अटकलें लंबे समय से चल रही थीं, लेकिन फिर भी जब शुक्रवार को गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने का एलान किया तो उस पर कुछ हलचल हुई। इसकी एक वजह तो यह थी कि वह इस पार्टी में करीब आधी सदी गुजार कर अलग हो रहे थे। वह उन नेताओं में नहीं रहे, जो बीच में पार्टी छोड़ गए और दोबारा इसका दामन थामा। दूसरे, कुछ हद तक इसकी वजह टाइमिंग भी है। लंबे समय से सुस्ती का आरोप झेल रही कांग्रेस ने 'भारत जोड़ो' यात्रा के जरिए देश और देशवासियों के साथ जुड़ने की एक पहल की है। कांग्रेस नेतृत्व पार्टी से बाहर के तबकों जैसे सिविल सोसायटी के सदस्यों को भी इस मुहिम में साथ लेने की कोशिश कर रहा है। ऐसे मौके पर एक वरिष्ठ नेता का इस तरह पार्टी छोड़ना नेतृत्व को थोड़ी देर के लिए ही सही, असुविधाजनक स्थिति में डालता है। तीसरी बात है कि जिस जम्मू-कश्मीर से गुलाम नबी आजाद आते हैं, वह तीन साल की उथल-पुथल के बाद अब विधानसभा चुनावों की राह देख रहा है। माना जा रहा है कि अगले साल की शुरुआत में ही वहां चुनाव हो सकते हैं। ऐसे में इस क्षेत्र से पार्टी के सबसे बड़े नेता का यूं चले जाना उसके लिए जितना नुकसानदेह हो सकता है, उतना ही या शायद उससे ज्यादा विरोधी खेमे के लिए फायदेमंद हो सकता है।
मगर इन सबके बावजूद, समग्रता में देखा जाए तो गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की खबर शॉकवैल्यू खो चुकी थी। वह लंबे समय से असंतुष्ट तो थे ही, जब तब पार्टी के प्रति अपनी नाराजगी भी अलग-अलग तरीकों से जताते रहते थे। हाल में कांग्रेस नेतृत्व उन्हें मनाने की कोशिश करता भी दिख रहा था। लेकिन जम्मू-कश्मीर की पार्टी चुनाव संचालन समिति से इस्तीफा देकर उन्होंने अपना संभावित रुख स्पष्ट कर दिया था। सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष को भेजे अपने लंबे त्यागपत्र में वह कोई नई और कन्विंसिंग बात नहीं कह सके। खुशामदी तत्वों से घिरे होने और रिमोट कंट्रोल कल्चर को बढ़ावा देने जैसे आरोप कांग्रेस नेतृत्व पर बहुत पहले से लग रहे हैं। पूरे एक दशक चले यूपीए शासन को भी रिमोट कंट्रोल वाला दौर ही कहा जाता रहा है, लेकिन उस पूरे दौर में गुलाम नबी आजाद पार्टी और सरकार में न केवल शिद्दत से शामिल रहे बल्कि कभी उसके खिलाफ कुछ बोलने की जरूरत भी नहीं समझी। मगर इन बातों का यह मतलब नहीं कि गुलाम नबी आजाद जैसे पुराने नेता का पार्टी छोड़ना कांग्रेस नेतृत्व के लिए चिंता की बात नहीं होनी चाहिए या यह कि पार्टी की उनकी आलोचनाओं में कोई सचाई नहीं है। पार्टी नेतृत्व अगर अपनी कमजोरियां दूर करने की कारगर पहल नहीं करेगा तो उसे ऐसे झटके आगे भी लगते रहेंगे। इसी संदर्भ में उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी बहाने से आंतरिक चुनाव टाल न दिए जाएं।