अपराध का सिलसिला

राज्य के मुख्यमंत्री बार-बार दावे करते रहे हैं कि अपराधियों के प्रति किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरती जाएगी |

Update: 2021-02-11 03:09 GMT

राज्य के मुख्यमंत्री बार-बार दावे करते रहे हैं कि अपराधियों के प्रति किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरती जाएगी, मगर वास्तव में ऐसा होता नजर नहीं आता। अपराधी अब इस कदर बेखौफ हो चुके हैं कि उन्हें पुलिसकर्मियों तक की सरेआम हत्या कर देने में हिचक नहीं होती। कासगंज की घटना इसका ताजा उदाहरण है।

गौरतलब है कि वहां के एक गांव में शराब माफिया को वारंट तामील कराने गए एक दारोगा और एक सिपाही पर अपराधियों ने हमला कर दिया। उसमें सिपाही की जान चली गई और दारोगा गंभीर रूप से घायल हो गया। इस घटना की प्रतिक्रिया में उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक आरोपी को मुठभेड़ में मार गिराया। मुख्य आरोपी अभी पकड़ से बाहर है।
यह घटना कुछ महीने पहले कानपुर के विकास दुबे मामले की याद ताजा कर गई। उसमें भी रात के वक्त पुलिस दल विकास दुबे को गिरफ्तार करने गया था और दुबे के गुंडों ने उस पर हमला कर दिया था। उसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे। बाद में पुलिस ने फरार विकास दुबे को पकड़ा और संदिग्ध अवस्था में उसे मार गिराया था। ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जिनसे जाहिर होता है कि अब वहां अपराधियों में पुलिस और कानून का कोई खौफ नहीं रह गया है।
पहले की सरकारों के अपराधियों और गुंडा तत्त्वों की मनमानी पर काबू पाने में नाकामी और उन्हें संरक्षण देने की वजह से ही लोगों ने भाजपा में अपना विश्वास जताया था। तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा भी किया था कि प्रदेश में अपराधियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। मगर स्थिति यह है कि पिछले चार सालों में जिस रफ्तार से अपराध बढ़े हैं, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया।
शुरू में मुख्यमंत्री दलील देते रहे कि पुरानी सरकारों के समय में संरक्षण पाए अपराधी ही ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, मगर वह बात अब गले नहीं उतरती। अगर वहां की सरकार सचमुच अपराध पर काबू पाने को लेकर संजीदा होती, तो अब तक ऐसी घटनाएं नहीं होने पातीं। सरकार को काम करते चार साल हो गए। किसी भी व्यवस्था को बदलने और समस्याओं पर काबू पाने के लिए इतना समय कम नहीं होता। मगर ऐसा नहीं हो पाया, तो इसकी वजह न केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, बल्कि पुलिस महकमे को जवाबदेह न बना पाना भी है।
छिपी बात नहीं है कि उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल पुलिस का इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए करते रहे हैं। इसी वजह से पुलिस सत्तापक्ष से नजदीकी रखने वाले आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के प्रति नरमी और विपक्षी दलों के समर्थकों के प्रति कड़ाई से पेश आती रही है। इसका नतीजा यह भी हुआ है कि बहुत सारे अपराधी राजनीतिक संरक्षण पाने का प्रयास करते देखे जाते रहे हैं।
योगी सरकार भी उस आरोप से मुक्त नहीं मानी जा सकती। पिछले चार सालों में हुई अनेक घटनाओं में वहां की पुलिस पर पक्षपातपूर्ण रवैये के आरोप लगे हैं। पुलिस अपराधियों पर काबू पाने के बजाय कई बार खुद उनकी संरक्षक बनी नजर आती रही है। ऐसे में भला कैसे उम्मीद की जा सकती है कि अपराधिय९ों में कानून और प्रशासन का खौफ पैदा होगा। अगर सचमुच योगी सरकार ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के प्रति गंभीर है, तो उसे नए सिरे से अपराध पर काबू पाने की रणनीति बनानी होगी।


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