक्षी दल का सजग होना लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है.

कांग्रेस पार्टी सजग थी जो सराहनीय है. चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण भी आ गया कि किन परिस्थितियों में चुनाव अधिकारियों ने रात में एक निजी कार में लिफ्ट ली थी. बीजेपी के प्रत्याशी क्रिशेंदु पाल का भी खुलासा आ गया है कि उनकी पत्नी की कार पर बीजेपी प्रत्याशी वाला स्टीकर लगा हुआ था, कार में सिर्फ उनका ड्राइवर था जिससे चुनाव अधिकारियों ने लिफ्ट माँगा था और यह चुनाव अधिकारियों का काम था कि वह उस स्टीकर को देखते और उनकी गाड़ी में लिफ्ट नहीं लेते.

चारो अधिकारी सस्पेंड
भले ही चुनाव अधिकारियों की गाड़ी सड़क पर ख़राब हो गयी थी, स्टीकर लगे बीजेपी प्रत्याशी की गाड़ी में लिफ्ट लेना यह दर्शाता है कि या तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी कि ऐसी स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए या फिर उनसे चूक हो गयी. चुनाव आयोग ने उन सभी चार अधिकारियों को न सिर्फ सस्पेंड कर दिया है बल्कि उस मतदान केंद्र में जहाँ उस ईवीएम का मतदान में प्रयोग हुआ था, उस बूथ पर दुबारा चुनाव कराने का आदेश दिया है. जहाँ कांग्रेस पार्टी का सजग होना सराहनीय था, पर जिस तरह से अब कांग्रेस पार्टी द्वारा चुनाव आयोग पर उगली उठाई जा रही है, वह निंदनीय है. स्थानीय अधिकारियों ने चूक की और उन पर कार्रवाई भी हो गयी. पर चुनाव आयोग को विवाद के घेरे में लेना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता, सिवाय इसके की शायद कांग्रेस पार्टी ने अभी से एक अपेक्षित हार के लिए बहाना ढूँढना शुरू कर दिया है.

चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है
कहावत है कि सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही दिखता है. चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जो इंदिरा गाँधी के समय में किस तरह से कांग्रेस पार्टी की संस्था बन गयी थी यह सभी को पता है. अब कांग्रेस पार्टी को डर सताने लगा है कि कहीं बीजेपी भी इंदिरा गाँधी की तर्ज़ पर तो नहीं चल रही है? चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है यह बहुतों को तब ही समझ में आया जब चंद्रशेखर सरकार ने टी.एन. शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया.

कहा जाता है कि कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव गाँधी प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के इस फैसले से खुश नहीं थे, पर शेषन ने एक ऐसी लकीर खींच दी जिसके पार जाना अब चुनाव आयोग के लिये संभव नहीं है. कांग्रेस पार्टी को अपनी गिरेबान में भी झाँकने के ज़रुरत है. मुख्य चुनाव आयुक्त के पद को विवादित करना फिर से एक बार शुरू हो गया है .

कांग्रेस के समय में EVM का खूब प्रयोग हुआ
जबकि सेवानिवृत्त मुख्य चुनाव आयुक्त एम एस गिल को कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा का सदस्य बनाया और बाद में केंद्रीय मंत्री भी. गिल के कार्यकाल 1998 और 1999 में दो बार लोकसभा चुनाव हुआ और किसी ने उनके आचरण पर शक नहीं किया. ईवीएम द्वारा चुनाव कराने का फैसला शेषन का था, जिसे गिल ने सख्ती से लागू किया. यानी कहीं ना कहीं कांग्रेस पार्टी के नजदीक रहे गिल के समय में ईवीएम का व्यापक प्रयोग शुरू हुआ, जबतक कांग्रेस पार्टी सत्ता में रही सब ठीक था, पर 2014 में कांग्रेस पार्टी चुनाव क्या हार गयी अब हरेक बार चुनाव हारने के बाद कांग्रेस पार्टी ईवीएम को और चुनाव आयोग को दोष देती नज़र आती है.
खेल में खेल भावना का बड़ा महत्व होता है.

कहते हैं कि किसी भी खेल को खेल भावना के साथ खेलना चाहिए. खेल में हारी हुयी टीम अक्सर विजयी टीम को बधाई देती दिखती है. ऐसा राजनीति में भी होता था. पर अब लुप्त हो गया है. कांग्रेस पार्टी ने एक प्रथा की शुरुआत कर दी कि हारने के बाद दोष का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ दो और ऐसा माहौल बना दो जिससे लगने लगे कि वह चुनाव हारी नहीं बल्कि उसके खिलाफ साजिश रची गयी थी.

चुनाव आयोग पर आरोप निराधार
शुक्र है कि अभी तक कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी या चुनाव आयोग पर आरोप नहीं लगाया है कि पार्टी की प्रिय लीडर प्रियंका गाँधी को एक साजिश के तहत असम के तीसरे और आखिरी चरण के चुनाव प्रचार से बाहर कर दिया गया है. प्रियंका गाँधी के पति रोबर्ट वाड्रा को कोरोना संक्रमण हो गया है. प्रियंका गाँधी का रिपोर्ट नेगेटिव है, पर चूंकी दोनों एक ही घर में रहते हैं, प्रियंका गाँधी ने भी अपने आप को आइसोलेट कर लिया है.
अभी पूरे एक महीने तक इंतज़ार करना होगा यह जानने की लिए कि पांच प्रदेशों में हो रहे विधानसभा चुनाव का परिणाम क्या होगा, पर लगता है की कांग्रेस पार्टी ने अभी से अपनी तैयारियां शुरू कर दी है ताकि गाँधी परिवार पर कोई आंच ना आये और सारा का सारा दोष चुनाव आयोग और ईवीएम पर डाल दिया जाए.
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