Communal Violence: शांति के शत्रुओं से सतर्कता जरूरी
भारत की छवि को कलंकित करने के इस प्रयास को समझे जाने की जरूरत है।
क्या कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है? क्या कुछ लोग उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिक हिंसा की लपटों में झोंकने की साजिश कर रहे हैं? हाल में हुई कुछ घटनाएं, जो सतह पर अलग-अलग दिखती हैं, परंतु उन्हें एक अदृश्य सूत्र आपस में जोड़ता है। अभी दो नवंबर को शाहजहांपुर में क्या हुआ? वहां मस्जिद में घुसकर कुरान जलाने के प्रकरण से क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। अपमान की सूचना मिलते ही सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम जुटे और उन्होंने विरोध-प्रदर्शन करते हुए आगजनी शुरू कर दी। माहौल बिगड़ता देख पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया। जब घटनास्थल के निकट लगे एक सीसीटीवी को खंगाला गया, तो खुलासा हुआ कि इस 'ईशनिंदा' का अपराधी ताज मोहम्मद है, जिसे गिरफ्तार कर लिया गया। यह विडंबना है कि अधिकतर मीडिया संस्थानों ने इस खबर से दूरी बनाए रखी।
इससे पहले 18 अक्तूबर को मेरठ में मोहम्मद शोएब नामक व्यक्ति द्वारा मंदिर में शिवलिंग को अपवित्र करने का वीडियो वायरल हुआ था। गिरफ्तारी के बाद उसे मंदबुद्धि बताया गया। 10 अक्तूबर को सुल्तानपुर में मस्जिद के निकट दुर्गा प्रतिमा विसर्जन शोभायात्रा पर उपद्रवियों की ओर से पथराव की खबर सामने आई थी, जिसमें 32 लोग गिरफ्तार हुए। इसी प्रकार, सात सितंबर को माथे पर तिलक लगाए जय श्रीराम का नारा लगाकर और अपना नाम शिवा बताकर घुसे तौफीक अहमद ने लखनऊ स्थित हनुमान मंदिर में प्रतिमा को खंडित कर दिया। बीते दिनों बिजनौर में भगवा परिधान पहने दो मुस्लिम भाइयों द्वारा मजारों में तोड़फोड़ करते हुए चादर को आग लगाने का मामला भी सामने आया था।
आखिर उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाओं के निहितार्थ क्या हैं? राज्य में नई सरकार बनने के साथ ही उसके प्रति दो प्रमुख जन-धारणाएं बनी हैं। पहली—कानून-व्यवस्था को पटरी पर लाने हेतु संगठित अपराध की कमर तोड़ना, तो दूसरी—जनहित योजनाओं के साथ प्रदेश का विकास। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खां और कुख्यात अपराधी विकास दुबे आदि पर कार्रवाई इसका प्रमाण है कि अपराधियों-आरोपियों के खिलाफ विधिसम्मत कानूनी कार्रवाइयों में मजहबी और जातिगत पहचान रोड़ा नहीं बन रही है। सरकार की सख्त नीतियों का परिणाम है कि प्रदेश में वर्ष 2021 में न केवल सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं घटी हैं, बल्कि बच्चों और महिलाओं के खिलाफ अपराध भी घट गए हैं। हजारों अपराधियों के विरुद्ध गैंगस्टर अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई करते हुए उनकी सैकड़ों-हजारों करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति कुर्क कर ली गई, तो उनकी अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर चल गया। बिना किसी बल प्रयोग और विरोध-प्रदर्शन के विभिन्न धार्मिक स्थलों (मंदिर हो या मस्जिद ) में लगे सवा लाख लाउडस्पीकरों पर कार्रवाई की गई। ऐसे में यथास्थितिवादियों में बौखलाहट बढ़ना स्वाभाविक है।
अपराधियों के प्रति सख्त दृष्टिकोण अपनाने का परिणाम है कि उत्तर प्रदेश 10 खरब डॉलर की अर्थव्यस्था बनने की ओर अग्रसर है। इसके लिए योगी सरकार अगले पांच वर्षों में 40 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी। योगी सरकार ने वर्ष 2023 के 'यूपी ग्लोबल इंवेस्टर समिट' में 10 लाख करोड़ रुपये का निवेश लाने का लक्ष्य रखा है। वास्तव में, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले उपरोक्त मामले उत्तर प्रदेश को देश-विदेश में कलंकित और शांति को भंग करने का आधार बन जाते हैं। स्वतंत्र भारत में उत्तर प्रदेश सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील रहा है। चूंकि पारदर्शी प्रशासन के माध्यम से प्रदेश में सांविधानिक-लोकतांत्रिक सरकार का इकबाल पुनर्स्थापित हो रहा है, इसलिए निजी स्वार्थ और वैचारिक खुन्नस के कारण विकृत तथ्यों के बल पर भारत की छवि को कलंकित करने के इस प्रयास को समझे जाने की जरूरत है।
सोर्स: अमर उजाला