शहरों के लिए मजाक का विषय हो सकती है सांड से टकरा कर होने वाली मौत पर मुआवजा, गांवो में यह एक बड़ा मुद्दा है
गांवो में यह एक बड़ा मुद्दा है
सुमित दुबे।
हाल ही में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने उन्नाव में एक जनसभा के दौरान ऐलान किया कि उनकी सरकार बनने पर अगर सांड से टकराकर किसी की मौत होती है तो उसे पांच लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा. अखिलेश के इस चुनावी वादे को जब समाजवादी पार्टी के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया तो उसकी भाषा के चलते कुछ कन्फ्यूजन पैदा हुआ और इंटरनेट पर उससे जुड़े मीम्स भी वायरल होने लगे. लेकिन मीम्स और इंटरनेट की दुनिया से इतर, यूपी के गांव-गांव में यह मसला बीते पांच साल से चर्चा में है.
यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) का वक्त नजदीक आते-आते प्रदेश के कुछ ऐसे मुद्दे भी सामने आने लगे हैं जिनकी चर्चा नेशनल मीडिया में यदा-कदा ही होती है. लेकिन वह मुद्दे जमीन पर बड़ा असर करते हैं. सांड के साथ दुर्घटना में होने वाली मौत का मसला इतना बड़ा इसलिए हैं क्योंकि यह महज मौत या मुआवजे से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि इसके साथ यूपी के तमाम किसानों की आजीविका और जीवन यापन का सवाल भी जुड़ा हुआ है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसपर यूपी की योगी सरकार बैकफुट पर है.
दरअसल यूपी की सड़कों पर सांड के साथ-साथ आवारा जानवरों की संख्या में पिछले पांच सालों में काफी वृद्धि हुई है. शहरों में जहां इन आवारा जानवरों के साथ दुर्घटनाएं होने का खतरा रहता है तो वहीं गांवों में यह समस्या विकराल रूप ले चुकी है. यूपी की 75 फीसदी से ज्यादा आबादी गांवों में ही बसती है. आवारा पशुओं की समस्या तो गांवों में पहले से ही थी, लेकिन 2017 में बीजेपी की सरकार आने के बाद कुछ ऐसे फैसले हुए जिन्होंने इस समस्या को और बढ़ा दिया. सरकार की ओर से इन्हें दूर करने की कोशिश तो हुई लेकिन नतीजा बेहतर नहीं रहा.
रात भर जाग कर चौकिदारी करने को मजबूर हैं किसान
आवारा पशुओं या अगर ग्रामीण भाषा में कहें तो छुट्टा जानवरों के चलते ज्यादातर ग्रामीणों को सर्दियों की रातों में जागकर अपने खेतों की पहरेदारी करनी पड़ती है. यह रबी की फसल का मौसम है. गेंहू की फसल की बुवाई को महीने भर से ज्यादा वक्त हो चला है. फसल भी छोटी है और यही हाल आलू जैसी बाकी फसलों का भी है. ऐसे में सर्दियों के ये दो महीने रबी की फसल के लिए बेहद अहम हैं. लेकिन यही वह वक्त है जब इन फसलों को आवारा पशुओं द्वारा चरे जाने का खतरा सबसे ज्यादा है.
यूपी के तमाम जिलों के गांवो के किसान इस भरी सर्दी में रात भर टोल बना हाथ में लाठी और टॉर्च लेकर अपने खेतों की चौकीदारी कर रहे हैं. जो धनवान किसान हैं उन्होंने अपने खेतों की तारबंदी तो करवा दी लेकिन जब आवारा पशुओं का कोई बड़ा दल दौड़ते हुए आता है तारबंदी भी उन्हें नहीं रोक पाती है. लिहाजा रात भर जागकर चौकीदारी करने के अलावा किसानों के पास कोई चारा नहीं है. कांग्रेस की महासचिव और यूपी की इंचार्ज प्रियंका गांधी वाड्रा ने करीब दो साल पहले इस मसले पर यूपी के ग्रामीणों की समस्या का एक वीडियो ट्वीट कर इसकी ओर ध्यान खींचा था.
हालांकि ऐसा नहीं है कि सरकार इस मसले से अनजान हो. योगी सरकार ने अलग-अलग योजनाओं के चलते इसका निदान करने की कोशिश की है. प्रदेश भर में अलग-अलग गौशालाएं खोली गईं और उनका बजट भी अलग से बनाया गया. आवारा पशुओं को पकड़कर गौशालाओं में लाने के लिए पैसे देने की व्यवस्था की गई. लेकिन किसानों को वह राहत नहीं मिल सकी जिसकी उम्मीद की जा रही थी.
प्रदेश भर में लगभग साढ़े सात लाख आवारा पशु
इन आवारा पशुओं की समस्या से निजात पाने के लिए किसान सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट कर परेशान हो चुके हैं और खुद ही कुछ ऐसा समाधान निकालते हैं जो एक नई समस्या खड़ी कर देता है. यूपी के कई जिलों से ऐसी खबरे अक्सर आती रहती हैं जब किसान इन जानवरों को घेर कर इन्हें सरकारी स्कूल या किसी और सरकारी दफ्तर में बांध देते हैं. जिसके बाद ही प्रशासन की नींद खुल पाती है. हाल ही में शाहजहांपुर में ऐसी ही एक घटना के बाद कुछ ग्रामीणों के खिलाफ FIR होने की भी बात सामने आई है. ये कहानी पिछले पांच सालों से लगभग हर जिले में दोहराई जा रही है, लेकिन कोई स्थायी बंदोबस्त नहीं हो सका है. करीब दो साल पहले यूपी सरकार के एक सर्वे के मुताबिर प्रदेश भर में आवारा पशुओं की संख्या साढ़े सात लाख के करीब है. खेतों के अलावा हाइवे पर भी ये आवारा पशु अक्सर दुर्घटना की वजह बनते हैं.
गांवों में आवारा गोवंश की समस्या की मूल वजह यह है कि किसान अक्सर दूध ना देने वाली गाय को खुला छोड़ देते हैं. पहले इस तरह के गोवंश को कसाई पकड़कर ले जाते थे, लेकिन यूपी में योगी सरकार के आने के बाद बूचड़खानों पर अंकुश लगाए जाने के बाद अब सड़कों और खेतों पर आवारा गोवंश की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. यूपी सरकार गोवध को रोकने के लिए इसकी सजा का भी कानून बना चुकी है. जाहिर है योगी सरकार के इस फैसले से उसके वोटबैंक में इजाफा ही हुआ होगा, लेकिन फैसले के दूसरे पहलू को समझकर उसका निदान करने में सरकार कामयाब होती नहीं दिख रही. हालांकि इसके साइड इफेक्ट यूपी के तमाम गांवों में नजर आ रहे हैं. अखिलेश यादव ने भी इस मसले की गंभीरता को पूरी तरह से समझ लिया है, इसीलिए सांड से टकराकर मौत होने पर पांच लाख रुपए के मुआवजे का उनका चुनावी वादा शहरों में भले ही हंसी मजाक का विषय बन जाए, लेकिन यूपी इलेक्शन में इसने एक बेहद जरूरी मसले को चर्चा में ला दिया है, जिसका समाधान ना निकालने की कीमत अब योगी सरकार को भी चुकानी पड़ सकती है.