प्रधानमंत्री के तीखे, लेकिन तथ्यों से लैस संबोधन से कांग्रेस नेतृत्व तिलमिलाया
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए उसे और विशेष रूप से कांग्रेस पर जैसे करारे प्रहार किए, उससे वह केवल बेनकाब ही नहीं हुई, बल्कि शर्मसार भी दिखी।
संजय पोखरियाली: राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए उसे और विशेष रूप से कांग्रेस पर जैसे करारे प्रहार किए, उससे वह केवल बेनकाब ही नहीं हुई, बल्कि शर्मसार भी दिखी। वास्तव में प्रधानमंत्री ने गांधी परिवार को जिस तरह निशाने पर लिया, उससे वह बगलें झांकने वाली स्थिति में दिखा। नि:संदेह संसद के दोनों सदनों में प्रधानमंत्री के तीखे, लेकिन तथ्यों से लैस संबोधन से कांग्रेस नेतृत्व तिलमिलाया होगा, लेकिन यदि वह अपने साथ अपनी पार्टी और विपक्ष का भला चाहता है तो उसे अपनी रीति-नीति पर आत्ममंथन करना चाहिए।
कांग्रेस नेतृत्व को ऐसा इसलिए भी करना चाहिए, क्योंकि प्रधानमंत्री ने उसे हिदायत देने के साथ नसीहत भी खूब दी। उन्होंने उन कारणों का विस्तार से उल्लेख किया, जिनके चलते कांग्रेस दुर्दशा से ग्रस्त है और घोर नकारात्मकता का परिचय देने के साथ यह भी प्रकट करती रहती है कि जब देश पर कोई संकट आता है तो उसे आनंद का अनुभव होने लगता है। ऐसा तभी होता है, जब अंध विरोध एक आदत का रूप ले लेता है। यह आदत सरकार विरोध और देश विरोध के अंतर को भुलाने का ही काम करती है।
गांधी परिवार और खासकर राहुल गांधी इस मुगालते से बाहर आ जाएं तो बेहतर कि परिवार विशेष का वारिस होने के नाते उन्हें देश पर शासन करने का जन्मसिद्ध अधिकार है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा की शुरुआत करते हुए राहुल ने न केवल ऐसी ही भाव भंगिमा प्रकट की थी, बल्कि सरकार को कठघरे में खड़ा करने के क्रम में कई अनुचित बातें भी की थीं। प्रधानमंत्री ने सूद समेत उनका जवाब दे दिया। उन्होंने केवल गांधी परिवार की सामंतवादी मानसिकता के साथ-साथ उसकी राजनीतिक असहिष्णुता, गरीबों को गरीब बनाए रखने की प्रवृत्ति को ही उजागर नहीं किया, बल्कि देश विरोधी तत्वों जैसी उसकी भाषा की ओर भी संकेत किया।
उन्होंने कांग्रेस के लंबे शासनकाल में किए गए अनगिनत मनमाने कामों और खासकर राज्य सरकारों को बर्खास्त करने से लेकर आपातकाल लगाने एवं वामपंथियों के प्रभाव में आकर देश की अस्मिता और उसके हितों पर आघात करने वाले तौर-तरीकों का जो कच्चा-चिट्ठा खोला, उसका ही यह परिणाम रहा कि उसके नेताओं को न तो संसद के भीतर कोई जवाब देते बना और न ही बाहर।