भारत में प्राइवेट मेडिकल संस्थानों के मेडिकल शुल्क ढांचे पर हो विचार ताकि विदेश जाने से बचे धन
भारत में शिक्षा और रोजगार के पर्याप्त अवसरों के बीच पढ़ाई के लिए बड़ी संख्या में छात्रों का विदेश जाना हैरत भरा दिखता है
डा. सीमा सिंह।
भारत में शिक्षा और रोजगार के पर्याप्त अवसरों के बीच पढ़ाई के लिए बड़ी संख्या में छात्रों का विदेश जाना हैरत भरा दिखता है। बीते वर्षों यूक्रेन की यात्रा के दौरान कीव एयरपोर्ट का एक दृश्य आज भी हैरान करता है। यहां पहुंचते ही भारतीय छात्रों की बड़ी संख्या देखकर हैरानी और उत्सुकता दोनों हुई। इतनी संख्या में भारत के लोगों को देखकर एक बार तो ऐसा लगा कि यह भारत का ही कोई एयरपोर्ट हो। वहां अधिकांश भारतीयों की उम्र 20 से 25 वर्ष ही रही होगी। यूक्रेन जाने वाले विमान में 80 प्रतिशत से ज्यादा संख्या भारतीय लोगों की थी, उसमें भी अधिकतर विद्यार्थी ही थे।
मेरे साथ की सीट पर बैठी एक भारतीय छात्रा कीव से मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। तब तक मैं इस बात से अनभिज्ञ थी कि भारत से इतनी बड़ी संख्या में छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने यहां जाते हैं। बातचीत में यह ज्ञात हुआ कि यह छात्रा बहुत ही सामान्य परिवार से संबंध रखती थी। 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद दो साल घर बैठकर उसने तैयारी की, लेकिन इतनी रैंक नहीं पा सकी कि किसी सरकारी मेडिकल कालेज में दाखिला पा सके। उसने बताया कि भारत में प्राइवेट कालेज में मेडिकल की पढ़ाई कर पाना उसके बस का नहीं था। किसी ने बताया कि विदेश में इससे सस्ती पढ़ाई की जा सकती है। फिर तमाम लोगों से मदद के माध्यम से यूक्रेन के एक मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए नामांकन करवाया। एमबीबीएस करने के लिए भारत से कीव के अलावा छात्र रूस, कजाकिस्तान, चीन आदि देश भी जाते हैं।
दरअसल भारत में सरकारी मेडिकल कालेज में दाखिल मिल पाना बहुत मुश्किल है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यह राह आसान जरूर हुई है, परंतु अभी भी इसमें नामांकन की राह बहुत ही मुश्किल है। मैनेजमेंट कोटा के तहत होने वाले नामांकन के नाम पर अनेक प्रकार की अनियमितताएं अक्सर सामने आती रही हैं। यह ठीक उसी तरह से है कि किसी आवासीय कालोनी में आवास की कीमत 15 लाख रुपये थी और कोई बिल्डर यहां आए और सभी जमीनों को खरीद कर मनमाने दाम पर बेचे, जिसे खरीदना है वह बिल्डर के पास आएगा, क्योंकि उस पूरे इलाके में सभी स्थानों पर उसका ही कब्जा है। जिसे प्लाट या आवासीय भवन चाहिए वह इनकी बताई कीमत पर खरीदे। भारत में मांग के अनुसार आज भी मेडिकल पाठ्यक्रम में सीटें नहीं हैं, और जो हैं वे इतनी महंगी हैं कि सामान्य आर्थिक हैसियत वाले परिवारों के छात्र पढ़ ही नहीं सकते हैं। विदेश में एमबीबीएस में दाखिला के लिए कोई ऐसी भारी-भरकम परीक्षा भी नहीं होती है। आसानी से छात्रों को दाखिला मिल जाता है।
हालांकि विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वालों के लिए पहले कुछ हद तक आसानी थी। विदेश से आने के बाद ये लोग आसानी से भारत में प्रैक्टिस शुरू कर देते थे। लेकिन अब इन्हें एफएमजीई परीक्षा देनी होती है। इस परीक्षा ने कुछ विद्यार्थियों को विदेश जाने से अवश्य रोका, लेकिन यह इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। इसके भी कई और रास्ते हो सकते हैं। विदेश से आने के बाद यदि प्राइवेट प्रैक्टिस करते हुए एक वर्ष हो गया और कोई शिकायत नहीं हुई तो ये डाक्टर राज्य सरकारों से प्राइवेट प्रैक्टिस की अनुमति ले सकते हैं। ऐसे डाक्टरों की संख्या बहुत कम है जो बाहर से मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद विदेश में ही प्रैक्टिस करें। जब इन्हें भारत में ही काम करना है तो क्यों नहीं ऐसा रास्ता निकाला जाता कि ये पढ़ाई भी यहीं करें। चूंकि विदेश में पढ़ाई करने से भारत से व्यापक पैमाने पर धन उन देशों में भेजा जाता है, जिस धन से भारतीय अर्थव्यवस्था को वंचित होना पड़ता है। ऐसे में भारत में ही कारगर व्यवस्था करने पर उस धन को विदेश जाने से रोका जा सकता है।